विपक्षी एकता की बैठक में नीतीश के नाम पर लगेगी मुहर? तेजस्वी संभालेंगे बिहार?

Will Nitish's name be stamped in the meeting of opposition unity? Will Tejashwi handle Bihar?
Will Nitish's name be stamped in the meeting of opposition unity? Will Tejashwi handle Bihar?
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पटना: 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी एक साल बचे हुए हैं, लेकिन बीजेपी को परास्त करने के लिए कांग्रेस सहित देश की सभी विपक्षी पार्टियां एक प्लेटफॉर्म पर आने का प्रयास कर रही हैं. 12 जून को पटना में देश की सभी विपक्षी पार्टियों के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) बैठक करेंगे. बैठक को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार के नाम पर मुहर लग जाएगी? क्या तेजस्वी यादव के हाथों में बिहार की कमान होगी? इस विपक्षी एकता की बैठक और इस तरह के सवालों को लेकर जानिए क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार. 10 प्वाइंट्स में समझिए.

1) राजनीति विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय का कहना है कि अभी लोकसभा चुनाव में एक साल बचे हुए हैं और यह पहली बैठक है, इसलिए इस बैठक से कोई निर्णय निकलने की संभावना नहीं बन सकती है. यह बैठक एक औपचारिक मात्र है. इस बैठक से यह दिखाना है कि बीजेपी के खिलाफ देश के सभी विपक्ष एकजुट हो चुके हैं. इसके बाद अभी कई बैठकें होंगी.

2) बीजेपी के खिलाफ सभी को एकजुट होने के लिए तीन स्टेज हैं. अभी बैठक की शुरुआत होने जा रही है. इसके बाद सीटों के बंटवारा पर बात होगी. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और प्रधानमंत्री का चेहरा तय होना है. इन तीनों प्रमुख बातों पर अगर सबकी सहमति एक तरह बनी तो संभव हो सकता है, परंतु ऐसा होना असंभव दिख रहा है.

3) सबसे बड़ी समस्या सीटों के बंटवारे पर हो सकती है. लोकसभा की कुल 543 सीटों में लगभग ढाई सौ से ज्यादा सीटों पर क्षेत्रीय दलों का कब्जा है. बात बिहार की करें तो जेडीयू-आरजेडी का कब्जा है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ऐसे कई राज्य हैं. कांग्रेस चाहेगी कि 300 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस जहां चाहेगी वहां संभव भी नहीं होगा कि उसे वह सीट मिल सकती है.

4) कई राज्य ऐसे भी हैं जहां क्षेत्रीय दलों का सीधे कांग्रेस से टक्कर है. आम आदमी पार्टी का दिल्ली और पंजाब में कब्जा है और कांग्रेस से लड़ाई होती है. ममता बनर्जी की सीपीआई और कांग्रेस से लड़ाई होती है, समाजवादी पार्टी कांग्रेस के लिए सीट छोड़ने को तैयार नहीं है. तो सीट बंटवारे के वक्त ही सबसे बड़ी समस्या पैदा हो सकती है.

5) दूसरी समस्या प्रधानमंत्री के चेहरे की है. बिहार के अलावा देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दल मजबूत है और बड़े नेता भी हैं. ऐसे में कई दल नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का चेहरा स्वीकार नहीं कर सकते हैं. खुद कांग्रेसी भी नीतीश कुमार को या किसी को भी प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती है.

6) बीजेपी को हराने के लिए सभी भाजपा विरोधी पार्टियों को एकजुट होकर वन टू वन फाइट करना होगा जो इतना आसान नहीं है. हालांकि किसी भी सूरत में यूपीए चुनाव के पहले प्रधानमंत्री का चेहरा नहीं घोषित कर सकती है क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ेगी और यह बीजेपी के लिए फायदेमंद भी होगा.

7) नीतीश कुमार ने सभी को एकजुट करने के लिए अगुवाई की है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि यह कांग्रेस के कन्वेनर के रूप में काम कर रहे हैं क्योंकि अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव कांग्रेस से सीधे बात नहीं कर सकते थे. इसलिए नीतीश कुमार को आगे किया गया है, लेकिन यह कितना सफल होगा वह वक्त बताएगा.

8) 12 जून को पटना में होने वाली बैठक में प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में नीतीश कुमार के नाम पर मुहर लगेगी? तेजस्वी बिहार की कमान संभालेंगे? इसका सीधा जवाब है नहीं. राजनीतिक जानकार अरुण पांडेय ने कहा कि प्रधानमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार को बनाया भी जाता है तो मुख्यमंत्री के पद को छोड़ना कोई जरूरी नहीं है.

9) बीजेपी से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया गया था उस समय वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री के पद से उन्होंने इस्तीफा दिया था. यह कहीं से कानून नहीं है कि चेहरा बनने पर पद छोड़ना पड़ सकता है. नीतीश कुमार ने यह कहा है कि 2025 में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन उससे पहले तेजस्वी का मुख्यमंत्री बनने का कोई दूर-दूर तक रास्ता नहीं दिख रहा है.

10) हालांकि तेजस्वी यादव या लालू प्रसाद यादव इस पर ज्यादा उतावले नहीं हैं. जेडीयू-आरजेडी दोनों पार्टी के कुछ नेता कभी-कभी ऐसा बोल देते हैं लेकिन लालू परिवार किसी भी सूरत में नीतीश को खफा करके कोई काम नहीं कर सकता है क्योंकि वे सत्ता में बने हुए हैं यह उनके लिए सबसे बड़ी बात है. क्योंकि नीतीश कुमार अगर बीजेपी का साथ नहीं छोड़ते तो वह विपक्ष में ही अब तक रहते इसलिए 2025 के पहले तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलना अभी असंभव दिख रहा है.