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Chhattisgarh Bastar Anti Naxal Operation Inside Story: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का अबूझमाड़ अपने नाम के अनुरूप ही सुरक्षाबलों के लिए लंबे अर्से से बड़ी पहेली रहा है. घने जंगलों, अनजानी पहाड़ियों, नदी- नालों और खतरनाक जानवरों की वजह से यह एक ऐसी भूल- भुलैया थी, जिसमें जो गया, वो सही सलामत लौटकर नहीं आता था. बस्तर का इन्हीं भौगोलिक संरचनाओं की वजह से यह इलाका लंबे वक्त ते वामपंथी उग्रवादियों का मजबूत गढ़ बना हुआ था. लेकिन अब लगता है कि सुरक्षाबलों ने इस इलाके की अबूझ पहेली को सुलझा लिया है. इस शुक्रवार को सुरक्षा बलों ने पहली बार जंगल के 25 किमी अंदर जाकर ऐसी दुस्साहसिक मुठभेड़ को अंजाम दिया, जिसमें 31 नक्सली मारे गए और काफी मात्रा में गोला- बारूद बरामद किया गया.
खुफिया सूत्रों ने दी नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना
सूत्रों के मुताबिक इस स्पेशल ऑपरेशन की योजना तब बनाई गई, जब सुरक्षाबलों को अबूझमाड़ के जंगलों में नक्सलियों की इंद्रावती एरिया कमेटी और पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी कंपनी नंबर 6 के कमांडरों समेत कम से कम 50 माओवादियों की मौजूदगी की सूचना मिली. खुफिया सूत्रों ने अधिकारियों को यह भी बताया कि थुलथुली और नेंदुर गांवों के बीच घने जंगलों में वांछित नक्सली कमांडर कमलेश, उर्मिला, नंदू और दूसरे माओवादी छिपे हुए हैं.
घने जंगलों में 25 किमी तक किया ट्रैक
इस सूचना के बाद जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी), स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 1500 जवानों को इकट्टा कर उन्हें बूझमाड़ के जंगलों की ओर रवाना किया गया. शुरुआत के 10 किमी तक जवान बाइकों पर गए. इसके आगे पहाड़ियां शुरू हो गई थी. जिसके बाद 15 किमी तक उन्होंने पहाड़ों पर ट्रैक किया. जब वे बताई गई लोकेशन के नजदीक पहुंचे तो बेहद सतर्क हो गए और खड़े होकर चलने के बजाय घुटनों के बल और रेंग- रेंगकर आगे का सफर तय किया.
नक्सलियों के नजदीक पहुंचने पर सुरक्षाबलों के जवानों चारों ओर घेरा बनाकर उग्रवादियों के भागने का रास्ता कुछ हद तक ब्लॉक कर दिया. इसके बाद नक्सलियों पर ताबड़ताड़ फायरिंग शुरू की गई. घने जंगल के इतने अंदर पहली बार सुरक्षाबलों के जवानों को देखकर उग्रवादी हैरान रह गए. उन्हें उम्मीद नहीं था कि जवान उन्हें घेरने के लिए जंगल के इतना अंदर तक घुस सकते हैं.
कई घंटे चली फायरिंग में 31 नक्सली ढेर
उन्होंने सुरक्षाबलों पर जवाबी फायर कर मुकाबले की कोशिश की लेकिन पहले से ही अलर्ट जवानों ने उन्हें ज्यादा मौका नहीं दिया. कई घंटे तक चली फायरिंग के बाद जब गोलीबारी थमी तो मौके से नक्सलियों के 31 शव बरामद किए गए. इसके साथ ही घटनास्थल से लाइट मशीन गन, एके-47, सेल्फ-लोडिंग राइफल (एसएलआर), इंसास राइफल और .303 कैलिबर आग्नेयास्त्र जैसे हथियार भी जब्त किए गए है. मौके से भागे नक्सलियों की तलाश में सुरक्षाबलों के जवानों ने लगातार 48 घंटे तक जंगल में कॉम्बिंग ऑपरेशन चलाया. इस साहसिक मुठभेड़ में डीआरजी का एक जवान, रामचन्द्र यादव घायल हो गया, जिसे घटनास्थल से सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.
अबूझमाड़ के जंगल में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हुए सफल ऑपरेशन में मोस्ट वांटेड माओवादी कमांडरों में से एक कमलेश उर्फ आरके भी मारा गया. कमलेश पांच राज्यों में वांछित था और नक्सलियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का प्रमुख व्यक्ति था. वह मूल रूप से आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के रहने वाला था. वह सिविल इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (आईटीआई) का छात्र था लेकिन बाद में नक्सली विचारधारा के संपर्क में आने पर पढ़ाई छोड़कर नक्सली बन गया. उसका प्रभाव छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और महाराष्ट्र तक फैला हुआ था.
क्या आखिरी सांसे गिन रहा वामपंथी उग्रवाद?
सुरक्षाबलों ने कमलेश के साथ ही एक और नक्सली कमांडर नीति उर्फ उर्मिला को भी मार गिराया. वह नक्सलवादी संगठन की प्रवक्ता और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी की मेंबर थी. वह देश के अलग-अलग हिस्सों में माओवादी प्रचार तंत्र को फैलाने में अहम भूमिका निभा रही थी. मूल रूप से बीजापुर के गंगालूर की मूल निवासी उर्मिला स्पेशल जोनल कमेटी की सदस्य थीं. बस्तर जिले के अबूझमाड़ के जंगल में हुई इस सफल मुठभेड़ को वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने के लिए चल रहे प्रयासों में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है.
नक्सल विरोधी ऑपरेशन में लगे अफसरों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में इस साल अब तक हुई मुठभेड़ों में 180 से ज्यादा नक्सली मारे जा चुके हैं. इसके साथ ही 201 नक्सली सरेंडर करके मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं, जबकि 212 से ज्यादा माओवादी गिरफ्तार हो चुके हैं. इससे अहसास हो रहा है कि यह हिंसात्मक आंदोलन अब धीरे- धीरे अपनी आखिरी सांसे गिनने में लगा है.