उत्तराखंड में 664 पुल यातायात के लायक नहीं, 1960 से 1970 के बीच हुआ इनका निर्माण

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देहरादून। रानीपोखरी में पुल के क्षतिग्रस्त होने के बाद एक बार फिर प्रदेशभर के पुलों की क्षमता का आकलन शुरू कर दिया गया है। इस संबंध में लोनिवि प्रमुख अभियंता ने बी-क्लास पुलों की सूची तलब की थी। पता चला है कि प्रदेश में बी-क्लास पुलों की संख्या 664 है। बी-क्लास पुल उन्हें कहा जाता है, जिन्हें निर्माण के दौरान 16 टन भार की क्षमता पर तैयार किया गया था। आज के यातायात दबाव के लिहाज से इन्हें अनफिट माना जा रहा है।

लोनिवि प्रमुख अभियंता हरिओम शर्मा के मुताबिक, बी-क्लास श्रेणी के 664 पुलों का निर्माण वर्ष 1960 से 1970 के बीच किया गया था। तब सड़कों पर यातायात का दबाव काफी कम होता था। आज दूरदराज के क्षेत्रों में भी बाजारीकरण हो चुका है। इसके चलते भारी वाहनों का भी आवागमन रहता है। यही कारण है कि अब जिन पुलों का निर्माण किया जाता है, उन्हें 70 टन भार क्षमता के हिसाब से तैयार किया जाता है। इस लिहाज से देखें तो बी-क्लास श्रेणी के पुलों की क्षमता 77 फीसद से भी कम है।

रानीपोखरी जैसी पुल गिरने की घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए बी-क्लास श्रेणी के सभी पुलों का खंडवार सर्वे कराया जा रहा है। देखा जा रहा है कि पुलों की क्षमता किस तरह बढ़ाई जाए। खंडवार रिपोर्ट प्राप्त किए जाने के बाद सुधारात्मक कार्य कराए जाएंगे। यह भी देखा जाएगा कि सुरक्षात्मक कार्यों के साथ किन पुलों के स्थान पर नए पुल बनाए जा सकते हैं। सर्वे के अनुरूप कार्य करने के लिए इस्टीमेट तैयार कर शासन को भेजा जाएगा।

लोनिवि प्रमुख अभियंता के मुताबिक दूरदराज के क्षेत्रों में कुछ पुल ऐसे स्थलों पर भी हैं, जहां सड़क बंद (डेड एंड) हो जाती है। इन पर भारी वाहन भी प्रवेश नहीं करते। इस तरह के पुलों में बदलाव नहीं किया जाएगा।

आरके सुधांशु (प्रमुख सचिव लोनिवि) ने कहा कि‍ बी-क्लास पुलों की आडिट रिपोर्ट व इनमें सुधार से संबंधित प्रस्ताव जैसे ही शासन को प्राप्त होंगे, उसके मुताबिक कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकार की प्राथमिकता है कि यातायात सुरक्षा के लिहाज से सभी तरह के समाधान शीघ्र किए जाएं।