पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध न होना, मानसिक प्रताड़ना, तलाक का भी आधार; हाई कोर्ट का फैसला

Absence of physical relationship between husband and wife, mental harassment, also grounds for divorce; High Court's decision
Absence of physical relationship between husband and wife, mental harassment, also grounds for divorce; High Court's decision
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नई दिल्ली। अगर पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक शारीरिक संबंध नहीं बना हो तो वह मानसिक प्रताड़ना और क्रूरता हो सकती है और उसके आधार पर तलाक लिया जा सकता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते इसी तरह के एक क्रूरता के आधार पर एक जोड़े के विवाह को भंग कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पति या पत्नी को लंबे समय तक अपने साथी के साथ बिना उचित और पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देना अपने आप में मानसिक क्रूरता के बराबर है।

जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने एक पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका खारिज करने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर ये फैसला सुनाया है।

पारिवारिक न्यायालय, वाराणसी के प्रधान न्यायाधीश के आदेश को रद्द करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, “चूंकि ऐसा कोई स्वीकार्य दृष्टिकोण नहीं है, जिसमें एक पति या पत्नी को आजीवन साथ रहने के लिए मजबूर किया जा सकता है, दोनों पक्षों को जबरन शादी से हमेशा के लिए बांधे रखने की कोशिश से भी कुछ नहीं मिलता है, वास्तव में यह विवाह समाप्त हो गया है।”

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी की फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ, पीड़ित पति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि युगल (वादी-अपीलकर्ता/पति और प्रतिवादी-पत्नी) ने मई 1979 में शादी की थी। इसके कुछ समय बाद पत्नी का व्यवहार और आचरण बदल गया और उसने पत्नी के रूप में उसके साथ रहने से इनकार कर दिया। काफी समझाने के बावजूद पत्नी ने पति से कोई यौन संबंध नहीं बनाया।

याचिकाकर्ता के मुताबिक, कुछ समय के लिए दोनों एक ही छत के नीचे रहते थे,लेकिन कुछ समय बाद प्रतिवादी स्वेच्छा से अपने माता-पिता के घर जाकर अलग रहने लगी। अपीलकर्ता ने आगे कहा कि उसकी शादी के छह महीने बाद, जब उसने अपनी पत्नी को मनाने की कोशिश की और वैवाहिक जीवन के अपने दायित्व का निर्वहन करने और वैवाहिक बंधन का सम्मान करने के लिए ससुराल वापस आने के लिए कहा तो, उसने वापस आने से इनकार कर दिया।

इतने से भी जब बात नहीं बनी तो जुलाई 1994 में एक पंचायत बुलाई गई और पंचायत सामुदायिक रीति-रिवाजों के अनुसार इस नतीजे पर पहुंची के दोनों का तलाक करा दिया जाय। इसके अनुसार पति को स्थाई गुजारा भत्ता के रूप में 22,000 रुपये देने का आदेश दिया गया। इसके बाद पत्नी ने दूसरी शादी कर ली और जब पति ने मानसिक क्रूरता, लंबे परित्याग और तलाक के समझौते के आधार पर तलाक की डिक्री मांगी,तो वह अदालत में पेश नहीं हुई, इसलिए,अदालत ने मामले में एकपक्षीय सुनवाई शुरू कर दी।

फैमिली कोर्ट के सामने पेश किए गए पूरे साक्ष्य की जांच करने के बाद, वादी-अपीलकर्ता (पति) का मामला साबित नहीं हो सका और मामले को लागत के साथ एकतरफा खारिज करने का आदेश दिया गया। इससे आहत होकर पति ने तत्काल हाई कोर्ट में अपील की।

हाई कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने पति के मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसके द्वारा दायर कागजात फोटोकॉपी थे और उसके द्वारा कोई मूल कागजात दायर नहीं किया गया था और कागजात की फोटोकॉपी साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं है। फ़ैमिली कोर्ट ने आक्षेपित फ़ैसले में यह भी देखा कि फ़ाइल में ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पता चले कि प्रतिवादी (पत्नी) ने दूसरी शादी कर ली है।

हालांकि, हाई कोर्ट ने पाया कि लंबे समय से दोनों पति-पत्नी अलग रह रहे हैं और पति के मुताबिक पत्नी शादी के बंधन को मानने को तैयार नहीं है। वह पारिवारिक और दाम्पत्य जिम्मेदारियों को निभाने के लिए राजी नहीं है। हाई कोर्ट ने इसी आधार पर उनका विवाह भंग कर दिया।