आखिर स्वास्थ्य के अधिकार विधेयक से राजस्थान के डॉक्टरों को क्या परेशानी है, जानिए हर बड़े सवाल का जवाब

After all, what is the problem of the doctors of Rajasthan with the Right to Health Bill, know the answer to every big question
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जयपुर: राजस्थान में 21 मार्च को विधानसभा में राइट टु हेल्थ यानी स्वास्थ्य का अधिकार बिल पारित किया गया है। इस बिल के आने के बाद स्वास्थ्य सेवा के अधिकार की गारंटी देने वाला राजस्थान भारत का पहला राज्य बन गया है। विधेयक पारित होने के बाद लगातार सरकार और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों के बीच तनातनी का माहौल है। बिल में स्वास्थ्य सेवा के अधिकार की गारंटी दी गई है। चाहे इलाज के लिए पैसा देने में समर्थ नहीं हो। बिल के अनुसार राज्य का कोई भी निवासी सरकार से अधिकार के रूप में स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान की मांग कर सकता है। ऐसा करने में विफल रहने पर सरकार को अदालत में भी ले जा सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के नेतृत्व में डॉक्टरों ने इस कानून का विरोध किया है। कानून के विभिन्न प्रावधानों की शिकायत के बाद डॉक्टरों ने अब पूरे कानून को वापस लेने की मांग की है।

मरीजों के मुफ्त इलाज को लेकर डॉक्टरों में हड़कंप क्यों है?
अधिकांश डॉक्टरों का कहना है कि कानून ने उन्हें मरीजों को मुफ्त में सभी सेवाएं प्रदान करने के लिए मजबूर कर दिया है। हालांकि, कानून में जिन मुफ्त सेवाओं की बात की गई है, वे ज्यादातर सरकारी संस्थानों के लिए हैं। कानून सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों की ओर से मुफ्त ओपीडी सेवाओं, आईपीडी सेवाओं के परामर्श, दवाओं, निदान, आपातकालीन परिवहन, प्रक्रिया और आपातकालीन देखभाल’ का लाभ उठाने के अधिकार की बात करता है। अधिकांश बिल सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित हैं। लेकिन डॉक्टर्स को इस बिल में शामिल किए गए नामित यानी डेसिगनटेड शब्द पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि डेसिगनटेड शब्द ऐसा है, जिसमें प्राइवेट हॉस्पिटल्स को निशाना बनाया जा सकता है।

क्या बिल पास करने से पहले डॉक्टरों से सलाह ली गई थी?
दरअसल राइट टु हेल्थ बिल का ड्राफ्ट पिछले साल मई में पब्लिक डोमेन में रखा गया था । इस पर सरकार ने कई स्टेकहोल्डर्स की टिप्पणियां मांगी थी। 23 सितंबर को, विधेयक को विधानसभा में पेश किया गया और फिर सलेक्ट कमेटी को भेजा गया। स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने कई हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया। हालांकि, सरकार और आईएमए के राजस्थान चैप्टर तथा यूनाइटेड प्राइवेट क्लिनिक्स एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (UPCHAR) सहित विभिन्न चिकित्सा संघों के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई। लेकिन अब 1,700 निजी अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक निकाय ने दावा किया है कि डॉक्टर असंतुष्ट रहे। भारी जनहित को ध्यान में रखते हुए, विधानसभा ने 21 मार्च को विधेयक पारित किया।

मेडिकल एसोसिएशन की मुख्य आपत्ति क्या है?
विधेयक के खंड 3 में कहा गया है कि राजस्थान के लोगों को “किसी भी आपातकालीन परिस्थितियों में आपातकालीन उपचार और देखभाल करने का अधिकार होगा। बिना आवश्यक शुल्क के। इमरजेंसी के इसी शब्द के कारण डॉक्टर्स को परेशानी है। डॉक्टरों को चिंता है कि इससे उनके कई छोटे प्रतिष्ठानों को आपातकालीन देखभाल प्रदान करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इसी खंड में यह भी कहा गया है कि आपातकालीन देखभाल किसी भी ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान, स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठान और नामित स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों की ओर से प्रदान की जानी है, जो अपने स्वास्थ्य देखभाल के स्तर के अनुसार ऐसी देखभाल या उपचार प्रदान करने के लिए योग्य हैं’।

सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार फैसला सुनाया है कि आपातकालीन चिकित्सा देखभाल बिना किसी शर्त के नागरिकों का अधिकार है और भले ही वे इसे वहन न कर सकें। राजस्थान बिल ने इसी अधिकार को दोहराया है। डॉक्टरों को सरकार पर भरोसा नहीं है कि वह इलाज पर हुए खर्च की प्रतिपूर्ति (भरपाई) पर्याप्त रूप और समय पर कर देगी। हालांकि सरकार ने आपातकालीन उपचार की प्रतिपूर्ति के लिए एक कोष बनाने का वादा किया है, जिसके तौर-तरीके और नियम भी तय किए जाएंगे।

डॉक्टरों से परामर्श के बाद सरकार ने कानून में और क्या बदलाव किए?
सरकार ने डॉक्टर्स के विरोध में उठे स्वरों के बाद इसमें हेल्थ एक्सपटर्स को हटाकर उनकी जगह दो नामित आईएमए-राजस्थान सदस्यों को नियुक्त किया है। सरकार ने जिला स्वास्थ्य प्राधिकरणों में जिला परिषद के प्रमुख और पंचायत समितियों के तीन प्रधानों जैसे जनप्रतिनिधियों को हटा दिया गया है। सरकार ने एक वेब पोर्टल और एक हेल्पलाइन को भी बंद कर दिया, जिसकी शुरुआत मरीजों को शिकायत दर्ज कराने के लिए की गई थी। अब मरीजों को पहले ‘कार्रवाई के कारण के 15 दिनों के भीतर संबंधित स्वास्थ्य देखभाल संस्थान के प्रभारी को निर्धारित तरीके से सभी प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ एक लिखित शिकायत करनी होगी। यदि व्यक्ति तीन दिनों में जवाब नहीं देता है तो जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण को शिकायत की जा सकती है। इस प्रक्रिया को और अधिक जटिल बना दिया गया है, जिससे एक सामान्य व्यक्ति के लिए शिकायत दर्ज करना मुश्किल हो गया है।

राइट टु हेल्थ बिल लागू होने के बाद सरकार को जवाबदेही बढ़ जाएगी। इस बिल के जरिए सरकार लोगों की बेहतर स्वास्थ्य सेवा मांग को पूरा करेगी। आधी आबादी अस्पताल में भर्ती होने के लिए निजी स्वास्थ्य सेवा पर निर्भर है। ऐसे में इस बिल के जरिए जनता को सीधा लाभ होगा। अस्पताल में भर्ती होने पर भुगतान करने के लिए राजस्थान सरकार ने चिरंजीवी बीमा योजना बना रखी है, जिसमें 90 परसेंट तक आबादी को कवर करने का अनुमान है। इसके अलावा सीजीएचएस और आयुष्मान भारत समेत दूसरी योजनाओं के जरिए भी हेल्थ केयर डिमांड को पूरा करने की कोशिश जा रही है। हालांकि इसमें प्राइवेट हॉस्पिटल्स का कहना है कि सरकार ने बीमा योजनाओं के जरिए जो पैकेज दरें तय की है, उसमें पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 राज्यों से अपने बजट का 8% स्वास्थ्य पर खर्च करने का आग्रह करती है। राजस्थान ने 2022-23 में स्वास्थ्य पर अपने कुल बजट का 7.4% आवंटित किया, जो सभी राज्यों के औसत 6% से अधिक है। उपलब्ध नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य खातों (2018-19) से पता चलता है कि राजस्थान में कुल स्वास्थ्य व्यय का 45 परसेंट आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय है, जबकि सार्वजनिक व्यय 44 परसेंट है। निजी क्षेत्र पर जिम्मेदारी डालने की बात तो दूर, स्वास्थ्य का अधिकार स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को कम करने और सार्वजनिक खर्च को बढ़ावा देने का एक प्रयास है।