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पटना: केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता यूपी-बिहार से होकर जाता है, लेकिन इस रास्ते में कुछ और कारक भी हैं। यही समीकरण चुनाव को दिलचस्प और सीटों के गणित का तालमेल बना देते हैं। अमित शाह बिहार में महागठबंधन सरकार के बनने के बाद पहली बार रैली करने जा रहे हैं। आम आदमी ये जरूर सोचेगा कि राजधानी पटना को छोड़कर अमित शाह ने सीमांचल को क्यों चुना? जहां मुस्लिम वोटर बहुसंख्यक हैं, वहीं पर अमित शाह के पांव रखने का क्या मतलब है? आखिर अमित शाह महागठबंधन के MY समीकरण में M वाला चक्रव्यूह कैसे भेदेंगे? आइए आपको बारी-बारी से बताते हैं।
सीमांचल का चक्रव्यूह कैसे भेदेंगे अमित शाह?
बीजेपी ने अमित शाह के दौरे के लिए सीमांचल को यूं ही नहीं चुना। ऐसे समझिए कि यहां की गर्जना पड़ोसी राज्य बंगाल तक सुनाई देगी। लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार का हिस्सा न होकर भी पड़ोसी के तौर पर बड़ी भूमिका निभाता है। यूं समझिए कि सीमांचल और बिहार का बार्डर सटा हुआ है। बिहार के सीमांचल में अगर कोई समीकरण बनता है तो वो बंगाल को भी प्रभावित करता है। यही वजह है कि अमित शाह सीमांचल आ रहे हैं ताकि उनके मिशन 2024 की गूंज बंगाल तक जाए।
अब बात आती है कि ताजा समीकरण क्या कहता है। लोकसभा की सीटों के हिसाब से देखें तो बिहार में 2019 के चुनाव में NDA ने 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसमें 6 सीटें रामविलास पासवान की एलजेपी के हिस्से आई थी, 17 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था और 16 सीटों पर नीतीश कुमार की जेडीयू ने जीत दर्ज की थी। एक सीट कांग्रेस के खाते में आई थी। अब जब समीकरण बदल गए हैं तो NDA के हिस्से में 23 सीटें हैं और महागठबंधन के हिस्से में 17 सीट।
अब अगर सीमांचल का रुख करें तो 2019 में यहां की समीकरण कुछ यूं हैं। पूर्णिया डिविजन में लोकसभा की चार सीटें हैं, जो हैं पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार। इनमें से NDA को 4 में से 3 सीटें मिली थीं। अररिया बीजेपी जबकि पूर्णिया और कटिहार JDU के हिस्से में आई थी। वहीं किशनगंज में चौथी सीट पर महागठबंधन (कांग्रेस) ने जीत दर्ज की थी। अब नीतीश के पाला बदलने के बाद ये समीकरण उलट गया है। NDA के हिस्से में सीमांचल की सिर्फ एक सीट है जबकि महागठबंधन के खाते में तीन। ऐसे समझिए कि अमित शाह सिर्फ मिशन 2024 ही नहीं बल्कि 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए भी बिसात बिछा रहे हैं।
सीमांचल के चक्रव्यूह के चार द्वार
सीमांचल के चक्रव्यूह के चार द्वार हैं, पूर्णिया-किशनगंज-कटिहार और अररिया। अमित शाह और बिहार बीजेपी के नेता ये बखूबी जानते हैं कि इन द्वारों को भेदने के लिए वोटों का ध्रुवीकरण बहुत जरूरी है। अगर इन द्वारों को भेदना है तो सिर्फ वोटरों की जाति के आधार पर समीकरण बनाने से काम नहीं चलेगा। यहां बात लोकल से ग्लोबल तक की हो, यानि ऐसा समीकरण जिसमें वोट जाति के कई ध्रुवों के बजाए सिर्फ दो ध्रुवों में बंट जाएं।
ओवैसी की भी होगी भूमिका
इस प्लान में ओवैसी न चाहते हुए भी काम कर जाएंगे। उनके चार विधायकों को आरजेडी ने तोड़ लिया, लेकिन ओवैसी को इससे फायदा ही होगा क्योंकि जनता का वोट तो उनकी पार्टी को मिला था न कि आरजेडी को। ऐसे में वोटिंग पैटर्न पहले जैसा रह गया तो ओवैसी महागठबंधन के ही वोट को काटेंगे न कि NDA के। खैर, पूरा प्लान तो यही है लेकिन ये कितना कामयाब होगा, इसका पता 2024 के वोटिंग पैटर्न से ही चलेगा।