हिमाचल में नई सरकार के सामने बड़ी चुनौती, पुराना कर्ज चुकाने के लिए लेना पड़ेगा नया कर्ज!

Big challenge in front of the new government in Himachal, new loan will have to be taken to repay the old loan!
Big challenge in front of the new government in Himachal, new loan will have to be taken to repay the old loan!
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शिमला: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे. ऐसे में नतीजे घोषित होने के बाद सूबे में नई सरकार का गठन होगा. सूबे में चाहे किसी भी सियासी दल की सरकार बनेगी, लेकिन सीएम समेत नई सरकार के सामने आर्थिक संकट की चुनौती पेश आएगी. क्योंकि हिमाचल प्रदेश पर 68 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है. हालांकि, किसी भी राज्य के लिए कर्ज लेना बुरी बात नहीं, लेकिन जब प्रिंसिपल अमाउंट चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़े तो स्थिति चिंताजनक हो जाती है. हिमाचल प्रदेश भी इसी वित्तीय संकट से जूझ रहा हैं.

जानकारी के अनुसार, हिमाचल पर इस समय करीब हिमाचल पर कर्ज का कुल भार 68 हजार 500 करोड़ रुपये का कर्ज है. पांच साल पहले जब वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता से हटी थी तो हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ 47 हजार 906 करोड़ रुपये था. उससे पहले जब प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2012 में सत्ता छोड़ी तो हिमाचल प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपये का कर्ज था.दस साल में हिमाचल प्रदेश पर दोगुने से अधिक कर्ज हो गया है. यानी हिमाचल पर दस साल में 36 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बढ़ गया. अब स्थिति चिंताजनक इसलिए है कि हिमाचल सरकार ने नए वेतन आयोग को लागू किया है. सरकारी कर्मियों को एरियर देना है और पेंशनर्स को भी बढ़ी हुई पेंशन भी हर महीने देय होती है. ऐसे में आने वाले दस साल या उससे पहले ही ये कर्ज एक लाख करोड़ रुपये पार हो जाएगा.

11 हजार करोड़ रुपये नया कर्ज
इस साल हिमाचल करीब 11, 200 करोड़ रुपए नया लोन ले रहा है और करोड़ पुराने लोन को चुकाने पर खर्च करने पड़ रहे हैं. कर्ज का दुष्चक्र ऐसा है कि इससे बचा ही नहीं जा सकता. 31 दिसंबर तक राज्य के पास 9700 करोड़ ऋण लेने की अनुमति भारत सरकार से है, इसमें से 7000 करोड़ ले लिया गया है, जबकि 2700 करोड़ अभी और लेना बाकी है. हिमाचल प्रदेश में मार्च 2022 को सीएम जयराम ठाकुर ने पचास हजार करोड़ रुपये से अधिक का बजट पेश किया था. यदि बजट को सौ रुपये के मानक पर देखा जाए तो हिमाचल के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन व पेंशन पर खर्च हो रहा है. सरकारी कर्मियों के वेतन पर सौ रुपये में से 25.31 रुपये खर्च हो रहे हैं. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपये खर्च किए जा रहे हैं. साथ ही हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपये, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं. इसके बाद सरकार के पास विकास के लिए महज 43.94 रुपये ही बचते हैं. ये हाल तब है, जब अभी नए वेतन आयोग की देनदारियों पर बात नहीं हुई है. अकेले एरियर के पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक की रकम बनती हैं.

हिमाचल सरकार को वित्त आयोग के रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर नौ सौ करोड़ रुपये हर महीने मिलते हैं. कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने 1200 करोड़ रुपये के करीब खर्च होता है. इसका अधिकांश भार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट उठा लेता है. यदि हिमाचल सरकार को ये सहारा भी न मिले तो प्रदेश का कर्ज के बोझ तले डूबना तय है.