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नई दिल्ली. ताजमहल के तहखाने में बंद जिन 22 कमरों को लेकर इन दिनों विवाद जारी है, उन कमरों की तस्वीरें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने जारी की है. एएसआई के अनुसार, ये तस्वीरें उस दौरान ली गई थीं जब साल 2022 में इनकी मरम्मत की गई थी. आगरा एएसआई प्रमुख आर के पटेल के अनुसार, तस्वीरें जनवरी 2022 के न्यूजलेटर के रूप में एएसआई की वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं, कोई भी उनकी वेबसाइट पर जाकर इन तस्वीरों को देख सकता है. इनमें बताया गया है कि इन बंद कमरों में रेनोवेशन का काम किया गया था. इस काम में करीब 6 लाख रुपये का खर्च आया था. वहीं पर्यटन उद्योग के सूत्रों ने बताया कि इन कमरों में क्या है, इस बारे में गलत बातें न फैले, इसे रोकने के लिए ही इन तस्वीरों को सार्वजनिक किया गया है.
दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट में अयोध्या निवासी डॉ. रजनीश कुमार की ओर से दायर ताजमहल के इन 22 कमरों को खोलने की मांग वाली जनहित याचिका दायर की गई थी. हालांकि बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया था. याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि आप एक समिति के माध्यम से तथ्यों की खोज की मांग कर रहे हैं, आप कौन होते हैं, यह आपका अधिकार नहीं है और न ही यह आरटीआई अधिनियम के दायरे में है, हम आपकी दलील से सहमत नहीं हैं. कमरे को खोलने की मांग के लिए ऐतिहासिक शोध की जरूरत है, हम रिट याचिका पर विचार करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए याचिका खारिज की जाती है.
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को लगाई थी फटकार
इससे पहले हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर रिसर्च करो, इसके लिए एमए, पीएचडी करो, कोई न करने दे तो हमारे पास आओ. वहीं दूसरी ओर इस याचिका का समर्थन करते हुए राजस्थान से बीजेपी सांसद दीया कुमारी ने कहा था कि ताजमहल की जमीन उनके राजघराने से संबंध रखती है और तहखाने के कमरों में राजघराने के कुछ अंश आज भी मौजूद हैं.
एएसआई के संरक्षण में है ये स्मारक
रजनीश सिंह ने ताजमहल के इतिहास का पता लगाने के लिए एक समिति गठित करने और इस ऐतिहासिक इमारत में बने 22 कमरों को खुलवाने का आदेश देने का आग्रह करते हुए याचिका दायर की थी. याचिका में 1951 और 1958 में बने कानूनों को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध घोषित किए जाने की भी मांग की गई थी. इन्हीं कानूनों के तहत ताजमहल, फतेहपुर सीकरी का किला और आगरा के लाल किले आदि इमारतों को ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया था. कई दक्षिणपंथी संगठनों ने अतीत में दावा किया था कि मुगल काल का यह मकबरा भगवान शिव का मंदिर था. यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है.