नीतीश की काट के लिए BJP का ‘D-M प्लान’, दशहरा के बाद और दीपावली से पहले ‘ऑपरेशन बिहार’

BJP's 'D-M plan' to kill Nitish, 'Operation Bihar' after Dussehra and before Diwali
BJP's 'D-M plan' to kill Nitish, 'Operation Bihar' after Dussehra and before Diwali
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पटना: बिहार में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल समेत छह राजनीतिक दलों के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई है। यानी एक प्रकार से देखा जाए तो तकरीबन 15 साल तक भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से मुख्यमंत्री बने रहने वाले नीतीश कुमार ने उसी बीजेपी को बिहार में लगभग अछूत बना दिया है। ऐसे में बीजेपी के सामने बिहार में चुनौती यह है कि महागठबंधन में शामिल 7 दलों के साथ उन्हें अकेले लड़ाई लड़नी है। इसके लिए उन्हें एक ऐसा चेहरा चाहिए जो वर्तमान महागठबंधन की सरकार को करारा जवाब दे सके और संगठन के काम को भी सुचारू ढंग से बढ़ाते हुए आगामी चुनाव में बीजेपी को बढ़त दिला सके। ऐसे में बीजेपी दशहरा के बाद और दीपावली से पहले ‘ऑपरेशन बिहार’ को अंजाम दे सकती है और नीतीश की काट के लिए ‘D-M प्लान’ पर काम करेगी। इसके तहत नीतीश कुमार वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए दलित या महादलित कार्यकर्ता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ा दांव खेल सकती है।

14 सितंबर को खत्म हो चुका है डॉ संजय जयसवाल का कार्यकाल
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर कार्यरत अमित शाह ने 14 सितंबर 2019 को डॉ संजय जयसवाल को बिहार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत किया था। वर्तमान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल इसी महीने समाप्त हो चुका है। बताया जा रहा है कि दशहरा के बाद और दीपावली के पहले बिहार बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है। बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को लेकर कई नामों की चर्चा राजनीतिक गलियारे में हो रही है। हाल में ही जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने सुशील कुमार मोदी पर कटाक्ष करते हुए यह कहा था कि केंद्रीय नेतृत्व द्वारा सुशील मोदी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा रहा है। हालांकि ललन सिंह के इस कटाक्ष पर सुशील कुमार मोदी की ओर से भी करारा पलटवार आया था।

पिछड़ा या अति पिछड़ा वर्ग से होगा बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को पता है कि बिहार में उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि बिहार में एक बार फिर लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी एक साथ आ चुकी है। ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व को ऐसे चेहरे की तलाश है जो जातीय समीकरण को भी साध सके और महागठबंधन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए संगठन के कार्य और कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर खरा उतर सके। बता दें कि बीजेपी ने 2024 से 2025 की तैयारी के मद्देनजर ही बिहार विधानसभा में भूमिहार जाति से आने वाले विजय कुमार सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष बनाया तो कुशवाहा जाति से आने वाले सम्राट चौधरी को बिहार विधान परिषद में भाजपा विधान परिषद दल के नेता के तौर पर खड़ा कर दिया।

नीतीश कुमार के वोट बैंक में सेंध लगाना है मकसद
बीजेपी यह भली-भांति जानती है कि बिहार में 7 दलों के महागठबंधन के खिलाफ 2024 से 2025 की लड़ाई आसान नहीं होगी। बीजेपी को इसके लिए अपने वोट प्रतिशत में वृद्धि करने के साथ अन्य दलों को भी साथ लाना होगा। बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। सूत्र ने बताया कि बीजेपी यह मानकर चल रही है कि आरजेडी के मुस्लिम-यादव गठजोड़ को तोड़ना मुश्किल है। लेफ्ट पार्टी के अपने वोटर होते हैं जो हर सूरत में लेफ्ट को ही वोट करते हैं। कांग्रेस का अपना कोई जनाधार नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जनाधार लगातार गिर रहा है और महागठबंधन के साथ जब से उन्होंने सरकार बनाई है, तब से वह जनता का भी विश्वास खो चुके हैं। ऐसे में जनता दल यूनाइटेड के जो वोट बैंक हैं, उसे तोड़ना आसान है। बीजेपी के सूत्र ने बताया इसी योजना के तहत सम्राट चौधरी को विधान परिषद में बीजेपी विधायक दल का नेता बनाया गया है।

60 साल से अधिक उम्र वाले नहीं बनेंगे प्रदेश अध्यक्ष
भारतीय जनता पार्टी के विश्वसनीय सूत्र ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार यह तय किया है कि बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष किसी भी हाल में 60 साल से अधिक के उम्र का कार्यकर्ता नहीं हो सकता। ऐसे में जो अटकलें लगाई जा रही थी कि सुशील कुमार मोदी, प्रेम कुमार, नंदकिशोर यादव जैसे नेताओं को केंद्रीय नेतृत्व फिर से प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे सकती है, उस पर विराम लग जाता है। बीजेपी के सूत्र ने बताया कि इस बार प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर युवा चेहरा उभर कर आएगा। बिहार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष ना सिर्फ युवा होगा बल्कि वह पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से भी होगा।

इस बार यादव प्रदेश अध्यक्ष नहीं
बीजेपी के सूत्र ने बताया कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर इस बार कोई गैर यादव ही विराजमान होगा। सूत्र का कहना था कि इसके पहले प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर दो बार यादव जाति के कार्यकर्ता और बिहार प्रभारी के तौर पर भी यादव जाति के ही कार्यकर्ता बखूबी काम कर चुके हैं। इसलिए इस बार गैर यादव प्रदेश अध्यक्ष के बनने की संभावना काफी अधिक है। बता दें कि नवनियुक्त बिहार बीजेपी प्रभारी विनोद तावड़े के पहले बिहार प्रभारी के तौर पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव बिहार के संगठन का काम बढ़ा रहे थे और प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर संजय जयसवाल के पहले नित्यानंद राय ने बिहार बीजेपी की कमान संभाल रखी थी। उनके केंद्रीय मंत्री बनने के बाद तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने डॉ संजय जयसवाल को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत किया था।

प्रदीप सिंह का नाम भी है चर्चा में
इसी महीने दो दिवसीय बिहार दौरे के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के सीमांचल इलाके में चुनावी शंखनाद फूंक चुके हैं। सीमांचल के इलाके में अररिया, कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज जिले आते हैं। प्रदीप सिंह सीमांचल के इसी 4 लोकसभा क्षेत्र के अररिया से सांसद हैं और वह अत्यंत पिछड़ी जाति से आते हैं। हालांकि प्रदीप सिंह का नाम बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सीमांचल पर फोकस कर बीजेपी पूरे बिहार को साध सकती है। बीजेपी के सूत्र का कहना है कि प्रदीप सिंह कर्मठ कार्यकर्ता के तौर पर काम करने वाले रहे हैं और संगठन से भी जुड़े रहे हैं। लेकिन प्रदीप सिंह के नाम पर सहमति बन जाए, ऐसा कहा नहीं जा सकता।

डॉ संजीव चौरसिया का नाम भी चर्चा में
पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक बनने वाले डॉक्टर संजीव चौरसिया का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर राजनीतिक गलियारे में तैर रहा है। बता दें कि संजीव चौरसिया संगठन के साथ-साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी महत्वपूर्ण पद पर कार्य कर चुके हैं। संजीव चौरसिया के पिता गंगा प्रसाद चौरसिया पुराने जनसंघी है। एक समय था जब पटना स्थित गंगा प्रसाद चौरसिया के आवास में बीजेपी के कद्दावर नेताओं का जमावड़ा लगा करता था। अटल बिहारी वाजपेयी समेत बीजेपी के कई बड़े नेता पटना आने पर गंगा प्रसाद चौरसिया के घर ही ठहरा करते थे। बचपन से ही संगठन का कार्य को समझने वाले संजीव चौरसिया एक बेहतर प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं।

विधानसभा में सचेतक बनाए जा सकते हैं संजीव चौरसिया
बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर संजीव चौरसिया एक बेहतर उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन समस्या यह है कि वैश्य समुदाय से आने वाले संजीव चौरसिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना अन्य जाति के नेताओं को नाराज कर सकता है। क्योंकि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जयसवाल भी वैश्य समुदाय से आते हैं। ऐसे में वैश्य समुदाय से ही आने वाले संजीव चौरसिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है तो पार्टी के भीतर नाराजगी बढ़ सकती है। बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि इस स्थिति में पार्टी की ओर से संजीव चौरसिया को बिहार विधानसभा में सचेतक के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है। हालांकि सूत्रों ने यह भी बताया कि सचेतक के तौर पर संजय सरावगी के नाम का भी चर्चा चल रहा है।

पूर्व विधायक प्रेम रंजन पटेल भी रेस में
भारतीय जनता पार्टी के सूत्र ने यह भी जानकारी दी कि इस बार बीजेपी को अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए किसी दल के वोट बैंक को तोड़ना बेहद जरूरी है। ऐसे में जनता का विश्वास खो चुके नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड का वोट बैंक तोड़ना बीजेपी के लिए काफी आसान हो सकता है। सूत्र ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व के द्वारा 32 साल से संगठन से जुड़े और दो बार विधायक रहे कुर्मी जाति से आने वाले प्रेम रंजन पटेल को भी प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इससे बीजेपी कुर्मी जाति के वोट बैंक पर सेंध लगाकर नीतीश कुमार को करारा जवाब दे सकती है।

जनक चमार के नाम का समर्थन
बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए पूर्व सांसद और नीतीश सरकार में खनन मंत्री रह चुके जनक राम का नाम भी सुर्खियों में है। गोपालगंज क्षेत्र से आने वाले जनक राम दलित समुदाय से आते हैं और अगर दलित समुदाय से किसी को अध्यक्ष बनाने की बात हुई तो जनक राम भी मजबूत दावेदार साबित होंगे। जनक राम के प्रदेश अध्यक्ष बनने से न सिर्फ युवा चेहरा सामने आएगा बल्कि बीजेपी नीतीश कुमार के उस दलित-महादलित वोट बैंक पर भी निशाना साधा सकेगी, जिस पर नीतीश कुमार ने वर्तमान समय तक कब्जा कर रखा है। बीजेपी के सूत्र यह भी बताते हैं कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जयसवाल ने भी जनक चमार के नाम का ही समर्थन किया है।