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पानीपत। हरियाणा में इन दिनों एक नाम सर्वाधिक चर्चा में है। भूपेंद्र यादव। भूपेंद्र हैं तो हरियाणवी, लेकिन सिर्फ हरियाणवी नहीं, राज-हरियाणवी। इनका पैतृक गांव जमालपुर गुरुग्राम में है। फिलहाल हरियाणा के अहीरवाल कहे जाने वाले हिस्से में उनकी जन आशीर्वाद यात्रएं चल रही हैं, जिन्हें अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है। दिलचस्प बात यह भी है कि अभी कुछ दिन पहले जब उन्हें केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया, तब तक हरियाणा के ही बहुत से लोगों को नहीं पता था कि भूपेंद्र हरियाणा के मूल निवासी हैं। लोग उन्हें राजस्थान का ही समझते थे। उनके हरियाणा कनेक्शन की चर्चा तब भी कम ही हुई, जब उन्होंने जमालपुर गांव में अपनी पैतृक हवेली में पुस्तकालय खोला और अमित शाह से उसका लोकार्पण कराया।
हरियाणा में उनकी चर्चा न होने का कारण यह भी था कि भाजपा ने राजस्थान से ही उन्हें राज्यसभा में भेजा था। उनका लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई अजमेर में हुई, जहां उनके पिता रहते थे। अजमेर में ही वह भाजपा से जुड़े। हालांकि बाद में वह कुछ दिनों के लिए गुरुग्राम लौटे और भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष बने, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने के कारण अपनी भूमिका हरियाणा में नहीं रेखांकित कर सके।
अब भूपेंद्र यादव इसलिए टाकिंग प्वाइंट बन गए हैं, क्योंकि हरियाणा के लोगों को लगने लगा है कि उनके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ अलग सोच रखा है। इसके पीछे लोगों के तर्क भी हैं। जैसे, मोदी-शाह दूर की सोचते हैं। उनकी रणनीति को विरोधी तो क्या उनके निकटस्थ भी नहीं भांप सकते है। सो, अगले विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र भले मुख्यमंत्री का चेहरा न हों और भाजपा मनोहर के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़े, लेकिन 2029 के विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे और तब तक भाजपा उन्हें हरियाणा में एक सशक्त नेता के रूप में स्थापित कर देगी। अभी भूपेंद्र मात्र 52 वर्ष के हैं। सात वर्ष बाद वह 59 के होंगे और मनोहर लाल सत्तर पार कर चुके होंगे। भूपेंद्र की लांचिंग का कारण राजनीतिक समीकरण भी हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में जब हरियाणा में भाजपा सत्ता में आई तो उसके दो कारण थे-पहला, मोदी की छवि और दूसरा, पीवाई समीकरण। पीवाई अर्थात पंजाबी-यादव, जिन्होंने टूटकर भाजपा को वोट किया। वैसे तो सभी जातियों ने उस चुनाव में भाजपा को वोट किया था, पर तब भाजपा के लिए ये दोनों समुदाय जुनून से भरे हुए थे। 2019 में भी पीवाई समीकरण से ही भाजपा सत्ता में लौटी, लेकिन अहीरवाल में यादव समुदाय पर अच्छी पकड़ रखने वाले केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत भाजपा के अन्य समíपत नेताओं को लगातार अपमानित करते रहे, जो 2014 के चुनावों के पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे।
उन्होंने भाजपा के नेताओं का टिकट कटवाकर अपने लोगों को दिए जाने की जिद की। सुधा यादव से भी राव का छत्तीस का आंकड़ा है। सुधा ने 1999 के लोकसभा चुनाव में राव इंद्रजीत को हराकर महेंद्रगढ़ सीट से कमल खिलाया था। तब राव कांग्रेस के प्रत्याशी थे। राव किस तरह अपनी शर्ते मानने के लिए भाजपा नेतृत्व को विवश करते थे, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह भाजपा के जिस कार्यकर्ता का टिकट कटवाते थे, उसे सरकार किसी निगम अथवा अन्य उपक्रम का चेयरमैन बनाती थी तो वह भी राव को नागवार गुजरता था। राव तो एक समय रैलियां कर मुख्यमंत्री मनोहर लाल को ही चैलेंज करते हुए कहा करते थे कि इस बार नेता को मुख्यमंत्री बनाना, किसी ऐसे को नहीं, जो मुख्यमंत्री बनने के बाद नेता बने। स्पष्ट है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को यह अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए उसने भी तय कर लिया कि अहीरवाल में किसी ऐसे चेहरे पर दांव लगाया जाए जो भाजपा का, भाजपा के लिए और कार्यकर्ताओं को स्वीकार्य हो। तलाश खत्म हुई भूपेंद्र यादव के नाम पर।
भूपेंद्र यादव की लांचिंग के साथ ही राव इंद्रजीत से पीड़ित भाजपा के सभी भाजपानिष्ठ लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। सबको लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व ने राव इंद्रजीत को जवाब दे दिया है। राव केंद्र में राज्यमंत्री हैं, जबकि भूपेंद्र कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। ऐसा नहीं कि राव इंद्रजीत इस घटनाक्रम से क्षुब्ध न हों, वह अपना क्षोभ सार्वजनिक भले न कर रहे हों, लेकिन इसे छिपा भी नहीं रहे हैं। यह बात अलग है कि वर्तमान परिस्थितियों में कुछ कर पाने की स्थिति में भी नहीं हैं। एक बात और यद्यपि भूपेंद्र विधिवेत्ता हैं, लेकिन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन जैसे सामाजिक विषय में उनकी गहन रुचि है। सो, वह हरियाणा के राजनीतिक मौसम में भी परिवर्तन के बारे में अध्ययन कर ही आए होंगे। वैसे भी राजनीतिक मौसम को परिवíतत करने का उनका विशद अनुभव है। भारतीय जनता पार्टी ने उनको गुजरात चुनाव में प्रभारी बनाया था। गुजरात में सत्ता में फिर से भाजपा लौटी। बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रभारी बन गया तो भाजपा ने इतनी शानदार जीत हासिल की कि बड़े भाई की भूमिका निभा रहे जदयू से अधिक सीटें लेकर आई।