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अगर आप लंबे समय तक मोबाइल फोन पर बात करने वालों में से हैं, तो यह खबर आपके लिए है. WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, लंबे समय तक मोबाइल फोन के इस्तेमाल से ब्रेन और सिर का कैंसर नहीं होता है.
WHO के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि वर्षों तक मोबाइल इस्तेमाल करने के बावजूद ग्लियोमा और लार ग्रंथि के ट्यूमर जैसे कैंसर के खतरे में कोई वृद्धि नहीं हुई है. शोध के बारे में बात करते हुए, केन कैरीपिडिस ने कहा, ‘मोबाइल फोन के इस्तेमाल में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, हमने निष्कर्ष निकाला है कि मोबाइल फोन और ब्रेन कैंसर या अन्य सिर और गर्दन के कैंसर के बीच कोई संबंध नहीं है.’
मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर कई भ्रांतियां: WHO की यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण है. वर्षों से, मोबाइल फोन जैसे वायरलेस तकनीक वाले उपकरणों से होने वाले नुकसान के बारे में कई भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं. ये उपकरण रेडियो-फ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण उत्पन्न करते हैं. इन्हें रेडियो तरंगें भी कहा जाता है. WHO की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने 2011 में रेडियो फ्रीक्वेंसी और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड को कैंसर पैदा करने वाले कारकों के रूप में वर्गीकृत किया था.
मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर डॉक्टर क्या कहते हैं?
दिल्ली एम्स के डॉ. अभिषेक शंकर का कहना है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल को कभी भी कैंसर से बचाव के तरीके के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. सेल फोन से निकलने वाला रेडिएशन नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन होता है. यह कैंसर का कारण नहीं बनता है. एक्स-रे मशीनों से निकलने वाला रेडिएशन आयोनाइजिंग रेडिएशन होता है. यह कैंसर का कारण बन सकता है. आयोनाइजिंग रेडिएशन में रासायनिक बंधनों को तोड़ने, परमाणुओं से इलेक्ट्रॉनों को बाहर निकालने और जीवित पदार्थों में कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा होती है.
मुंबई के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. प्रीतम कटारिया का कहना है कि ‘मोबाइल फोन बहुत कम तीव्रता वाली रेडियो तरंगें छोड़ते हैं. मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेडियोधर्मी तत्व थोरियम के संपर्क में आने से भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.’