CM नीतीश ने 2024 के रण के लिए तलाशे ‘2जी-3जी स्कैम’ जैसे हथियार, BJP के पास क्या है इसकी ढाल?

CM Nitish seeks weapons like '2G-3G scam' for the battle of 2024, what shield does BJP have?
CM Nitish seeks weapons like '2G-3G scam' for the battle of 2024, what shield does BJP have?
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पटना: कहावत है कि दोस्त जब दुश्मन बनते हैं तो वह आम दुश्मनों से ज्यादा खतरनाक होते हैं। इसका कारण यह है कि दोस्ती के दरमियान दो दोस्त एक दूसरे की खामियों और खूबियों को बेहतर तरीका से जान लेते हैं। और जब दुश्मन बनते हैं तो वही खामियां सामने लाकर उन्हें गलत साबित करने की कोशिश की जाती है। वर्तमान समय में बिहार की राजनीति में भी यही हो रहा है। 20 साल तक जिस पार्टी का साथ लेकर नीतीश कुमार ने केंद्र और राज्य की राजनीति में सत्ता का स्वाद चखा। आज उसी नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी के बीच वाक युद्ध चल रहा है।

जेडीयू के पूर्व विधायक और पार्टी प्रवक्ता राहुल शर्मा ने कहा देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान एम्स (AIIMS) में साइबर हमला कर 4 करोड़ से ज्यादा मरीजों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकरी चुरा ली गई। जेडीयू का कहना है कि यह आम लोगों के साथ ही देश की सुरक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकरी के चोरी का भी मामला है। लेकिन केंद्र सरकार आज 10 दिन बीत जाने के बाद भी हाथ पे हाथ रखे बैठी है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में 1 जुलाई 2017 से लोगों से आधार कार्ड को पैन कार्ड से लिंक करने के लिए बाध्य किया गया। उसके बाद से साइबर क्राइम में अप्रत्याशित वृद्धि हुयी। जेडीयू के पूर्व विधायक राहुल कुमार ने कहा कि 2017 में जहां साइबर मामले में 53 हजार केस हुए थे, वह 2021 में बढ़ कर 14 लाख से ऊपर पहुंच गया। उन्होंने कहा कि यह आंकड़े खुद लोकसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने दिया था।

जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार साइबर क्राइम को रोकने नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की नाकामी की वजह से ही की भारत दुनिया के सबसे ज्यादा साइबर अटैक वाले देशो शामिल है। जेडीयू प्रवक्ता राहुल कुमार ने यह भी कहा कि भारत साइबर अटैक के मामले में दुनिया के टॉप 3 देशों में शामिल हो चुका है। जहां हैकरों द्वारा दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर भारत के डाटा की चोरी कर ली जाती है। उन्होंने कहा कि 23 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में आधार को स्वैच्छिक करार देते हुए कहा था कि सरकार किसी योजना अथवा सेवा लाभ के लिए नागरिकों पर आधार दिखाने के लिए दबाव नहीं डाल सकती है। इसके अलावा ना ही उन्हें किसी भी तरह का लाभ देने से मना किया जा सकता है। इसके बावजूद 2018 में यूआईडीआई (UIDI) के पूर्व चेयरमैन आरएस शर्मा ने ट्वीटर पर अपना आधार नंबर शेयर करते हुए डाटा चोरी की चुनौती दी थी। जिसके 24 घंटे के भीतर हैकर्स ने उनका सारा डाटा उड़ा लिया था।

जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि 2018 में 200 सरकारी वेबसाइट से आधार डाटा लीक हो गया था। उन्होंने कहा कि सेंटर ऑफ इंटरनेट एंड सोसाइटी के मुताबिक 13 करोड़ लोगों का आधार नंबर और दूसरी गोपनीय डाटा भी इसी तरह लीक हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने आधार कार्ड को लिंक करने के पक्ष में तर्क रखते हुए कहा था कि प्राइवेसी मूलभूत अधिकार नहीं है। लेकिन अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के तर्क को गलत बताते हुए फैसला सुनाया। जिसमें कहा गया प्राइवेसी भारतीय संविधान के अंतर्गत मूलभूत अधिकार है और डाटा सुरक्षा को लेकर जल्द से जल्द कानून बनाने की भी सलाह दी थी। आज देश के लगभग सभी लोगों का आधार कार्ड उनके पैन कार्ड, बैंक अकाउंट, मोबाइल नम्बर, जीवन बीमा, पेंशन योजना समेत अन्य तमाम दस्तावेज़ों से लिंक हो चुका है। आधार डेटा के चोरी होने पर एक झटके में सभी के बैंक, फ़ोन, योजनाओं के लाभ से संबंधित जानकारियों का इस्तेमाल डेटा चोर आसानी से एक झटके में लोगों के एकाउंट से पैसे उड़ा सकते हैं।

जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि एक आंकड़े के अनुसार डाटा चोरी के कारण वर्ष 2019 में देश की अर्थव्यवस्था को 1.25 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। यह घाटा टू जी, थ्री जी, कोल गेट जैसे घोटालों के बराबर है। इस तरह की डाटा चोरी से राष्ट्रीय सुरक्षा को भी नुकसान है। उन्होंने कहा एम्स (AIIMS) जैसे संस्थान में देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सभी मंत्री, सेनाध्यक्ष और सुरक्षा एजेन्सी के अधिकारियों का इलाज होता है और वहां इनसे संबंधित तमाम सूचनाएं होती हैं। चीन जैसे तमाम देशों की सेना में साइबर सिक्यरिटी से सम्बंधित सुरक्षा दस्ता है, लेकिन हिंदुस्तान में नहीं है। जेडीयू प्रवक्ता ने यह भी कहा कि देश में साइबर अपील ट्राइब्यूनल के जज का पद वर्ष 2012 से ही खाली है, यही नहीं ट्राइब्यूनल के वेबसाइट को भी बंद कर दिया गया है। 2018 में दिल्ली में पहला साइबर क्राइम कोर्ट स्थापित तो किया गया लेकिन इसकी सुनवाई सामान्य कोर्ट में ही हो रही है। एम्स के डेटा चोरी पर सरकार की उदासीनता से यही ज़ाहिर होता है कि सरकार देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है। जेडीयू ने केंद्र सरकार से साइबर क्राइम और उसे रोकने के लिए किए गए प्रयासों एवं भविष्य की योजनाओं पर एक श्वेत पत्र जारी करने की माँग की है।

साल 2012-2013 में देश की मीडिया में 2जी, 3जी और कोल गेट जैसे घोटालों की खबरें हर रोज सूर्खियां बनती थी। उस वक्त विपक्ष में बैठी बीजेपी के तमाम बड़े नेता इन घोटालों को लेकर मीडिया में आकर बयान देते थे। बीजेपी के इन हमलों से उस वक्त की मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार बैकफुट पर आ गई थी। माना जाता है कि इन घोटालों को जोर शोर से उठाने का बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में खूब फायदा हुआ। हालांकि इन मामलों में जांच होने के बाद कुछ खास परिणाम नहीं आए। लेकिन बीजेपी इसका भरपूर राजनीतिक लाभ उठाने में कामयाब रही। ऐसे में जेडीयू की ओर से डेटा चोरी का मुद्दा उठाए जाने पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि क्या नीतीश कुमार 2024 में इस मुद्दे को गर्मजोशी के साथ उठाएंगे। क्या सीएम नीतीश अपने प्रवक्ताओं की ओर से इन विषयों पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इन कथित घोटालों पर जनता का मूड भांपना चाह रहे हैं। ताकि वह इसे केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ 2024 के लोकसभा चुनाव में हथियार बना सकें।