
नई दिल्ली। राजस्थान की सियासत में एक कहावत है- जिसके जाट, उसके ठाठ. सूबे की सियासत में जाट मतदाता जिस दल के साथ चले जाएं, जयपुर की गद्दी तक का रास्ता उस दल के लिए आसान हो जाता है. सूबे की 199 विधानसभा सीटों के लिए 25 नवंबर को मतदान होना है और मतदान से पहले सूबे की सियासत का केंद्र एक बार फिर जाट वोटर बन गए हैं.
सत्ताधारी कांग्रेस हो या विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), दोनों ही दलों का जोर जाट मतदाताओं को अपने पाले में करने पर है. कांग्रेस ने 200 में से 36 सीटों पर जाट नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है तो वहीं बीजेपी ने भी 31 सीटों पर जाट कार्ड चला है. उम्मीदवारी में जाट कार्ड के बाद अब दोनों दलों के बीच जाट वोट की लड़ाई चुनाव प्रचार में भी साफ नजर आ रही है.
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कांग्रेस ने जाट महासभा की जातिगत जनगणना वाली मांग को चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किया ही है, पार्टी जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के नारे को भी बुलंद करती दिख रही है. इन सबके बीच अब जाट वोट और कांग्रेस के कैंपेन के बीच बीजेपी के ट्रंप कार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी एंट्री हो गई है. पीएम मोदी ने जाटलैंड से जाट समाज को आरक्षण की याद दिलाई है और कांग्रेस पर भी हमला बोला है.
राजस्थान के जाटलैंड भरतपुर और नागौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस को 50 साल बाद ओबीसी की याद आई है. जाट को ओबीसी आरक्षण के दायरे में लाने का काम भी बीजेपी की सरकार ने किया. 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी खुद को जाटों की बहू बताते हुए वोट मांग चुकी हैं. लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी का जाट कार्ड, संकेत क्या हैं?
जाट महासभा 40 टिकट मांग रहा था, कांग्रेस ने उतने ना सही लेकिन सबसे अधिक जाट नेताओं को टिकट दिए. पार्टी ने महासभा की जातिगत जनगणना वाली मांग को भी मुद्दा बना लिया है. राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे तक, कांग्रेस के तमाम बड़े नेता अपनी रैलियों में फिर से सत्ता में लौटने पर जातिगत जनगणना कराने के वादे कर रहे हैं. अब इस सीन में राष्ट्रीय लोक दल यानी आरएलडी की भी एंट्री हो गई है.
आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने भरतपुर से पार्टी के उम्मीदवार के समर्थन में चुनावी रैली की जिसमें सीएम गहलोत भी थे. आरएलडी का कांग्रेस से गठबंधन है और आरएलडी ने फिर से गहलोत सरकार का नारा भी दे दिया है. पीएम मोदी के जाट कार्ड के पीछे एक वजह ये भी बताई जा रही है कि अबकी हनुमान बेनीवाल की पार्टी अलग ताल ठोक रही है जो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थी. आरएलपी के भी चुनाव मैदान में होने की वजह से ये भी कहा जा रहा है कि अशोक गहलोत की सरकार से नाराज जाट वोट बीजेपी और आरएलपी में बंट सकता है. ऐसा हुआ तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
बीजेपी-कांग्रेस ने उतारे कितने जाट
बीजेपी ने 31 जाट नेताओं को टिकट दिया है तो वहीं, कांग्रेस ने 36. इन दोनों के अलावा तीन जाट पार्टियां भी चुनाव मैदान में चुनौती दे रही हैं- हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी), जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी). सूबे की सबसे बड़ी ओबीसी आबादी यानी जाट समाज के 14 फीसदी वोट बैंक पर बीजेपी और कांग्रेस ही नहीं, जाट नेता बेनीवाल के साथ ही यूपी और हरियाणा के जाट दलों की भी नजर है.
राजस्थान में सियासत का केंद्र जाट क्यों
राजस्थान में हर दल की सियासत जाट वोट के इर्द-गिर्द ही क्यों घूम रही है? इसके पीछे वजह जाटलैंड की सियासत तो है ही, एक वजह ये भी है कि जाट जिसके साथ जाते हैं, लगभग एकमुश्त जाते हैं. नागौर के साथ ही भरतपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर जैसे करीब दर्जन भर जिले ऐसे हैं, जहां जाट मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. ऐसी सीटों की तादाद करीब 65 है. इनके अलावा राजधानी जयपुर और आसपास की कुछ सीटों पर भी जाट मतदाता जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
राजस्थान के चुनाव में जाट सीएम का मुद्दा भी छाया हुआ है. हनुमान बेनीवाल जाट सीएम का मुद्दा अपनी जनसभाओं में पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं. बेनीवाल की रणनीति जाट वोट की राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी को जाट सीएम की पिच पर लाने की है. बीजेपी जाटलैंड में ज्योति मिर्धा को नागौर सीट से उतारकर पहले ही बड़ा दांव चल चुकी है. कांग्रेस के टिकट पर 2009 में नागौर सीट से सांसद रह चुकीं डॉक्टर ज्योति मिर्धा कांग्रेस के कद्दावर जाट नेता नाथूराम मिर्धा की पोती हैं.