पीएम मोदी की सलाह का परिणाम; पिता की पुरानी जीप खींच रहे तेजस्वी यादव

इस खबर को शेयर करें

पटना,। राजनीति में दिल की कोई जगह नहीं होती, यहां केवल दिमाग काम करता है। राजनीति में दिल से काम लें तो सब गड़बड़ हो जाए, दिमाग सही चले तो सारी गोटियां फिट। लेकिन बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का दिल कुछ मुलायम है और शायद इसीलिए परिपक्वता की कमी दिखाई देती है। पिछले महीने पटना आए प्रधानमंत्री के साथ उनकी मुलाकात कुछ ऐसी रही कि वे सेहत को लेकर गंभीर हो चले हैं। तरह-तरह की हरकतें कर रहे हैं और उसकी फोटो भी आम कर रहे हैं, ताकि लोगों को पता चल सके कि आजकल समय कहां बीत रहा है? अब शायद उसका असर भी पड़ा है, क्योंकि ताकत ने अब भाजपा को चुनौती दे दी है कि अगर दम हो तो अकेले लड़ के दिखाए। भाजपा ने इस पर कोई हुंकारी नहीं भरी, लेकिन तेजस्वी उसे ललकारने में जुटे हैं। शायद प्रधानमंत्री की घुट्टी ज्यादा काम कर गई है।

तेजस्वी यादव की टेबल टेनिस खेलते फोटो बाहर आई
तेजस्वी यादव कुछ भारी तो जरूर हो गए थे, लेकिन न तो उनको और न ही उनके समर्थकों को यह दिखाई दे सका। गत 12 जुलाई को जब प्रधानमंत्री पटना आए तो उनकी परिपक्व दृष्टि यह भांप गई। जब कार्यक्रम में मंच पर दोनों का आमना-सामना हुआ तो मोदी से रहा नहीं गया। उन्होंने सलाह दी कि कुछ वजन कम करिए। इसके बाद उन्होंने उनके पिता लालू प्रसाद यादव का हाल-चाल पूछा, जो दिल्ली में चिकित्सकों की देख-रेख में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। पिता के स्वास्थ्य तक तो ठीक था, लेकिन अपने स्वास्थ्य को लेकर दी गई टिप्पणी दिल को भेद गई। तेजस्वी अपने शरीर को लेकर चिंतित हो गए। घर में खेलना-कूदना और ताकत का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। कुछ दिन पहले उनकी एक तस्वीर इंटरनेट मीडिया पर आई जिसमें घर की जीप को खींचते दिखाई दे रहे थे। फिर क्रिकेट और टेबल टेनिस खेलते फोटो बाहर आई। इन फोटो ने लोगों को चेतना दी कि मोदी जी की बात तेजस्वी बाबू को खासी लग गई है। यह बुरी बात नहीं है, इस समय अगर स्वास्थ्य अच्छा तो सब बेहतर। लेकिन बात यहीं नहीं रुकी। सेहत के अखाड़े से बाहर आकर राजनीति के अखाड़े में पहुंच कर तेजस्वी, मोदी जी की पार्टी को ही ललकार उठे कि दम है तो अकेले लड़ के दिखाए भाजपा।

यह भी सच है कि राजनीति में कुछ भी व्यर्थ नहीं बोला जाता। शब्दों के मायने होते हैं और समझने वाले उसे समझ लेते हैं। वाकई बिहार की धरती पर भाजपा के लिए अकेले लड़ना आफत मोल लेना है। अभी नीतीश की पार्टी जदयू साथ है। दोनों के वोटों का गणित सत्ता दिला देता है और जदयू अलग होकर तेजस्वी की पार्टी राजद के साथ होता है तो 2015 के विधानसभा चुनाव जैसे हाल की संभावना है, जब दोनों ने मिलकर 243 में से 151 सीटें जीत ली थीं और भाजपा को केवल 53 सीटें हाथ आई थीं। वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा था 24.4 प्रतिशत, लेकिन राजद-जदयू के 35.2 प्रतिशत से बहुत कम। इधर राजद-जदयू की नजदीकियों की चर्चा भी चली, इसलिए तेजस्वी की ललकार के मायने हैं, पर भाजपा इसमें नहीं फंसने वाली, यह सब जानते हैं।

दम है तो भाजपा अकेले लड़कर दिखाए
अभी पिछले सप्ताह वरिष्ठ भाजपा नेता व गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पटना आए थे। सभी को निर्देश दे गए कि कोई भी अपने सहयोगी दलों के विरुद्ध अनर्गल बयानबाजी नहीं करेगा। यह भी कह गए कि 2024 का लोकसभा और 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। इस कथन के जरिए निचले स्तर पर हो रहे वाक्युद्ध को रोकना भी उनका उद्देश्य था, लेकिन गुरुवार को तेजस्वी के ललकारने के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने यह कहकर भाजपा के दावे की हवा निकाल दी कि अभी हम तैयार हो रहे हैं, अभी तय नहीं किया कि साथ ही लड़ेंगे। ललन सिंह का यह कथन भाजपा के सारे प्रयासों पर पानी फेरने वाला है और तेजस्वी की उस ललकार को हवा देने वाला कि दम है तो भाजपा अकेले लड़कर दिखाए। अब इसके निहितार्थ निकाले जा रहे हैं कि वाकई जदयू ऐसा सोच रहा है या यह केवल सीटों की संख्या बढ़ाने को लेकर दबाव बनाने का प्रयास मात्र है।