Deepika Padukone Foundation: एक एक्ट्रेस भले ही पर्दे पर और अपनी सोशल लाइफ में हंसती-मुस्कराती दिखती है लेकिन कई बार वह अपनी पर्सनल लाइफ में कितने मुश्किल दौर से गुजर रही होती है, किसी को पता नहीं चलता. दीपिका पादुकोण आठ-दस साल पहले इस दौर से गुजर चुकी हैं, जब वह अपने करियर के शिखर पर थीं. उनकी फिल्में चल रही थीं. दीपिका उस मुश्किल दौर से निकल चुकी हैं और अब मानसिक स्वास्थ्य की जरूरत बारे में खुल कर बात करती हैं. दीपिका मेंटल हेल्थ पर लोगों को जागरूक बनाने का अभियान चलाती हैं. उनका अपना लीव लाफ लव फाउंडेशन भी है, जो इस दिशा में काम करते हुए मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझते हुए लोगों की मदद करता है.
जब हावी हो गया था डिप्रेशन
हाल में मुंबई में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंची दीपिका ने कहा है कि उनके जीवन में वह समय भी था, जब उनका करियर बढ़िया चल रहा था, उनके पास सब कुछ था मगर चैन नहीं था. वह डिप्रेशन की शिकार हो गई थीं. उन्होंने 2014 को याद करते हुए कहा कि मैं खुद को बहुत अकेली महसूस करती थी. उन्होंने कहा कि वह बहुत बाद में समझ पाई कि डिप्रेशन मुझ पर हावी हो गया है. उन्होंने कहा कि तब कोई कारण नहीं था कि मैं निराश-हताश होती मगर फिर भी पता नहीं क्या था कि मैं एक बार बिस्तर पर गिरने के बाद उठना नहीं चाहती थी. मैं सिर्फ सोती रहना चाहती थी क्योंकि मुझे लगता था कि सिर्फ इसी तरह से मैं दुनिया में किसा का भी सामना करने से बची रह सकती हूं. वह ऐसा समय था जब मुझे बार-बार आत्महत्या करने का ख्याल आता था.
मां ने समझ लिया था कुछ गड़बड़ है
दीपिका ने कहा कि वास्तव में मेरी मां ने यह स्थिति देखने के बाद समझ लिया कि मेरा साथ कुछ गड़बड़ है और डॉक्टर से मिलना चाहिए. दीपिका के अनुसार मेरी हालत देखने के बाद मां ने मुझसे पूछा कि क्या कोई बॉयफ्रेंड का मामला है या फिर काम में कुछ गड़बड़ है. आम तौर पर वह ऐसे सवाल नहीं पूछती थीं, मगर तब वैऐसा कुछ नहीं था. बस, मुझे मेरे अंदर खालीपन महसूस होता था. तब हम हमारे फैमेली काउंसलर से मिले. उन्होंने कहा कि मुझे साइकिएट्रिस्ट प्रोफेनशल मदद लेने की जरूरत है और वह बिल्कुल ठीक थीं. कई महीनों तक मैंने साइकिएट्रिस्ट के साथ सिटिंग की, दवाइयां ली और तब उस मुश्किल दौर से उबर सकी. दीपिका का कहना है कि हमारे समाज में इस बात को लोग ठीक नहीं समझते कि किसी साइकिएट्रिस्ट से आप अपना इलाज करा रहे हैं. मैं अपनी दिमागी हताशा के लिए दवाइयां नहीं लेना चाहती थी, लेकिन जब मैंने दवा लेना शुरू की, तब अपने अंदर परिवर्तन महसूस किया और मुझे फिर से सब कुछ सामान्य और अच्छा महसूस होने लगा. सच यह है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करनी चाहिए और डॉक्टर के पास जाने में झिझकना नहीं चाहिए.