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नई दिल्ली: अगर आप डायबिटीज (Diabetes) के मरीज हैं और रात में आपका बीपी (Blood Pressure) बढ़ जाता है, तो ये आपने लिए जानलेवा हो सकता है. एक स्टडी के मुताबिक, टाइप-1 और टाइप 2 वाले मरीज जिनका बीपी (BP) रात में अचानक बढ़ जाता है, उनमें मरने का जोखिम उन लोगों की तुलना में ज्यादा है, जिनका रक्त चाप (BP) नींद के दौरान कम होता है.
रात में बढ़ा हुआ BP क्यों खतरनाक?
टाइप-1 और टाइप 2 डायबिटीज के लिए जरूरी है कि उनका ब्लड प्रेशर लेवल भी कंट्रोल में रहे. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के हाइपरटेंशन साइंटिफिक में हाल छपी एक स्टडी के मुताबिक डायबिटीज के जिन मरीजों का बीपी रात में सोते समय बढ़ जाता है, उन्हें सावधान रहना चाहिए. रात में बढ़ा हुआ बीपी आपके लिए खतरनाक हो सकता है.
डायबिटीज के मरीजों को खतरा
ये स्टडी 21 साल के अध्ययन पर बेस्ड है. वैज्ञानिकों ने पाया कि रात में बीपी के बढ़ने से डायबिटीज के मरीजों को उन लोगों से दोगुना खतरा रहता है, जिनका बीपी रात में स्थिर या कम रहता है. नींद के दौरान ब्लज प्रेशर (Blood Pressure) सामान्य रूप से कम हो जाता है, लेकिन अगर रात में BP कम नहीं होता, तो इसे नॉन-डिपिंग कहते हैं. वहीं अगर रात में BP बढ़ने लगे, तो इस स्थिति को रिवर्स डिपिंग कहते हैं.
रिवर्स डिपिंग की समस्या
स्टडी में सामने आया है कि टाइप-1 या टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में हर 10 में से 1 व्यक्ति को रिवर्स डिपिंग की समस्या हो सकती है. इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ पीसा के डिपार्टमेंट ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल मेडिसन में इंवेस्टिगेटर मार्टिना चिरीएको के मुताबिक, टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में असामान्य ब्लड प्रेशर की जांच नियमित रूप से करनी चाहिए क्योंकि, ये स्थिति मृत्यु के जोखिम को दोगुना तक बढ़ा सकती है.
कम हो जाती है जीने की संभावना
1999 में इटली के पीसा में 359 वयस्कों पर स्टडी की गई, जिन्हें डायबिटीज की बीमारी थी. शोधकर्ताओं ने पाया कि स्टडी में शामिल आधे से ज्यादा लोगों का ब्लड प्रेशर रात के दौरान बढ़ा हुआ था. इनमें से 20 प्रतिशत रिवर्स डिपर पर थे और करीब एक तिहाई रिवर्स डिपर्स कार्डियक ऑटोनॉमिक न्यूरोपैथी से पीड़ित थे.
इन नसों के डैमेज होने का डर
कार्डियक ऑटोनॉमिक न्यूरोपैथी में हार्ट और ब्लड वेसेल्स को नियंत्रित करने वाली नसें डैमेज हो जाती हैं. इससे ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट रेगुलेशन प्रभावित होता है, जिससे मृत्यु और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है. स्टडी में ये भी पाया गया कि डिपर्स की तुलना में रिवर्स डिपर्स वाले लोगों में जीने की संभावना 2.5 साल कम थी, जबकि नॉन-डिपर्स में जीने की संभावना 1.1 साल तक कम देखी गई.