Bhool Bhulaiyaa 2 Review: तब्बू की अदाकारी ने जीता दिल, कार्तिक का अंदाज भाया

Bhool Bhulaiyaa 2 Review: Tabu's performance won hearts, loved Karthik's style
Bhool Bhulaiyaa 2 Review: Tabu's performance won hearts, loved Karthik's style
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कार्तिक आर्यन हिंदी सिनेमा की मौजूदा पीढ़ी के उन गिने चुने सितारों में हैं, जिनकी पृष्ठभूमि किसी फिल्मी परिवार से नहीं है। ‘प्यार का पंचनामा’, ‘प्यार का पंचनामा 2’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ जैसी फिल्मों से कार्तिक ने अपनी एक खास पहचान बनाई है। इसी पहचान के सहारे उन्होंने ‘लुका छिपी’ और ‘पति पत्नी और वो’ में कामयाबी भी पाई। हिट की उनकी हैट्रिक को पहले इम्तियाज अली ने फिल्म ‘लव आजकल’ में तोड़ा फिर राम माधवानी की फिल्म का ‘धमाका’ हुआ। कार्तिक हिंदी सिनेमा में एक आम हिंदुस्तानी के संघर्ष की कहानी है। कुछ कुछ वैसी ही जैसी कहानी उनकी नई फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ के हीरो रूहान रंधावा उर्फ रूह बाबा की। यहां लोग होते कुछ और हैं, दिखाते कुछ और हैं, ये हिंदी सिनेमा की परंपराओं में चले आ रहे वे निशान हैं, जो अब इसके दामन पर धब्बों सरीखे दिखने लगे हैं। कार्तिक के सामने उनकी पिछली दोनों फिल्मों में चुनौती रही है खुद को एक ऐसा कलाकार साबित करने की जो अकेले अपने बूते एक फिल्म को खींच सके। नतीजा वह खुद जानते हैं। वह अच्छे कलाकार हैं। अच्छी ‘टीम’ मिले तो वह चमत्कार कर सकते हैं।

कहानी में नयापन नहीं
फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ की कहानी पूरी फिल्मी है। अंधविश्वास की धारणाएं फिल्म की रूह हैं। हिंदी सिनेमा ऐसी कहानियों से हर दौर में संजीवनी पाता रहा है। इस बार भी कुछ कुछ ऐसा ही है। हिंदी सिनेमा अपने सबसे कठिन दौर में है। अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम से लेकर रणवीर सिंह तक हर बड़े सितारे की दरकती बॉक्स ऑफिस साख के बीच कार्तिक की ये फिल्म रिलीज हुई है। जैसा कि नाम से ही इंगित है ये फिल्म अक्षय कुमार, विद्या बालन और शाइनी आहूजा की कोई 14 साल पहले रिलीज हुई इसी नाम की फिल्म की ब्रांडिंग से सांसें पाती है। दोनों फिल्मों का आपस में कोई लेना देना नहीं है फिर भी फिल्म अपनी अग्रजा की याद दिलाती रहती है। कहानी रूह और रीत की है। दोनों के प्यार में आए पुरानी हवेली के ट्विस्ट की है। दोनों के अपने अपने भरोसे हैं और है एक लंबा चौड़ा परिवार जिसका हर किरदार खुद को ‘बाजीगर’ समझता है।

अनीस बज्मी के लिए साफ संकेत
फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ की कहानी में खास जान नहीं है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको किसी नए यूनीवर्स में लेकर जा सके। हां, ये फिल्म बार बार आपको हिलाती जरूर है। फिल्म का धरातल बसने में थोड़ा वक्त लगता है और अनीस बज्मी अपनी बतौर निर्देशक और लेखक बनी साख को बचाए रखने की पूरी कोशिश भी करते नजर आते हैं। निर्देशक के तौर पर अनीस के लिए ये फिल्म भविष्य की चेतावनी है। उन्हें अपने ही बनाए इस तथाकथित कॉमेडी के जाल से बाहर निकलना होगा। कुछ नई कहानियां सोचनी होंगी और अपने निर्देशन में बदलाव लाना होगा। फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ में वह बस किसी तरह पास हो सके हैं। और, ये बदलाव हर उस हिंदी फिल्म निर्देशक को अपनी कहानी, कलाकारों और नजरिये में लाना होगा, जिसे बदलते दौर में बॉक्स ऑफिस पर टिके रहना है।

तब्बू रहीं अव्वल नंबर
अभिनय के मामले में फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ पूरी तरह से तब्बू की फिल्म है। फिल्म इंटरवल के बाद जरूरत से ज्यादा लंबी है लेकिन इस दौरान तब्बू की अदाकारी दर्शकों को बांधे रखती है। उनको जैसे भी संवाद मिले, उनको उन्होंने अपने अभिनय से साधा है। हां, तब्बू को लेकर फिल्में बनाने वालों को उन्हें उनके नैसर्गिक रूप में प्रदर्शित करने की हिम्मत बांधनी होगी। चेहरे पर बहुत ज्यादा फोटोशॉप नए दौर के दर्शको को समझ में आता है।

कार्तिक आर्यन की कलाकारी
कार्तिक आर्यन अपनी पिछली दो कमजोर फिल्मो के बाद फिर से रंगत में हैं। उन्हें लगता भी रहा है कि फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ में जो कुछ है वह बस वही हैं। अपने इस गुमान से कार्तिक को बाहर आना ही होगा नहीं तो उनके लिए कठिनाई और बढ़ेगी। कार्तिक के अभिनय में ताजगी है। वह फिल्म का चेहरा भी हैं। काफी हद तक फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ में कामयाब रहे कार्तिक के करियर की ये नई पायदान हो सकती है। कियारा आडवाणी अपने दौर की बाकी सारी अभिनेत्रियों जैसा ही अभिनय करती हैं। बाल कलाकार सिद्धांत प्रभावित करते हैं। राजेश शर्मा, राजपाल यादव और संजय मिश्रा ने फिल्म में शोर खूब मचाया है। नए चरित्र अभिनेताओं की हिंदी सिनेमा को अब सख्त जरूरत दिखने लगी है।

असरदार सिनेमैटोग्राफी, कमजोर संगीत
तकनीकी रूप से फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ अपनी सिनेमैटोग्राफी से मदद पाती है। मनु आनंद ने फिल्म का तेवर और कलेवर पिछली ‘भूल भुलैया’ जैसा रखने में कामयाबी पाई है। अजय वेरेकर और दीपक चौधरी ने फिल्म के सेट्स और वास्तविक लोकेशन की सजावट में प्रभावित किया है। फिल्म में बंटी नागी का संपादन थोडा सुस्त है और अगर ये फिल्म छोटी करके सिर्फ दो घंटे की फिल्म हो सकती तो कमाल की फिल्म होती। वह इसलिए भी क्योंकि प्रीतम और तनिष्क बागची मिलकर भी फिल्म का संगीत शानदार नहीं बना सके हैं। अमिताभ भट्टाचार्य से एक और यादगार गीत की उम्मीद अब भी बाकी ही है।

देखें कि ना देखें
फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ हिंदी सिनेमा की लगातार फ्लॉप होती फिल्मों के बीच कुछ भी नया कर दिखाने का वादा नहीं करती है। यही इस फिल्म की कमजोरी भी है और यूएसपी भी। सिर्फ मनोरंजन के लिए इस फिल्म को देखा जा सकता है। बड़े सिनेमाघर में लोगों के बीच बैठकर कुछ डरावनी अनुभूति लेनी हो तो ये फिल्म ठीक है।