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नई दिल्ली : वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी की रिसर्च टीम ने एक बहुत ही दुर्लभ कीटभक्षी पौध की प्रजाति की खोज की है। हाल में इस अत्यंत महत्वपूर्ण खोज को ‘जर्नल ऑफ जापानी बॉटनी’ में प्रकाशित किया गया है, जो प्लांट टैक्सोनॉमी और वनस्पति विज्ञान की 106 वर्ष पुरानी अत्यंत प्रतिष्ठित पत्रिका है।
इस पत्रिका में उत्तराखंड के वनों से संबंधित इस प्रकार का शोध पत्र पहली बार प्रकाशित हुआ है। देखने में बहुत सुंदर और नाजुक यह पौधा (यूट्रीकुलेरिया फर्सिलेटा) अपने शिकार के खून पर ही जीवित रहता है। सितंबर 2021 में उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग की टीम में शामिल गोपेश्वर रेंज के जेआरएफ मनोज सिंह व रेंजर हरीश नेगी को चमोली जिले के मंडाल वैली के उच्च हिमालयी क्षेत्र में एक पौधा मिला। 2 से 4 सेंटीमीटर तक के इस पौधे के बारे में विस्तार से अध्ययन करने के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। यह यूट्रीकुलेरिया फर्सिलेटा कीटभक्षी पौधा है जो कीड़े-मकोड़ों के लार्वे खाकर उनसे नाइट्रोजन प्राप्त करता है। यूट्रीकुलेरिया फर्सिलेटा पौधा पूर्व में पूर्वोत्तर भारत में पाया गया था।
जेआरएफ मनोज सिंह ने बताया कि 1986 के बाद से इस पौधे को देश में कहीं नहीं देखा गया। पर्यटन स्थलों पर भारी जैविक दबाव होने के कारण इस प्रजाति को खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यह पौधा गीली भूमि और ताजे पानी में पाया जाता है। रिसर्च टीम को पौधे की जानकारी जुटाने और रिसर्च पेपर तैयार करने में डॉ. एसके सिंह (संयुक्त निदेशक बीएसआई देहरादून) ने विशेष मदद की। वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी में तैनात मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस तरह के पौधे सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं देते, बल्कि कीट-पतंगों से भी बचाते हैं।
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वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी की रिसर्च टीम ने एक बहुत ही दुर्लभ कीटभक्षी पौध की प्रजाति की खोज की है। हाल में इस अत्यंत महत्वपूर्ण खोज को ‘जर्नल ऑफ जापानी बॉटनी’ में प्रकाशित किया गया है, जो प्लांट टैक्सोनॉमी और वनस्पति विज्ञान की 106 वर्ष पुरानी अत्यंत प्रतिष्ठित पत्रिका है।
इस पत्रिका में उत्तराखंड के वनों से संबंधित इस प्रकार का शोध पत्र पहली बार प्रकाशित हुआ है। देखने में बहुत सुंदर और नाजुक यह पौधा (यूट्रीकुलेरिया फर्सिलेटा) अपने शिकार के खून पर ही जीवित रहता है। सितंबर 2021 में उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग की टीम में शामिल गोपेश्वर रेंज के जेआरएफ मनोज सिंह व रेंजर हरीश नेगी को चमोली जिले के मंडाल वैली के उच्च हिमालयी क्षेत्र में एक पौधा मिला। 2 से 4 सेंटीमीटर तक के इस पौधे के बारे में विस्तार से अध्ययन करने के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। यह यूट्रीकुलेरिया फर्सिलेटा कीटभक्षी पौधा है जो कीड़े-मकोड़ों के लार्वे खाकर उनसे नाइट्रोजन प्राप्त करता है। यूट्रीकुलेरिया फर्सिलेटा पौधा पूर्व में पूर्वोत्तर भारत में पाया गया था।
जेआरएफ मनोज सिंह ने बताया कि 1986 के बाद से इस पौधे को देश में कहीं नहीं देखा गया। पर्यटन स्थलों पर भारी जैविक दबाव होने के कारण इस प्रजाति को खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यह पौधा गीली भूमि और ताजे पानी में पाया जाता है। रिसर्च टीम को पौधे की जानकारी जुटाने और रिसर्च पेपर तैयार करने में डॉ. एसके सिंह (संयुक्त निदेशक बीएसआई देहरादून) ने विशेष मदद की। वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी में तैनात मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस तरह के पौधे सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं देते, बल्कि कीट-पतंगों से भी बचाते हैं।