जीत का पंजा लगाने के लिए शिवराज भाजपा को क्यों लग रहे जरूरी, पांच वजहें

Five reasons why Shivraj seems necessary for BJP to win
Five reasons why Shivraj seems necessary for BJP to win
इस खबर को शेयर करें

गुजरात फिर नार्थ ईस्ट राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपना इकबाल बुलंद करने के बाद बीजेपी की निगाह राजस्थान,छत्तीसगढ़ के साथ मध्य प्रदेश पर है। पीएम मोदी के राज्य में ऐतिहासिक सफलता के पीछे जिस गुजरात फॉर्मूले को माना गया क्या वो फॉर्मूला भाजपा संगठन मध्यप्रदेश में भी अमल में लाएगा, इसको लेकर पार्टी के शीर्ष नेता से लेकर कार्यकर्ता तक पसोपेश में थे। इसकी वजह भी लाजिमी मानी जा रही थी क्योंकि कमलनाथ के छोटे से कार्यकाल को छोड़ दें तो भाजपा दो दशक से ज्यादा समय से सत्तानशीं है। लंबे समय तक सत्ता में रहने के अपने राजनीतिक नुकसान हैं और यही डर एमपी में गुजरात फॉर्मूले को लागू करने की वजह माना जा रहा था जिसके तहत सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए नेतृत्व से लेकर सरकार के सभी चेहरों तक को बदल दिया गया। अब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने ये साफ संकेत दे दिए हैं कि वो मध्यप्रदेश में गुजरात फॉर्मूला लागू करने नहीं जा रही है। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही पार्टी आगामी चुनाव लड़ सकती है। भाजपा एक बार फिर शिवराज के करिश्माई नेतृत्व पर दांव लगाने जा रहा है। ऐसी क्या वजहे हैं कि जो भाजपा और संघ को शिवराज का कोई विकल्प नज़र नहीं आ रहा है और जीत की ऐतिहासिक इबारत लिखने के लिए एक बार फिर शिवराज पर दांव लगाना पड़ रहा है, हम इसकी पड़ताल करते हैं।

करिश्माई नेतृत्व और स्थिरता
इसे सीएम शिवराज सिंह की काबिलियत कहा जा सकता हैं। जीवन के 64 बसंत पार कर चुके शिवराज का जोश, जुनून और काम करने जज्बा आज भी करिश्माई हैं। हालात चाहे कितने भी विपरीत रहे हो बड़े और कठिन फैसले लेने में वह कभी भी नहीं डगमगाए। उनके अंदर मौजूद राजनीतिक स्थिरता और अनुशासन दूसरों के सामने बड़ी लकीर खींचता रहा। इसकी बदौलत सिलसिलेवार बीते तीन विधानसभा चुनाव में नेतृत्व उन्ही को सौंपा गया। विधानसभा के अंदर, चाहे कैबिनेट हो या फिर कोई सार्वजनिक मंच.. वहां टीम भावना कही भी विचलित होती नजर नहीं आई। यह एक बड़ी वजह पार्टी के उसूलों से भी मेल खाती हैं।

मुट्ठी में आधी आबादी
प्रदेश की आधी आबादी यानि ‘बहनों के भाई और भांजियों के मामा’ बनकर एक ऐसा चेहरा बनकर उभरे हैं, जिसका मौजूदा हालातों में कोई दूसरा विकल्प नहीं। वर्तमान कार्यकाल खत्म होने और चुनाव के पहले ‘लाड़ली बहना योजना’ के रूप में मास्टर स्ट्रोक भी लगा दिया। बारहवीं फर्स्ट डिवीजन पास होने वाली भांजियों की स्कूटी योजना भी तुरुप के पत्तों में शामिल हैं। चुनावी साल में जनता को जो चाहिए, उसके लिए कई फैसले लेने का माद्दा, पार्टी की रणनीति की भी भरपाई कर रहा हैं। बीते तीन कार्यकाल में भी इसी तरह महिला हित में कई योजनाएं लागू की। इससे पार्टी को नापसंद करने वाला अल्पसंख्यक वर्ग का बड़ा तबका आज ‘शिवराज’ का मुरीद हो चला है।

ओबीसी कार्ड, SC/ST
सीएम शिवराज की नेतृत्व क्षमता आंकने वाली बीजेपी के सामने मध्य प्रदेश का ओबीसी वर्ग का बड़ा जनाधार भी है। खुद शिवराज इसी वर्ग से आते है। बूथ लेबल से लेकर निगम मंडल और मंत्रीमंडल तक इस कैटेगिरी को यह अहसास कभी नहीं होने दिया कि उनका कोई नहीं। हिस्सेदारी तय करते हुए इस वर्ग को खुश रखने गांव-गांव पहुंचे। बीजेपी जानती है कि प्रदेश में 40 से 45 फीसदी इस वर्ग का वोटर जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाएगा। आदिवासी वर्ग को इसी सरकार ने पेसा कानून का चाबुक भी थमाया है। इस वर्ग के बिफरे नेताओं को संतुष्ट करने के पीछे भी शिवराज का ही चेहरा रहा है। लिहाजा बीजेपी रिस्क लेना नहीं चाहती कि वर्ग विशेष का चहेते चेहरे की जगह कोई और दूसरा चेहरा सामने आए।

RSS और कट्टर हिंदुत्व की छवि
दिग्विजय सरकार धराशाही होने के बाद जब उमा भारती मुख्यमंत्री बनी, तो वक्त हिंदुत्व विचारधार बड़ा शस्त्र रहा। मध्य प्रदेश से दिल्ली की राजनीति करने वाले चेहरों में RSS की पसंद शिवराज सिंह ही थे, उमा की वैचारिक विरासत संभाल सकते थे। वक्त गुजरा तो बाबूलाल गौर के बाद संगठन ने भी शिवराज के नाम पर मुहर लगाई थी। गुजरे हुए तीन कार्यकाल में संघ का भरोसा जीतने में वह कायम रहे। चाहे प्रदेश से सिमी-नक्सलियों का मुद्दा हो या फिर हाल ही में पीएफआई के मंसूबों पर पानी फेरना, शिवराज के नेतृत्व में ही सफलता मिली। एक तरह से बीजेपी ने राज्य में शिवराज के बिग फेस पर ही ‘हिंदुत्व का अलग लोक’ स्थापित किया।

बेदाग छवि, विरोधियों के भी चहेते
शिवराज की सबसे बड़ी खूबी उनकी बेदाग़ छवि हैं। 16 साल के कार्यकाल में व्यक्तिगत तौर पर घोटाले-घपले का ऐसा आरोप कभी नहीं लगा, जिससे पार्टी को नीचा देखना पड़ा हो। राजनीतिक रूप में जो मुद्दे छाए भी रहे तो उनका डटकर मुकाबला करते हुए यह सिद्ध भी किया कि प्रदेश में बीजेपी करप्शन फ्री पार्टी हैं। इसी वजह से उन्होंने कई विरोधियों के दिल में भी वह जगह बनाई हुई है। व्यापम, किसान गोली कांड का मुद्दा हो या फिर धार्मिक दंगों के मुद्दे, उसकी असल वजह सदन से लेकर सड़क तक साबित की। नतीजतन बीजेपी का शिवराज सिंह को ही ‘बिग फेस’ बताकर ‘मिशन 2023’ में नजर आ सकती हैं।