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Science News: खगोलविदों ने पृथ्वी के दूसरे चंद्रमा को खोज निकाला है। वास्तव में यह एक उपग्रह नहीं है, बल्कि एक उल्कापिंड है, जिसका नाम 2023एफडब्ल्यू13 है। हालांकि, यह पृथ्वी से अत्यधिक दूरी पर है पृथ्वी का एक उपग्रह की तरह चक्कर लगा रहा है। वैज्ञानिकों ने इसे अर्ध उपग्रह के रूप में परिभाषित किया है। आकार में यह बहुत छोटा है, इसकी परिधि केवल 15 मीटर है। इसे पैन स्टार्स एस्ट्रानॉमी प्रयोगशाला द्वारा खोजा गया है। इससे संबंधित जानकारी को लाइव साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
पिछले 1900 वर्षों से लगा है पृथ्वी का चक्कर
खोजा गया अर्धचंद्र पृथ्वी से करीब 140 लाख किलोमीटर दूरी से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है। खगोल वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह 3700 ईस्वी तक पृथ्वी की एक उपग्रह की तरह परिक्रमा करता रहेगा। यह उल्कापिंड पृथ्वी के साथ-साथ पृथ्वी के लगभग बराबर परिक्रमा काल में सूर्य के भी चक्कर लगा रहा है। वैज्ञानिकों ने गणितीय आंकलन द्वारा पता लगाया है कि यह करीब 100 वीं ईस्वीं से पृथ्वी के उपग्रह की तरह व्यवहार कर रहा है।
पैन स्टार्स वेधशाला ने इस पिंड को मार्च, 2023 में देखा था। इसके बाद कनाडा-फ्रांस और एरिजोना की दो वेधशालाओं ने इसे देखकर इसकी पुष्टि की थी। साथ ही, इसके परिक्रमा पथ का अध्ययन (Science News) कर उसके व्यवहार को स्पष्ट किया था। पुष्टि के बाद अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ के माइनर प्लेनेट सेंटर द्वारा सूचीबद्ध किया गया था। माइनर प्लेनेट सेंटर दुनियाभर के खगोलविदों की संस्था है, जो अंतरिक्ष में खोजे गए नए ग्रह, उपग्रह, पिंड, उल्कापिंडों के नामकरण का काम करती है।
और भी हो सकते हैं पृथ्वी के चंद्रमा
इस पिंड के खोजे जाने के बाद कुछ खगोलविदों का मानना है कि यह पिंड चंद्रमा का हिस्सा हो सकता है, जो चंद्रमा के साथ हुई किसी पिंड की टक्कर के बाद टूटकर अलग हो गया होगा। वैज्ञानिकों का तर्क है कि इसी कारण से यह पृथ्वी के समान परिक्रमा काल में सूर्य की परिक्रमा कर रहा है।
इसे खोजे जाने के बाद खगोल वैज्ञानिक समुदाय का मानना है कि अंतरिक्ष में और भी पिंड हो सकते हैं जो चंद्रमा से टूटकर अलग हुए हों या चंद्रमा की भांति व्यवहार कर रहे हैं। इनका अध्ययन और खोज करने की आवश्यकता हैं, क्योंकि ये भविष्य में पृथ्वी के लिए खतरा साबित हो सकते हैं।