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हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं. बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की है. कांग्रेस के अरमानों पर पानी फिर गया है. बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बनाएगी. हरियाणा में कांग्रेस की हार का असर अभी से झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर दिख रहा है. कल तक अपने सहयोगियों से अधिक सीट मांग रही कांग्रेस की बार्गेनिंग पॉवर अब कम हो गई है.
दरअसल, लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस को हरियाणा से बहुत उम्मीद थी. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हाफ करने वाली कांग्रेस को विश्वास था कि इस बार हरियाणा में राहुल गांधी का करिश्मा चलेगा. एग्जिट पोल में भी ऐसा होता दिख रहा था, लेकिन असल नतीजों में बीजेपी एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई है. कांग्रेस की इस हार पर उसके सहयोगी दल भी तंज कसने से चूक नहीं रहे हैं. शिवसेना (उद्धव) ने तो कांग्रेस को नसीहत ही दे डाली.
हरियाणा की हार का महाराष्ट्र पर क्या असर?
हरियाणा में कांग्रेस की हार पर सबसे पहले शिवसेना (उद्धव) ने प्रतिक्रिया दी. प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस हमेशा बीजेपी से डायरेक्ट फाइट में कमजोर पड़ जाती है, उसे अपनी रणनीति देखनी होगी. प्रियंका चतुर्वेदी ने इशारों-इशारों में कह दिया कि कांग्रेस सीधे मुकाबले में बीजेपी को हरा नहीं पाती है. अब समझने वाली बात है कि प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस पर निशाना क्यों साधा? इसके लिए हमें महाराष्ट्र में कांग्रेस की ओर से मांगी जा रही सीटों में मिलता है.
हरियाणा चुनाव के बाद अब महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं. पिछली बार कांग्रेस ने एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस ने 125 प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं एनसीपी ने 125 प्रत्याशी उतारे थे और 54 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की राजनीतिक तस्वीर ही बदल गई है. अब कांग्रेस का गठबंधन एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव) के साथ है. शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर 2019 में 124 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
इस बार सब साथ हैं तो सीटों का बंटवारा उलझ गया है. तीनों दलों में सबसे ज्यादा सीट लेने की होड़ सी मची है. कांग्रेस को उम्मीद थी कि अगर वह हरियाणा का चुनाव जीतेगी तो उसकी बार्गेनिंग पॉवर बढ़ जाएगी, लेकिन अब हरियाणा में मिली हार ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है. इस मौके का फायदा उठाकर शिवसेना (उद्धव) फ्रंटफुट पर आ गई है और कांग्रेस को यह बताने लगी है कि बिना सहयोगियों के कांग्रेस कभी भी बीजेपी को हरा नहीं पाती है.
झारखंड में क्या होगा असर?
हरियाणा के नतीजों का असर झारखंड विधानसभा चुनाव पर भी पड़ना लाजिमी है. हालांकि, यहां पर पहले से ही हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) बड़े भाई की भूमिका में है, लेकिन इस बार कांग्रेस ज्यादा सीट मांग रही थी. 2019 के विधानसभा चुनाव में JMM 41 तो कांग्रेस 31 सीट पर चुनाव लड़ी थी, जबकि आरजेडी को 7 सीटें दी गई थीं. 31 सीट लड़कर भी कांग्रेस महज 16 सीट जीत पाई थी.
2019 के परफॉर्मेंस के हिसाब वैसे भी JMM ने कांग्रेस को ज्यादा सीट न देने का मन बना लिया था. लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस की ओर से 33 सीटें मांगी जा रही थीं. अब हरियाणा के नतीजों ने एक बार शिवसेना (उद्धव) की तरह JMM को मौका दे दिया है कि कांग्रेस की बार्गेनिंग पॉवर को कम कर दिया जाए. अब कांग्रेस को 31 सीटें ही देने की अपनी रणनीति पर JMM कायम रह सकता है.
कांग्रेस को कितनी सीटें देंगे अखिलेश?
हरियाणा में कांग्रेस की हार का सबसे अधिक असर उत्तर प्रदेश में दिख रहा है. कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा) को हरियाणा में यह कहते हुए सीट देने से मना कर दिया था कि यहां उनका जनाधार नहीं है. हरियाणा के नतीजों से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर कांग्रेस और सपा में एक तरह से तलवार खिंची हुई थी. कांग्रेस 5 सीटें मांग रही थी. अब हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी मुश्किल है कि वह किस मुंह से सीट मांगेगी.
हरियाणा में गठबंधन के तहत सीट न मिलने का घूंट तो अखिलेश यादव पी गए थे, लेकिन अब इसका बदला वह यूपी में लेने से चूकेंगे या नहीं? यह देखने वाली बात होगी. वैसे अंदरखाने चर्चा है कि सपा की ओर से कांग्रेस को महज एक सीट देने पर विचार किया जा रहा है. यह वह सीट हैं, जहां कभी भी सपा जीती नहीं है.