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जम्मू। जम्मू के पटोली मंगोत्रियां इलाक़े के रहने वाले कमल चंद गुरुवार देर रात जब घर लौटे तो उनके छोटे भाई दीपक चंद का शव भी साथ था. उस समय रात के दो बज रहे थे, लेकिन घर और आस-पड़ोस के सभी लोग जाग रहे थे. उनके घर के अंदर दाख़िल होते ही सब दीपक के शव से लिपट कर रोने लगे.
दीपक शव के रूप में चंद सगे-संबंधियों और पड़ोसियों के कंधे पर घर में दाख़िल हुए थे. श्रीनगर से जम्मू, फिर पटोली मंगोत्रियां और अंत में जीवन की अंतिम यात्रा. दीपक पिछले हफ़्ते ही पिता की बरसी मनाकर जम्मू से श्रीनगर वापस लौटे थे.
गुरुवार को श्रीनगर के ईदगाह इलाक़े के एक सरकारी स्कूल में में बंदूक़धारियों ने घुसकर हिंदू शिक्षक दीपक चंद और सिख प्रिंसिपल सुपिंदर कौर को गोली मार दी थी.
‘कश्मीर में काम करने की सज़ा’
घर के एक कोने में पड़े ताबूत पर दीपक चंद के नाम की पट्टी अभी भी चिपकी दिख रही है. कुछ ख़ून के धब्बे भी उस पर मौजूद हैं. घर के बाहर एकत्र युवा और सगे-संबंधी ताबूत की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “कश्मीर जाकर नौकरी करने की सज़ा मिली दीपक भाई को.”
घाटी में लगातार अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हो रहे हमलों से जम्मू में दहशत का माहौल है. जम्मू में बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं, जिनके बच्चे कश्मीर घाटी के विभिन्न ज़िलों में कार्यरत हैं.
शुक्रवार को कुछ कर्मचारियों ने जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर अपील की है कि उन्हें कुछ समय के लिए ड्यूटी से ग़ैर-हाज़िर रहने की इजाज़त दी जाए. उन्होंने हालात सामान्य होते ही वापस लौटने की भी बात कही है.
दीपक का परिवार मूल रूप से कश्मीर का रहने वाला था. लेकिन 1990 के दशक में जब घाटी में हालात बिगड़ने शुरू हुए तो उनका परिवार भी विस्थापित हो कर जम्मू आ गया. पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपक ने कुछ समय जम्मू में ही नौकरी की, लेकिन 2019 में उनकी नियुक्ति केंद्र सरकार के पीएम पैकेज के तहत कश्मीर घाटी में हो गई.
परिवार के एक सदस्य अभिषेक ने बीबीसी हिंदी को बताया, “पिछले महीने जब दीपक अपने पिता की पहली बरसी पर जम्मू आए थे, तो वापस लौटते समय पत्नी से साथ न आने को कहा था. दीपक चाहते थे उनकी पत्नी जम्मू में ही रहकर बेटी के स्कूल एडमिशन की प्रक्रिया संभाले.”
आराधना ये बात बार-बार दोहरा रही थीं. आराधना कहती हैं कि गोली मारे जाने के कुछ देर पहले पति-पत्नी की वीडियो चैट भी हुई थी और दीपक ने आराधना को बताया भी था कि उन्होंने नवरात्रि का व्रत रखा हुआ है.
जम्मू टीचर वेलफ़ेयर एसोसिएशन के प्रधान जसमीत सिंह मदान ने बीबीसी हिंदी से कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाले कर्मचारियों को हालात सामान्य होने तक या तो घाटी से जम्मू वापस बुलाया जाए या उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया करवाई जाए.
वहां मौजूद, रविंदर राजदान ने आरोप लगाया कि अब तक सरकार का कोई नुमाइंदा परिवार से मिलने नहीं आया, न किसी प्रकार के मुआवज़े की घोषणा हुई है, और न ही किसी प्रकार का कोई आश्वासन सरकार की ओर से मिला है.
सरकारी कर्मचारियों के हालात?
पीएम पैकेज योजना के अंतर्गत कश्मीर घाटी के विभिन्न इलाकों में कार्यरत कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी बड़ी संख्या में जम्मू वापिस आ रहे हैं. स्कूल टीचर्स की चरमपंथियों द्वारा गोली मार कर हत्या करने के बाद से सरकारी कर्मचारियों के कैंपस में डर और खौफ़ का माहौल पैदा हो गया था. जम्मू में उनके रिश्तेदार उन्हें जल्दी कश्मीर घाटी छोड़ कर जम्मू लौटने के लिए कह रहे हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक कश्मीरी पंडित टीचर ने बीबीसी हिंदी को शनिवार को फ़ोन पर बताया कि शेखपुरा पंडित कॉलोनी बडगाम से लगभग 50 प्रतिशत सरकारी कर्मचारी जम्मू रवाना हो गए हैं. इस कैंप में लगभग 300 कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे. शेखपुरा कैंप में बारामूला और बडगाम में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों को रखा गया था.
अनंतनाग ज़िले के वेसु कैंप से कुछ गाड़ियां जम्मू के लिए रवाना हुई थीं लेकिन स्थानीय प्रशासन ने समय पर कार्रवाई करते हुए उन्हें कैंप से बाहर निकलने से मना कर दिया. इस कैंप में कुलगाम और अनंतनाग ज़िले के मुलाज़िम रहते हैं.
इस समय किसी भी मुलाज़िम को कैंप से निकलने की इजाजत नहीं है. यहां अतिरिक्त सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है साथ ही कैंप के गेट भी सील कर दिए गए हैं. ट्रांजिट कैंप मट्टन, अनंतनाग के रहने वाले एक कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी ने बताया कि उनका कैंप लगभग खाली हो गया है और सब स्टाफ़ जम्मू के लिए निकल गए हैं. वहीं, बारामूला में कश्मीरी कर्मचारियों का कैंप भी सील कर सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए गए हैं.
जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने फिलहाल कश्मीर घाटी में तैनात कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को अगले दो हफ्ते तक काम पर न हाज़िर होने की छूट दे दी है. इससे पहले सरकारी कर्मचारियों ने चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिख कर ड्यूटी पर न जाने की इजाजत मांगी थी.