युद्ध की स्थिति में सेना कैसे सुरक्षित संचार करेगी, देश भर में किया गया स्काइलाईट अभ्यास

How the army will secure communication in the event of war, skylight exercise conducted across the country
How the army will secure communication in the event of war, skylight exercise conducted across the country
इस खबर को शेयर करें

नई दिल्ली: युद्ध के हालात में जब बमबारी से कम्युनिकेशन के परंपरागत सिस्टम फेल हो जाएं तो इंडियन आर्मी देशभर में हर कोने तक कैसे कम्युनिकेशन करेगी? कैसे सर्विलांस के सारे सिस्टम काम कर रहे होंगे और कैसे कमांडर अपने सैनिकों तक कमांड पहुंचाएंगे? इंडियन आर्मी ने ‘एक्सरसाइज स्काइलाइट (Exercise Skylight)’ के जरिए इन सबको परखा। सूत्रों के मुताबिक आर्मी ने 25 से 29 जुलाई तक ‘स्काइलाइट’ के जरिए आर्मी के सभी सैटलाइट कम्युनिकेशन एसेस्ट को टेस्ट किया। युद्ध के हर सिनेरियो को ध्यान में रखा गया और उस हिसाब से आर्मी की तैयारी देखी।

सूत्रों के मुताबिक आर्मी ने अंडमान निकोबार से लेकर जम्मू-कश्मीर तक और तमिलनाडु से लेकर अरुणाचल तक देश के हर कोने में सैटलाइट बेस्ड कनेक्टिविटी को चेक किया। इस पूरी एक्सरसाइज में 200 से ज्यादा स्टेटिक सैटलाइट प्लैटफॉर्म, 80 से ज्यादा वीइकल बेस्ड और मैन पोर्टेबल सिस्टम जांचे गए। ‘स्काइलाइट’ के जरिए सारे सिस्टम को वेरिफाई किया गया, देखा गया कि किस तरह वॉइस कनेक्टिविटी और डेटा कनेक्टिविटी काम कर रही है। साथ ही सैनिकों की ट्रेनिंग भी की गई। इसमें देखा गया कि कहां कहां सुधार की गुंजाइश है। सूत्रों के मुताबिक इस तरह की एक्सरसाइज अब लगातार किए जाने की योजना है।

क्यों है अहम
स्पेस बेस्ड कम्युनिकेशन सिस्टम यानी सैटलाइट सिस्टम इसलिए अहम है क्योंकि युद्ध के हालात में यही कम्युनिकेशन का एकमात्र जरिया बचता है। युद्ध में सबसे पहले टेरिस्ट्रियल (इसमें सेंडर और रिसीवर दोनों के एंटीना जमीन पर होते हैं) कम्युनिकेशन टूटता है, इसलिए यह बैकअप जरूरी है। देश की उत्तरी सीमा यानी चीन बॉर्डर पर जिस तरह की भौगोलिक स्थितियां हैं ऐसे में टेरिस्ट्रियल कम्युनिकेशन फेल होने के चांस ज्यादा रहते हैं और यहां सैटलाइट कम्युनिकेशन की अहमियत बहुत ज्यादा है।

आर्मी ने रूस और यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में मिलिट्री कम्युनिकेशन और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध पर एक डीटेल स्टडी की है। इसमें भी यह साफ सामने आया है कि दुश्मन के इलाके में टेक्टिकल कम्युनिकेशन सिस्टम और उसका बैकअप कितना जरूरी है। सैटलाइट कम्युनिकेशन की क्षमता बढ़ाने का भी इसमें जिक्र किया गया है। ‘एक्सरसाइज स्काइलाइट’ में आर्मी ने यह भी देखा कि भारी बारिश, बर्फबारी और खराब मौसम के बीच किस तरह सैटलाइट सिस्टम फ्रंट लाइन पर तैनात सैनिकों को कम्युनिकेशन में मदद करता है, साथ ही कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम किस तरह बिना बाधा के काम करता है।

2025 तक आर्मी का अपना सेटेलाइट
अभी इंडियन आर्मी इसरो से लॉन्च किए हुए अलग-अलग सैटलाइट का इस्तेमाल कर रही है। इंडियन नेवी और एयरफोर्स के पास अपना डेडिकेटेड सैटलाइट है। आर्मी के लिए सैटलाइट GSAT-7B को मार्च में ही रक्षा अधिग्रहण समिति ने मंजूरी दी है और 2025 तक आर्मी का अपना सेटेलाइट होगा जिससे आर्मी की सारी जरूरतें पूरी होंगी। इससे जमीन पर सैनिकों की कम्युनिकेशन की जरूरतों के साथ ही रिमोटली पायलेट एयरक्राफ्ट, एयर डिफेंस वेपन और दूसरे क्रिटिकल मिशन की जरूरतें भी पूरी होंगी।

अभी सैटलाइट कम्युनिकेशन के जरिए आर्मी के सभी अहम एरिया कवर हो जाती हैं लेकिन कुछ रिमोट पोस्ट में यह पूरा काम नहीं करता। आर्मी इसमें सुधार के लिए काम कर रही है। साथ ही आर्मी क्वांटम कंप्यूटिंग और कम्युनिकेशन के दिशा में भी काम कर रही है। क्वांटम कम्युनिकेशन सिक्योर कम्युनिकेशन देता है। साथ ही इसके जरिए दुश्मन के कम्युनिकेशन को ब्रेक किया जा सकता है।