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भोपाल: कभी जिस्मफरोशी के लिए बदनाम रहे भोपाल से 50 किलोमीटर दूर सूखा करार गांव की तस्वीर अब बदल चुकी है। बेड़िया जनजाति की बेटियां पढ़-लिख रही हैं। कुप्रथा की बेड़ियों से बचाकर मांएं भी अपनी बेटियों को स्कूल-कॉलेज भेज रही हैं। पंचायत चुनाव के बीच दैनिक भास्कर का चुनावी रथ इस गांव में पहुंचा।
सूखा करार गांव उचेर ग्राम पंचायत में आता है। 1761 वोटर वाले गांव में सरपंच पद के लिए 5 उम्मीदवार मैदान में हैं। जियालाल शाक्या, अरविंद लवारिया, भगवान सिंह, गौरव शाक्या और भमर लाल पलया प्रत्याशी हैं। पंचायत चुनाव में शिक्षा और सड़क मुख्य मुद्दा है। उचेर से सूखा आने वाली सड़क खराब है। बारिश में वाहन नहीं चल पाते। सरपंच पद के प्रत्याशी अरविंद बताते हैं कि गांव में सड़क नहीं होने की वजह से बच्चे पढ़ने नहीं जा पाते।
गांव की बुजुर्ग चंदा बाई (70) बताती हैं कि उनके जमाने में बेड़नी समाज की महिलाएं सिर्फ नाच-गाना करती थीं। बीच की पीढ़ियों की लड़कियों ने नाच-गाना नहीं सीखा। समाज के मर्द उनसे गलत काम कराने लगे। जो लड़की विरोध करती, उसे समाज से बाहर कर देते। मुझे भी समाज से इसलिए निकाल बाहर किया, क्योंकि मैंने बेटी की शादी कर दी। लेकिन अब हालात बहुत हद तक बदल गए हैं। गांव के बच्चे पढ़-लिख रहे हैं।
12th में बायोलॉजी से स्कूल में टॉप किया
18 साल की सलोनी स्कूल टॉपर हैं। उन्होंने बताया- पापा गंगाराम और बुआ ने पढ़ने के लिए प्रेरित किया। 8वीं तक गांव से थोड़ी दूर शहीद भगत सिंह स्कूल में पढ़ी। 9वीं में उचेर गांव के सरकारी स्कूल में एडमिशन लिया। इसी साल 12वीं 71% नंबर से पास हुई हूं। B.sc में एडमिशन लिया है।
बेटी का सपना MPPSC कर अफसर बनना
गांव के ही लल्लाराम लवारिया की बेटी सलोनी लवारिया ने इस साल 12th 70% नंबर से पास की। सालोनी बताती हैं कि उन्होंने पढ़ने के लिए कभी भी कोचिंग नहीं ली। अभी कॉलेज में बीए के लिए दाखिला लिया है। सरकार हम लोगों को स्कॉलरशिप दे तो और बेहतर पढ़ाई कर सकते हैं।
टीचर बन गांव के बच्चों को पढ़ाने का सपना
गणेशी लवारिया 12वीं में 61% नंबर से पास हुईं। वह अब बीए कर रही हैं। गणेशी बताती हैं कि समाज की नई पीढ़ी में अब धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। अब सोच बदल रही है। इसी साल 20 मई को ही गणेशी की शादी हुई है।
गांव का नाम लेकर लोग चिढ़ाते थे…
लड़कियों की तरह ही गांव में लड़के भी पढ़ने के लिए आगे आ रहे हैं। समाज शास्त्र से MA करने के बाद आनंद लवारिया गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए मोटिवेट कर रहे हैं। दिनभर वह गांव के बच्चों, उनके परिजन से मिलकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं। आनंद बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान स्कूल के बच्चे हमारे गांव, जाति का नाम लेकर चिढ़ाते थे। लेकिन सब कुछ सहनकर पढ़ाई करता रहा। पिता की मौत के बाद मां ने हमें पढ़ाया। अब नहीं चाहता कि गांव का कोई बच्चा पढ़ाई से दूर रहे।
गांव का पहला लड़का, जो 12वीं तक पढ़ा… अब सरपंच प्रत्याशी
गांव के ही अरविंद लवारिया सरपंच पद के प्रत्याशी हैं। वह बताते हैं- इस गांव का मैं पहला लड़का है, जो 12वीं तक पढ़ा था। पहले के मुकाबले उनकी जाति की महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी हालत काफी दयनीय है। इसका मुख्य कारण गरीबी और अशिक्षा है। अगर सरकार इनके परिवार वालों को रोजगार मुहैया कराए और इन्हें शिक्षित करे, तो स्थिति सुधर सकती है। उम्मीद है कि हमारी जिंदगी की काली रात की भी आज नहीं तो कल एक खूबसूरत सुबह होगी।
1990 में बसा गांव, पट्टा, जाति प्रमाण पत्र तक नहीं
गांव के लोग बताते हैं कि 1990 में सूखा गांव बसा। इससे पहले समाज के लोग अपने-अपने खेतों में कच्चे घर बनाकर रहते थे। अब तक गांव के अधिकतर परिवारों को जमीन का पट्टा नहीं मिला। जाति प्रमाण पत्र तक कई परिवारों को नहीं मिला। इससे उन परिवार को सरकारी योजनाओं में जुड़ने में काफी परेशानी होती है। करीब 150 परिवार इस गांव में रहते हैं। सभी बेड़िया समाज के हैं।
आसपास के सरपंच प्रत्याशी यहां वोटरों को घुमाने ला रहे
रायसेन के अधिकतर ग्राम पंचायतों में अभी पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं। सूखा गांव के आसपास की ग्राम पंचायतों के सरपंच पद के प्रत्याशियों का समर्थन कर रहे वोटर उनसे शराब के साथ सूखा गांव में घुमाने ले जाने की जिद करते हैं। सूखा गांव के रहने वाले गंगाराम बताते हैं कि आसपास के गांवों के सरपंच प्रत्याशी अपने समर्थकों को हमारे गांव लेकर आते हैं। रविवार को इनकी संख्या अधिक रहती है। सेक्स वर्कर से मिलाने के बाद प्रत्याशी अपने साथ लाए वोटर्स से वोट करने के लिए कसमें तक खिलाते हैं। कई सरपंच प्रत्याशी हर रोज आते हैं। वे बाद में हम लोगों से कहते भी हैं कि वोटरों की इस जिद से परेशान हो चुके हैं।