राजस्थान के इस जिले में ‘रावण’ पर बरसाईं जाती है अंधाधुंध गोलियां, जानें क्या है 125 साल पुरानी परंपरा

In this district of Rajasthan, it rains indiscriminately of 'Ravana', know what is the 125 year old tradition
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झुंझुनूं. झुंझुनूं जिले के उदयपुरवाटी कस्बे का रावण दहन प्रदेश का अनूठा रावन दहन है. यहां दशहरे के दिन रावण के पुतले के साथ उसकी सेना पर बंदूकों से अंधाधुंध गोलियां बरसाई जाती हैं. पहले सेना का खात्मा किया जाता है और अंत में मशाल बाण से रावण के पुतले को जलाया जाता है. रावण दहन से पहले बंदूकों से गोलियां बरसाने की दादूपंथी समाज की यह परंपरा करीब 125 साल से चली आ रही है. यह परंपरा उदयपुरवाटी के जमात क्षेत्र में बसे दादूपंथी समाज के लोगों द्वारा निभाई जाती है. इसमें स्थानीय नगरपालिका भी सहयोग करती है. इसे देखने उदयपुरवाटी ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों से भी हजारों लोग एकत्रित होते हैं.

बता दें कि उदयपुरवाटी में नवरात्र स्थापना के साथ ही दादूपंथियों का दशहरा उत्सव शुरू हो जाता है. जमात स्कूल में स्थित बालाजी महाराज के मंदिर में ध्वज फहराकर महोत्सव की शुरुआत की जाती है. नौ दिन चलने वाले दशहरा उत्सव में विभिन्न आयोजन होते हैं. दादू मंदिर में दादूवाणी के अखंड पाठ होते हैं. नवरात्र के पहले दिन परंपरागत तरीके से चांदमारी क्षेत्र में बंदूकों से रिहर्सल की जाती है. इसके बाद शस्त्र पूजन, कथा प्रवचन होते हैं. उत्सव के तहत विजय पताका फहराने के लिए रणभेरी, नोबत, ढोल, ताशा व झांझ बजने शुरू हो जाते हैं. दशहरा उत्सव के दौरान प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती व दादूवाणी के पाठ, चांदमारी की रस्म, श्री दादू मंदिर एवं बालाजी मन्दिर में विशेष आरती होती रहती है. इस दौरान रसोईपूजा, चादर दस्तूर, सवामणी-प्रसाद, अधिवेशन जैसे कार्यक्रम होते हैं.

बंदूकों से निशाना लगाने का होता है अभ्यास
दादूपंथी पंचायत के पांचों अखाड़ों की ओर से संयुक्त रूप से रावण की सेना पर बंदूकों से निशाना लगाने के लिए चांदमारी क्षेत्र में नवरात्र से नौ दिन तक रोजाना अभ्यास किया जाता है. फिर दशहरे के दिन पांचों अखाड़ों का संयुक्त लवाजमा निकलता है. मां दुर्गा का हवन व शस्त्रों की पूजा के बाद शाम को लोग जुलूस के रूप हैरतंगेज करतब दिखाते हुए रावण दहन स्थल नांगल नदी पहुंचते हैं. यहां रावण के पुतले के साथ उनकी सेना को गोलियों को छलनी किया जाता है.

मिट्टी के मटकों पर पहले चलती है गोलियां
दादूपंथी समाज के इस अनूठे दशहरा महोत्सव में रावण की सेना भी देखने लायक होती है. यहां मिट्‌टी से बने असंख्य मटके रखे जाते हैं. इन्हें सफेद रंग से पुतवाकर उन पर आंखें व मुह इत्यादि बनाए जाते हैं. इन मटकों को एक दूसरे के ऊपर इस तरह से रखा जाता है कि रावण के दोनों तरफ असली में सेना ही नजर आती है. सबसे पहले सेना को ही गोलियों से छलनी किया जाता है. इसके बाद रावण के पुतले का दहन किया जाता है.

1980 से चली आ रही परंपरा
पांचों अखाड़ों के थामायत व मंत्री के अनुसार जयपुर के महाराजा मानसिंह ने दादूपंथियों को सात जमात में बांटा था. सबसे बड़ी जमात को 1890 में उदयपुरवाटी में बसाया गया था. यहां पर 1897 से दशहरा उत्सव मनाया जाता है. बाकी छह जमात भी प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में इस परंपरा का निर्वहन करती हैं.

उदयपुरवाटी दादूपंथी समाज व नगरपालिका के संयुक्त तत्त्वावधान में होने वाले इस महोत्सव में सर्व समाज के लोग हिस्सा लेते हैं.