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नई दिल्ली: राजस्थान के एक गांव के किसान परिवार में जन्म लेने से लेकर उप राष्ट्रपति आवास तक का सफर, यह सफर हर किसी को एक सुखद अहसास देता है। चौंकाता भी है। जगदीप धनखड़ जिस प्रकार अपने निर्णयों से कई बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को चौंका देते थे। कुछ वैसा ही उनका सियासी सफर भी रहा है। वर्ष 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में उनकी नियुक्ति ने सभी को चौंका दिया था और अब देश के नए उपराष्ट्रपति के रूप में उनके निर्वाचन ने भी सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है। 71 वर्षीय धनखड़ को शनिवार को भारत का नया उप राष्ट्रपति चुना गया। चुनाव में उन्हें 528 वोट मिले, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी विपक्ष की उम्मीदवार मार्ग्रेट अल्वा को 182 वोट मिले।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में अपनी मौजूदा भूमिका से पहले 71 वर्षीय धनखड़ एक प्रसिद्ध वकील थे। उन्होंने राजस्थान में जाट समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। केन्द्र में कुछ दिनों के लिए संसदीय कार्य मामलों के राज्य मंत्री रह चुके धनखड़ को उनका यह अनुभव राज्यसभा के सभापति के रूप में सदन का संचालन करने में मददगार साबित होगा।
पांच किलोमीटर पैदल चलकर जाते थे स्कूल
कहा जा रहा है कि जगदीप धनखड़ जब छठी कक्षा में थे तो वे चार-पांच किलोमीटर पैदल चलकर एक सरकारी स्कूल जाते थे। क्रिकेट प्रेमी होने के साथ-साथ उनका झुकाव आध्यात्मिकता की ओर भी रहा है। धनखड़ के उपराष्ट्रपति चुने जाने का तात्पर्य यह है कि लोकसभा और राज्यसभा दोनों के पीठासीन अधिकारी अब राजस्थान से होंगे। वहां वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है। राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है।
उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार के रूप में धनखड़ के नाम की घोषणा करते हुए भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने कहा था कि धनखड़ लगभग तीन दशकों से सार्वजनिक जीवन में हैं। इसके साथ ही, उन्होंने जाट नेता को ‘किसान पुत्र’ बताया था। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पिछली अखिल भारतीय बैठक भी धनखड़ के गृह जिले झुंझुनू में हुई थी।
अपने समय के अधिकतर जाट नेताओं की तरह धनखड़ भी मूल रूप से देवीलाल से प्रभावित थे। उस समय युवा वकील रहे धनखड़ का राजनीतिक सफर तब आगे बढ़ना शुरू हुआ, जब देवीलाल ने उन्हें 1989 में कांग्रेस का गढ़ रहे झुंझुनू संसदीय क्षेत्र से विपक्षी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा था और धनखड़ ने जीत दर्ज की थी।
धनखड़ 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। जब पी.वी. नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो वह कांग्रेस में शामिल हो गए। राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत का प्रभाव बढ़ने पर धनखड़ भाजपा में शामिल हो गए और कहा जाता है कि वह जल्द वसुंधरा राजे के करीबी बन गए।
कानूनी करियर पर देने लगे थे ध्यान
धनखड़ का राजनीतिक सफर उस समय करीब एक दशक के लिए थम गया, जब उन्होंने अपने कानूनी करियर पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। जुलाई 2019 में धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और तब से राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आलोचना करने को लेकर वह अक्सर सुर्खियों में रहे।
सैनिक स्कूल से पूरी की शिक्षा
राजस्थान में झुंझुनू जिले के एक सुदूर गांव में किसान परिवार में जन्मे धनखड़ ने अपनी स्कूली शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से पूरी की। भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि ली। धनखड़ ने राजस्थान हाई कोर्ट और देश के सुप्रीम कोर्ट, दोनों में वकालत की।
1989 के लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने 1990 में संसदीय कार्य मामलों के राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। 1993 में वह अजमेर जिले के किशनगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से राजस्थान विधानसभा पहुंचे। धनखड़ को एक खेल प्रेमी के रूप में भी जाना जाता है और वह राजस्थान ओलंपिक संघ तथा राजस्थान टेनिस संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं।