मंडी. क्षेत्रफल के हिसाब से देश की दूसरी सबसे बड़ी सीट 2024 के इन चुनावों में हॉट सीट बनी हुई है. इस सीट पर हमेशा कांग्रेस और भाजपा के बीच ही चुनावी जंग देखने को मिलती है. इन दोनों प्रमुख दलों से दो युवा चेहरे चुनावी मैदान में हैं. भाजपा ने इस सीट से बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत और कांग्रेस ने विक्रमादित्य सिंह को मौका दिया है. पिछले एक दशक से बॉलीवुड में हिंदुत्व का झंडा लिए बॉलीवुड क्वीन के रूप में मशहूर कंगना को फिल्मी दुनिया में कॉन्ट्रोवर्शियल क्वीन के नाम से भी जाना जाता रहा है.
वहीं दूसरी ओर विक्रमादित्य सिंह सूबे के 6 बार के सीएम रहे वीरभद्र सिंह और मंडी संसदीय सीट से मौजूदा सांसद प्रतिभा सिंह के बेटे हैं. विक्रमादित्य सिंह 2022 के चुनाव में शिमला ग्रामीण से दूसरी बार विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं और हिमाचल प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं.
मंडी संसदीय सीट के इतिहास की बात करें तो इस सीट पर अधिकतर राजशाही परिवारों का दबदबा रहा है. यहां पर हुए 19 चुनावों में जिनमें 2 उपचुनाव भी शामिल हैं, 13 बार राज परिवारों के नेता चुनकर संसद पहुंचे हैं. मात्र 6 बार ही आम परिवारों से नेता चुनकर संसद में पहुंच पाए हैं।. 1952 के आम चुनावों में यहां से देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री अमृतकौर रही हैं, जो पटियाला के राजघराने से संबध रखती थीं. वहीं आज भी यहां पर सांसद रानी प्रतिभा सिंह हैं जो रामपुर बुशहर के राजा और पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की धर्मपत्नी हैं.
किस आधार पर चल रहा है कंगना का प्रचार अभियान?
एक दशक पहले तक मंडी जिला कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जनता का समर्थन मिला है. यही कारण है कि 2017 के चुनावों में तख्तापलट होते ही मंडी जिला के सराज विधानसभा से संबंध रखने वाले जयराम ठाकुर को भाजपा हाईकमान ने सीएम पद की कमान सौंपी.
जयराम ठाकुर बेशक प्रदेश की सत्ता में नहीं हैं लेकिन मंडी जिला की 10 में से 9 सीटों पर भाजपा काबिज है. मंडी संसदीय क्षेत्र में भाजपा के पास इस समय जयराम ठाकुर ही बड़ा चेहरा हैं और ऐसे में जयराम ठाकुर कंगना रनौत के प्रचार अभियान की कमान खुद ही संभाले हुए हैं. पहले चरण के जनसंपर्क अभियान के बाद कंगना रनौत दूसरे चरण के जनसंपर्क अभियान पर हैं. 24 मई को पीएम मोदी ने भी मंडी के पड्डल मैदान में एक महारैली को संबोधित किया था, जिसमें भााजपा अच्छी खासी भीड़ जुटाने में कामयाब हुई है.
कंगना के प्रचार पर लोगों की क्या प्रतिक्रियाएं हैं?
जाहिर है कि, भाजपा प्रत्याशी कंगना रनौत का नाम बॉलीवुड से रहा है. ऐसे में कंगना की रैलियों में लोगों की भीड़ भी देखी जा रही है. बॉलीवुड में रहते हुए कंगना अपने विवादित बयानों के लिए जानी जाती रही हैं. यही शैली भाजपा प्रत्याशी की चुनाव प्रचार में भी देखने को मिल रही है. मंडयाल बोली में कंगना कुछ लोगों का दिल जीतने में कहीं हद तक कामयाब भी हो रही हैं, लेकिन मुद्दों को पीछे रखकर लगातार हो रही बयानबाजी से जनता नाराज भी है.
कंगना के सबसे प्रसिद्ध अभियान विवाद!
चुनाव प्रचार अभियान ने दौरान भाजपा प्रत्याशी कंगना रनौत अपने प्रतिद्वंदी सहित कांग्रेस पार्टी पर लगातार बरस रही हैं. इस प्रचार अभियान के दौरान कंगना के विक्रमादित्य सिंह को लेकर कई विवादित बयान भी दिए हैं, जिसके बाद कंगना फंसती हुई भी नजर आईं. कंगना ने मनाली में विक्रमादित्य सिंह को छोटा पपू और राजा बेटा कहने वाले बयान काफी सुर्खियों में रहा था, जिससे कांग्रेस पार्टी काफी नाराज भी दिखी है. वहीं कंगना ने विक्रमादित्य सिंह को लेकर शहजादा, सत्ता के भूखे, महिला विरोधी, महाचोर जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया है. जिसके बाद कांग्रेस ने कंगना के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत करने के बाद कानूनी मोर्चा भी खोला है.
कंगना के विरोधी उम्मीदवार विक्रमादित्य पर लगाए गए आरोप!
कंगना अपने प्रचार अभियान पर लगातार एक बात कह रही हैं कि विक्रमादित्य सिंह उन्हें मंडी की न होकर मुंबई की बता रहे हैं. इसके अलावा उनके लिए अपवित्र जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है, यह आरोप लगातार कंगना विक्रमादित्य सिंह पर लगा रही हैं. कांग्रेस प्रत्याशी ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर मंडी की बेटी की अपमान किया है. चुनावी दौरा खत्म होने के बाद फिर से कंगना मुंबई लौट जाएंगी, कंगना यहां सिर्फ मनोरंजन करने आई हैं. इस तरह के आरोप भी कांग्रेस प्रत्याशी कंगना पर लगाते हुए नजर आ रहे हैं.
कंगना भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं और भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी मानी जाती है. प्रत्यक्ष रूप से इस समूह को कंगना को लाभ भी मिल रहा है. हिमाचल प्रदेश की राजनी
ति में जातीय आधार पर भी प्रत्याशी को समर्थन मिलता है. कंगना को उम्मीद है कि भाजपा कैडर के साथ राजपूत और ब्राह्मण वोट हासिल करने में वह कामयाब होंगी. साथ ही बॉलीवुड में उन्होंने नाम कमाया है, उसका कुछेक फायदे कंगना को मिल सकते हैं.
किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है कंगना को?
कंगना को हाईकमान की ओर से टिकट दिया गया है. ऐसे में कंगना का चुनावी मैदान में कुछेक भाजपा नेताओं के गले से नहीं उतर रहा है. यहां तक कि पिछले लंबे समय टिकट की दौड़ में शामिल नेता और पार्टी के लिए सालों से कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी देखी जा रही है. इसके अलावा कंगना के खान-पान को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचार दिनेश कुमार भाटी ने मंडी संसदीय सीट से कंगना के खिलाफ चुनावी मैदान में उतर आए हैं.
ऐतिहासिक रूप से मंडी किस पार्टी का पक्षधर रहा है?
इस सीट पर अधिकतर कांग्रेस पार्टी का ही दबदबा रहा है. यहां तक कि 6 बार के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह की कर्मभूमि भी मंडी लोकसभा की यह सीट रही है. वीरभद्र सिंह यहां से तीन बार सांसद रहे हैं. यहां हुए 19 चुनावों में 13 बार कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवाक सांसद चुनकर संसद पहुंचे हैं. 2021 के चुनाव से पूर्व मंडी का सांसद कभी भी विपक्ष में नहीं बैठा था. पहली बार मंडी की सांसद प्रतिभा सिंह विपक्ष में बैठी हैं.
मंडी में जातिगत समीकरण और विभाजन!
मंडी संसदीय सीट के तहत मंडी, कुल्लू, लाहौल स्पीति, किन्नौर, शिमला और चंबा जिलों के 17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इन 17 विधानसभा क्षेत्रों में 33.6 फीसदी राजपूत जबकि 29.85 फीसदी अनुसूचित जाति का वोट है. तीसरे नंबर पर 21.4 फीसदी के साथ ब्राह्मणों का वोट बैंक है. इस सीट पर हमेशा ही राजपूतों और ब्राह्मणों का कब्जा रहा है. सिर्फ एक बार देश के पहले चुनाव में दलित को यहां से सांसद बनने का मौका मिला था.
1952 के लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के गोपी राम सांसद चुने गए थे. वह अनुसूचित जाति से थे. मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले 17 विधानसभा क्षेत्रों में से पांच विधानसभा क्षेत्र रामपुर, आनी, बल्ह, नाचन और करसोग अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. संसदीय सीट का इतिहास बताता है कि यहां दो ब्राह्मण नेता पंडित सुखराम और रामस्वरूप ही कुर्सी संभाल सके हैं. इसके अलावा हमेशा बागडोर राजपूतों के हाथ ही रही है.
विक्रमादित्य कंगना को कैसे चुनौती दे सकते हैं?
विक्रमादित्य सिंह को राजनीति विरासत में मिली है. इनका परिवार हिमाचल की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखता है, जिसका सीधा लाभ विक्रमादित्य सिंह को इन चुनावों में मिल रहा है. विक्रमादित्य सिंह लगातार जनता के साथ मुद्दों पर बात कर रहे हैं. जबकि कंगना जनता के मुद्दों पर खुलकर अपनी बात नहीं रख पाई हैं. वहीं मंडी संसदीय क्षेत्र के लिए विक्रमादित्य सिंह लगातार अपनी प्राथमिकताओं को भी गिना रहे हैं.
विपक्ष द्वारा कंगना पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले कटाक्ष!
खान-पान को लेकर विपक्ष ने कंगना पर सबसे बड़ा हमला किया है. विपक्ष ने सोशल मीडिया पर कंगना की वायरल पोस्टों पर भी कई सवाल खड़े किए हैं. इसके अलावा देवभूमि में गौमांस के सेवन को लेकर भी राजनीति चरम पर रही है. देव समाज का हवाला देते हुए विक्रमादित्य सिंह ने कंगना के जाने के बाद मंदिरों की सफाई कराने की भी बात कही थी.
विक्रमादित्य को शाही पृष्ठभूमि और प्रभावशाली माता-पिता से आने का लाभ है!
विक्रमादित्य सिंह रामपुर बुशहर के राजशाही परिवार से संबंध रखते हैं. कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह को पिता वीरभद्र सिंह से राजनीति विरासत में मिली है. कई दशकों से इनका परिवार राजनीति में सक्रिय हैं, जिसका लाभ विक्रमादित्य सिंह को प्रत्यक्ष रूप से मिल रहा है.
मौजूदा सरकार और मौजूदा सांसद प्रतिभा सिंह के बारे में लोगों की राय!
केंद्र की भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली से कुछ लोग खुश तो कुछ नाराज भी नजर आ रहे हैं. राम मंदिर बनने से जनता खुश हैं, लेकिन अग्निवीर योजना शुरू करने से जनता में मोदी सरकार के प्रति खासी निराशा है. 2019 से 2024 के कार्यकाल में मंडी संसदीय सीट पर दोनों पार्टियों के सांसदों को काम करने का मौका मिला है.
2021 में भाजपा सांसद राम स्वरूप शर्मा के देहांत के बाद उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर प्रतिभा सिंह को इस क्षेत्र की कमान संभालने का मौका मिला. लोगों का कहना कि दोनों सांसद अपने कार्यकाल में मंडी के लिए बड़ी योजना लाने में असफल रहे हैं.
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निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित सामान्य मुद्दे!
अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, बेसहारा पशुओं से निजात दिलाना, समाज में बढ़ते चिट्टे जैसे नशे को जड़ से खत्म करना, स्कूलों के बेहतर शिक्षा, युवाओं को स्थायी रोजगार देना, महिला सुरक्षा इत्यादि निर्वाचन क्षेत्र के मुद्दे हैं.
दोनों पार्टियों के चुनावी वादे क्या हैं?
कांग्रेस प्रत्याशी लगातार अपनी प्राथमिकताओं पर बात कर रहें हैं, जिसमें मंडी को आदर्श संसदीय क्षेत्र बनाना, मंडी में समार्ट सीटी, बेसहारा पशुओं के लिए गौ सदन बनवाना, सीएसडी कैंटीन खोलना, अग्निवीर योजना को बंद करवाना, युवाओं के लिए स्थायी रोजगार उपलब्ध कराना, कर्मचारियों के एनपीएस के 9 हजार करोड़ वापिस लाना विक्रमादिय सिंह के चुनावी वादे हैं.
भाजपा प्रत्याशी कंगना रनौत ने जनता के मुद्दो कुछ खास नहीं बोल पाई हैं, चुनावी जनसभाओं में महिला सशक्तिकरण की बात जरूर कही है. चुनावी वादों के आधार पर विक्रमादित्य सिंह कंगना से कहीं आगे हैं, लेकिन जनता किसे अपना आर्शीवाद देती है. 4 जुन को ही इसकी तस्वीर साफ हो पाऐगी.