खड़गे ने मोदी को रावण कहकर अपनी ही पार्टी को संकट में डाल दिया है

Kharge has put his own party in trouble by calling Modi Ravan
Kharge has put his own party in trouble by calling Modi Ravan
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गुजरात चुनाव हो या कोई और, कांग्रेस का कोई न कोई नेता भारतीय जनता पार्टी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई न कोई मुद्दा दे ही देता है। पहले मणिशंकर अय्यर थे, अब मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। दरअसल, खड़गे जी ने सोमवार को मोदी को रावण कह दिया। भाजपा वाले इस मुद्दे को ले उड़े। उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया। खड़गे को बहाना बनाकर उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी बयानों का हमला बोल दिया।

यही नहीं, मोदी को रावण कहकर कांग्रेस और उसके अध्यक्ष ने इस देश और गुजरात की जनता का भी अपमान किया है, बात यहाँ तक पहुँच गई। हालाँकि, मंगलवार को गुजरात की 89 सीटों के लिए चुनाव प्रचार बंद हो चुका है। ज़्यादा वक्त भाजपा वालों को मिला नहीं, वर्ना कांग्रेस की कितनी सीटों पर यह बयान असर करता, इसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। जाने क्यों खड़गे साहब को यह पता ही नहीं चला कि वे मोदी के खिलाफ बोल रहे हैं या अपनी ही पार्टी के विरोध में!

बहरहाल, गुजरात में आधे से ज़्यादा सीटों पर रैलियाँ, सभाएं अब बंद हो चुकी हैं। भाषणों का बोलबाला भी ख़त्म हो चुका। सिर्फ़ घर- घर जाकर हाथ जोड़ने का काम ही बचा है। एक दिसंबर को इन सीटों पर मतदान होना है। भाजपा अब पूरा ज़ोर बूथ कार्यकर्ताओं पर लगाएगी। उसकी रणनीति पहले से तैयार है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसका नेटवर्क इतना मज़बूत नहीं है कि वह हर विधानसभा क्षेत्र के हर बूथ पर इतने कार्यकर्ता लगा सके जितने भाजपा लगाती रही है या 1 दिसंबर को लगाएगी। आप पार्टी के पास तो हर सीट के हर बूथ पर लगाने लायक़ कार्यकर्ता ही नहीं है। ख़ासकर, शहरों की उन सीटों पर जहां वर्षों से भाजपा का दबदबा है।

सही है, गुजरात में मुफ़्त का क्रेज़ बाक़ी राज्यों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इस मुफ़्त की रेवड़ी की घोषणा भर से तमाम लोग आप को वोट देने के लिए टूट पड़ेंगे। लगातार फ़ॉलोअप, बार-बार वादों की याद दिलाना और सबसे बड़ी बात ये वादे करने वाला कितना ऑथेंटिक है, ये सब बातें भी महत्वपूर्ण होती हैं। कहने को कांग्रेस ने भी मुफ़्त बिजली का वादा किया है, लेकिन शहरों में इस बात की चर्चा तक नहीं है। सिर्फ़ इसलिए कि किसी बड़े नेता ने इस वादे का फ़ॉलोअप नहीं किया।

लोगों को इसकी बार-बार याद नहीं दिलाई गई। जो वादा करके ही भूल जाएँ, उन पर आम आदमी आख़िर कितना और क्यों भरोसा करे, यह आसानी से समझा जा सकता है। हालाँकि अब सारा दारोमदार वोटिंग परसेंटेज पर है। 60 से 65 के बीच वोट परसेंट रहता है तो समझिए स्थिति में कोई मोटा बदलाव होने नहीं जा रहा है। अगर वोटिंग परसेंटेज सत्तर से ऊपर जाता है तो वह ग़ुस्से वाला मतदान समझा जाएगा।

… और ग़ुस्से का मतदान गुजरात में किसी न किसी रूप में भाजपा को नुक़सान पहुँचा सकता है। इस बार के चुनाव में आम मतदाता की निष्क्रियता बताती है कि वोटिंग परसेंटेज बहुत ऊपर जाने की संभावना कम ही है।