लोकसभा चुनाव 2024: ‘लहर’ अब कितने पानी में, यूपी-बिहार से लेकर हरियाणा तक क्या है हाल

Lok Sabha Elections 2024: 'Wave' now in how much water, what is the condition from UP-Bihar to Haryana
Lok Sabha Elections 2024: 'Wave' now in how much water, what is the condition from UP-Bihar to Haryana
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साल 2014 से लेकर 2019 तक ‘मोदी लहर’ पर सवार बीजेपी के लिए क्या हालात बदल गए हैं या फिर केंद्र में उसकी ही सरकार बनने जा रही है, ये सवाल अब लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले चर्चा में हैं. बीते 8-9 सालों में कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव छोड़ दिए जाएं तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बीजेपी ने दोबारा सरकार बनाने में कामयाबी पाई है. हिंदी बेल्ट के सभी बड़े राज्यों के वरिष्ठ पत्रकारों और चुनावी विश्लेषकों से बातचीत में जो बातें सामने आई हैं वो देश की राजनीति के लिए अहम हैं. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में न जाकर केसीआर की रैली में जाना ज्यादा ठीक समझा. ये यूपी में कांग्रेस के लिए किसी झटके से कम नहीं है क्योंकि केंद्र की सत्ता में बैठने के लिए किसी भी पार्टी के पास यूपी की लोकसभा सीटें बहुत मायने रखती है.

यूपी में जहां ईसीबी आरक्षण के मुद्दे पर एक बार फिर बीजेपी के साथ सुर में सुर मिला रहे हैं तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती की भी सक्रियता बढ़ गई है. दोनों ही नेताओं का कोई भी कदम अभी तक बीजेपी के लिए फायदा पहुंचाने के नजरिए से भी देखा जा रहा है. समाजवादी पार्टी भी दलित वोटों में सेंध लगाने के लिए पश्चिमी यूपी में सक्रिय चंद्रशेखर आजाद के साथ संपर्क में है साथ ही जाटों और गुर्जरों का भी समीकरण बनाने के लिए राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी और गुर्जर समुदाय से आने वाने मदन भैया जैसे चेहरों को अपने पाले में कर लिया है.

उत्तर प्रदेश के समीकरण

लोकसभा चुनाव 2019
बीजेपी-61
अपना दल-2
बीएसपी-10
सपा-5
कांग्रेस-1

उत्तर प्रदेश इस समय बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ है. यहां पर बीजेपी चुनाव दर चुनाव जीत रही है. हालांकि मुजफ्फरनगर की खतौली सीट पर हुए विधानसभा उपचुनाव उसके पक्ष में नहीं गया है. बीजेपी इस बार लोकसभा की 80 सीटें जीतने का लक्ष्य तय कर चुकी है. लेकिन क्या इस बार पार्टी के लिए इतना आसान रहेगा. इस पर जब उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस से बात की गई तो उनका कहना था कि ये बात सही है कि यूपी में इस समय ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे बीजेपी को परेशान होना पड़े. बिखरा हुआ विपक्ष बीजेपी को टक्कर देने की स्थिति में नहीं है.

सिद्धार्थ कलहंस का कहना था कि साल 2014 की तुलना में 2019 में बीजेपी की सीटें इसलिए भी कम हुई थीं क्योंकि सपा-बीएसपी गठबंधन ने कई जगहों पर अच्छा काम किया था. लेकिन इस बार बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ किया है कि उनका किसी के भी साथ गठबंधन नहीं होगा. कांग्रेस भी प्रदेश में उस स्थिति में नही हैं.हालांकि सिद्धार्थ कलहंस ने बीजेपी के लिए थोड़ी चिंता की बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जरूर कही है. उन्होंने कहा कि खतौली में जिस तरह से दलित+मुसलमान और गुर्जरों का समीकरण बना है वो कई सीटों पर बीजेपी को परेशान कर सकता है. साथ ही राहुल गांधी की यात्रा भी कहीं न कहीं थोड़ा बहुत प्रभाव डाल रही है.सिद्धार्थ के मुताबिक चुनावी समाजशास्त्र में वोटरों का उबना भी कई हार-जीत की वजह बन सकती है. उनका कहना है कि बीजेपी पार्षद से लेकर लोकसभा चुनाव तक लगातार जीतती आ रही है. इससे वोटर ऊब भी सकते हैं और कोर वोटरों में भी उदासीनता आ जाती है. बीजेपी अगर इन चुनौतियों से निपटी है तो निश्चित तौर पर बीजेपी को फायदा होगा.

उत्तर प्रदेश के ही वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा खतौली समीकरण को पूरी तरह नकारते हैं. उनका कहना है बीजेपी चुनाव सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे और काम पर लड़ेगी. खतौली में जब पीएम मोदी जाएंगे तो वहां भी बाकी समीकरण काम नहीं करेंगे. उनका कहना है कि यूपी में ऐसा कोई भी फैक्टर बनता नहीं दिखाई दे रहा है जो बीजेपी को नुकसान पहुंचा सके. उन्होंने कहा कि उपचुनाव से लोकसभा चुनाव का पैमाना नहीं तय किया जा सकता है. योगेश का मानना है कि यूपी में बीजेपी की सीटें 2019 की तुलना में बढ़ने वाली हैं.

बिहार की राजनीति

लोकसभा चुनाव 2019
बीजेपी-17
जेडीयू-16
लोकजनशक्ति पार्टी-6
आरजेडी-0
कांग्रेस-1

बिहार में भी राजनीतिक उठापटक काफी तेज है. नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होना बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं था. लेकिन बीजेपी अब इससे धीरे-धीरे उबर रही है और पलटवार की तैयारी में है. नीतीश कुमार के कभी खास और कभी दुश्मन बन जाने वाले उपेंद्र कुशवाहा इस समय बीजेपी नेताओं के संपर्क में हैं. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू और आरजेडी के संयुक्त वोटबैंक के आगे बीजेपी पश्त हो गई थी. जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस को मिलाकर एक महागठबंधन बनाया गया था. जिसमें 15 फीसदी यादव, 11 फीसदी कुर्मी-कोरी-निषाद और 17 मुसलमान फीसदी मुसलमान मिलाकर 43 फीसदी तक का वोटबैंक शामिल था. बीजेपी के लिए ये अंतर पाटना आसान नहीं है. अब बीजेपी ने भी रणनीति बदल दी है. पार्टी की कोशिश 26 फीसदी अति पिछड़ा, 15 फीसदी ऊंची जातियों और 16 फीसदी दलितों को मिलाने की है. चिराग पासवान बीजेपी के साथ आ चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा को लाने की तैयारी में है. चिराग पासवान 5 फीसदी वोटबैंक पर दावा करते हैं तो उपेंद्र कुशवाहा जिस कोरी जाति से आते हैं उसका वोट 3 फीसदी है.

दूसरी ओर बिहार में जेडीयू और आरजेडी गठबंधन में सब कुछ ठीक है, इस पर भी कई सवाल उठ रहे हैं. हालांकि नीतीश कुमार और तेजस्वी आपस में जिस तरह से सामजस्य दिखाते हैं उससे लगता है कि शीर्ष स्तर पर ठीक है, लेकिन दूसरी पंक्ति के नेताओं में ऐसी बातें नदारद हैं. सुधाकर सिंह का प्रकरण, रामचरित्र मानस पर अलग-अलग बयान और हाल ही में जेडीयू के नारे के बाद आए आरजेडी के नारे से जाहिर है कि गठबंधन में कहीं न कहीं कुलबुलाहट है.

बिहार में बीजेपी
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर के मुताबिक बिहार में लोकसभा चुनाव का परिदृश्य महागठबंधन के अंदर चल रही उथल-पुथल तय करेगी. जेडीयू और आरजेडी के नेताओं के बयानों में सामंजस्य नहीं दिखता है. साथ ही इसका असर सरकार के कामकाज पर भी पड़ रहा है. इसका फायदा बीजेपी को होता दिख रहा है.

बीबीसी की हिंदी सेवा में पत्रकार रहे मणिकांत ठाकुर का मानना है कि बीजेपी इस बात का कुशलतापूर्वक संदेश देने में सफल हो रही है कि बीते 20 साल में बिहार में जो भी काम नहीं हुए हैं उसके जिम्मेदार नीतीश कुमार ही हैं.

साथ ही बिहार की राजनीति में जिन लालू यादव के विकल्प के तौर पर नीतीश का उभार हुआ था वो जगह अब बीजेपी भरने की कोशिश कर रही है. मणिकांत ठाकुर का कहना है कि अगर जेडीयू-आरजेडी के बीच ऐसे ही तनाव जारी रहा तो इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा. ठाकुर का कहना है कि बीजेपी भले ही 2014 की तरह सीटें न पाए लेकिन 2019 की तरह वह अपने सीटें बचाए रखने में कामयाब हो सकती है.

जातीय समीकरण पर मणिकांत ने कहा कि जिन अति पिछड़ों के दम पर नीतीश कुमार ने खुद को आगे बढ़ाया है उसमें बीजेपी भी अपना पैठ बना चुकी है. बीजेपी इस बात का संदेश दे रही है कि केंद्र की सत्ता ध्यान में अति पिछड़ा ही हैं. बीजेपी राज्य में दलित+अति पिछड़ा और सवर्णों का समीकरण बना रही है. नीतीश के लिए एक नुकसान की बात ये भी है कि आरजेडी के साथ जाते ही अब उनको सवर्णों का वो समर्थन नहीं मिलेगा जो बीजेपी के साथ होने पर मिलता था.

वहीं बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क का कहना है कि इस राज्य में बीजेपी की गाड़ी फंसती नजर आ रही है. उन्होंने कहा कि बिहार में जेडीयू+आरजेडी गठबंधन को मिलाकर जो जातीय समीकरण बनता है उसके वोट प्रतिशत तक बीजेपी का पहुंचना कम से कम अभी तो मुश्किल लग रहा है और इस लिहाज से बीजेपी की सीटें घट सकती हैं.

मध्य प्रदेश में क्या है हाल
मध्य प्रदेश: लोकसभा चुनाव 2019
बीजेपी-28
कांग्रेस-1

बात करें मध्य प्रदेश की तो यहां पर साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता आने का बाद कई नाटकीय घटनाक्रम हुए और सीएम बनाए गए कमलनाथ को कुर्सी गंवानी पड़ गई. कभी टीम राहुल के सबसे बड़े रणनीतिकार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने कांग्रेस को बुरी तरह कमजोर कर दिया है. सिंधिया अब बीजेपी नेता हैं और मोदी सरकार में मंत्री हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हुई कांग्रेस की करारी हार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने खेमे के विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि पार्टी के पास शिवराज के टक्कर का लोकप्रिय और ओबीसी नेता नहीं है. कमनाथ का प्रभाव भी छिंदवाड़ा तक ही सीमित है. बात करें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की तो उनके बयान ही कांग्रेस के लिए परेशानी की वजह हैं. साल 2014 में पार्टी की करारी हार के पीछे कुछ नेताओं को बयान भी मुद्दा बने थे जिनमें दिग्विजय सिंह सबसे प्रमुख थे.

खबरों की मानें तो कांग्रेस के सामने इस बार कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और अरुण यादव के बीच चल ही खींचतान भी बड़ी चुनौती है. साल 2018 से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पार्टी में जारी इस रस्साकसी को कम नहीं कर सके हैं. दिसंबर के महीने में जब कांग्रेस शिवराज सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी कमलनाथ विधानसभा में मौजूद नहीं थे. ये एक तरह का संकेत था कि विपक्ष के नेता गोविंद सिंह के इस फैसले वो खुश नहीं थे.

मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए राह भी उतनी आसान नहीं है. यहां पार्टी की कांग्रेस से सीधे टक्कर है. इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने भी हैं. बीजेपी को इस बार 20 सालों की सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ा है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव भी सत्ता विरोधी लहर होने के बाद भी पार्टी को 109 सीटें मिल गई थीं. जबकि कांग्रेस ने 114 सीटें पाकर सरकार बनाई थी. हाल ही में हुए मेयर के चुनावों में ग्वालियर में मेयर का चुनाव 57 साल बाद जीती है. लेकिन इसी शहर में बीजेपी ने कांग्रेस से ज्यादा पार्षद जीते हैं ये धरातल पर कांग्रेस के लिए यह दिक्कत की बात है. मध्य प्रदेश में जहां तक वोटबैंक की राजनीति का सवाल है तो राज्य में बीजेपी सरकार बहुत ही आक्रामक तरीके से आदिवासियों के बीच काम कर रही है जो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक हैं. वहीं कांग्रेस हिंदू वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है.

मध्य प्रदेश में बीजेपी दोहराएगी करिश्मा?
पत्रकार राजीव अग्निहोत्री का कहना है कि लोकसभा चुनाव में कोई चमत्कार ही कांग्रेस को यहां फायदा पहुंचा सकता है. हालांकि उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल सकती है. विधानसभा चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी की भूमिका भी अहम हो सकती है.

राजीव अग्निहोत्री का कहना है कि राहुल गांधी की यात्रा का मध्य प्रदेश में असर देखने को मिला लेकिन कांग्रेस का संगठन इतना मजबूत नहीं है कि इसको वोटों में तब्दील कर सके. दूसरी सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने चेहरों की है. पार्टी के पास पुराने ही चेहरे हैं जो पहले से ही हारे हुए हैं.

राजीव ने बताया कि बीजेपी ने बूथ लेवल पर अभी से काम शुरू कर दिया है. उसकी ये तैयारी विधानसभा और लोकसभा चुनाव दोनों को लेकर है. हालांकि शिवराज सिंह चौहान अब उतने लोकप्रिय नही हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को एक या दो सीटों का ही नुकसान हो सकता है. यानी 2019 में उसे 28 सीटें मिली थीं इस बार एक या दो और कम हो सकती हैं. विधानसभा चुनाव में कई लोकल मुद्दे हैं. एंटी इनकमबेंसी, टिकट वितरण, पेंशन का मामला जैसे कई फैक्टर हैं जो बीजेपी को परेशान कर सकते हैं.हालांकि मध्य प्रदेश के ही एक और वरिष्ठ पत्रकार राजीव पांडेय इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन करेगी. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं. इस लिहाज से सभी मानकर चल रहे थे कि 2019 में कांग्रेस को कम से कम 10 लोकसभा सीटें को मिलेंगी ही. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.इस बार परिस्थितियां फिर बदली हैं. एंटी इनकमबेंसी, चुनी हुई सरकार गिरना, कोविड के दौरान कुप्रबंधन, जैसे मुद्दे भी सामने होंगे. कांग्रेस अगर अपनी अंदरुनी गुटबाजी पर काबू पा लेती है तो निश्चित तौर पर उसकी सीटें लोकसभा में तो बढ़ेंगी ही साथ ही विधानसभा चुनाव में वो अच्छी स्थिति में पहुंच जाएगी.

छत्तीसगढ़ में कौन है पानी में
लोकसभा चुनाव 2019
बीजेपी-9
कांग्रेस-2
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अभी तक बीजेपी के हर हमले का बखूबी जवाब दिया है. भूपेश बघेल कांग्रेस के लोकप्रिय चेहरा हैं और मुख्य रणनीतिकारों में भी उनकी गिनती है. साल 2018 के चुनाव में बीजेपी के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को सत्ता से बाहर करने में भूपेश बघेल की रणनीति काम आई थी. बीजेपी ने बीते साल सांसद अरुण साव को यहां पर प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. इसके पीछे एक तगड़ी रणनीति भी है. छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल राज्य है जहां 32 फीसदी आबादी शेड्यूल ट्राइब यानी एसटी के दायरे में आती है. दौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद इस बात की चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी इस बार आदिवासी समुदाय से आने वाले किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बना सकती है.

पार्टी ने आदिवासी नेता विष्णु देव साई की जगह अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. अरुण साव ओबीसी नेता हैं और मौजूद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी ओबीसी समुदाय से आते हैं. बीते विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल की वजह से कांग्रेस को ओबीसी वोटरों का बड़ा वोट मिला था. साल 2023 में भी इस राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं.

छत्तीसगढ़ में बीजेपी का हाल
छत्तीसगढ़ के समीकरणों को समझने के लिए हमने राज्य के वरिष्ठ पत्रकार अजयभान सिंह से बात की. उनका कहना है कि राज्य में बीजेपी के पक्ष में फिलहाल कोई मोमेंट नहीं है लेकिन वो फायदे में है. उन्होंने कहा कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी की हालत मरणासन्न हो गई थी लेकिन फिर आंखें खोल ली है. लेकिन विधानसभा चुनाव के पक्ष में जो तूफान कांग्रेस के पक्ष में उठा था वो अब शांत हो गया है. आज के जो समीकरण हैं उस लिहाज से तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 20-22 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है लेकिन फिर भी वो सरकार बनाने की स्थिति में है. अजय भान सिंह के मुताबिक ये बात लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में लागू नहीं होती है. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आम जनता के बीच बीते 20-25 सालों में एक धारणा बन गई है कि विधानसभा किसी की भी सरकार हो लेकिन लोकसभा में बीजेपी ही होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में कोरबा की सीट छोड़कर बीजेपी के लिए कहीं कोई खास दिक्कत नजर नहीं आ रही है.

छत्तीसगढ़ में ही पत्रकार आलोक पुतुल भी कमोबेश इसी बात से सहमत हैं. उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव के नजरिए से देखें तो कांग्रेस इस राज्य में जहां पर पहुंच चुकी है उससे आगे तो जानने की संभावना बचती नहीं है. जिस तरह से बीते कुछ दिनों में अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों ने कार्रवाई की है उससे भूपेश बघेल सरकार की बदनामी हुई है. बीजेपी अपने कांग्रेस मुक्त भारत अभियान के लिए पूरी ताकत लगा देगी. आलोक पुतुल ने कहा कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. लेकिन सवाल इस बात का है कि पीएम मोदी के चेहरे का मुकाबला के लिए कांग्रेस का कितना तैयार है?

राजस्थान का रण
राजस्थान में भी बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर है. इस राज्य में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन यहां पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां आपसी झगड़े में जूझ रही हैं. कांग्रेस में तो सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच झगड़े से दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान भी लाचार नजर आ रहा है. सीएम अशोक गहलोत ने तो जो कि सोनिया गांधी के सबसे निकट सिपहसालार माने जाते हैं, उन्होंने ही पार्टी के आलाकमान के इकबाल को खत्म कर दिया है.

राजस्थान का रण
राजस्थान में भी बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर है. इस राज्य में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन यहां पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां आपसी झगड़े में जूझ रही हैं. कांग्रेस में तो सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच झगड़े से दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान भी लाचार नजर आ रहा है. सीएम अशोक गहलोत ने तो जो कि सोनिया गांधी के सबसे निकट सिपहसालार माने जाते हैं, उन्होंने ही पार्टी के आलाकमान के इकबाल को खत्म कर दिया है. कांग्रेस की दिक्कत यहां ये है कि सीएम अशोक गहलोत ओबीसी नेता हैं तो सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से आते हैं. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में गुर्जरों का एकमुश्त कांग्रेस को मिला था जिसके पीछे सचिन पायलट ही थे. गुर्जर राजस्थान में बीजेपी का वोटबैंक हुआ करते थे. इसलिए सचिन पायलट को नाराज करना कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता है.

दूसरा, सीएम अशोक गहलोत माली जाति से आते हैं और राजस्थान में यह ओबीसी के दायरे में आते हैं. बीजेपी ने जिस तरह से हिंदी प्रदेशों में ओबीसी जातियों का एक समीकरण बनाया है ऐसे में अशोक गहलोत को सीएम पद से हटाना न सिर्फ राजस्थान बल्कि कई प्रदेशों में प्रभाव डाल सकता है. अशोक गहलोत के पक्ष में एक बात ये भी है कि उनके साथ विधायकों की बड़ी संख्या है. राजस्थान बीजेपी में भी कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यहां भी सीएम पद की दावेदारी को लेकर वसुंधरा राजे, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच रस्साकसी की खबरें हैं. बीते साल सितंबर के महीने में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया ने एक पदयात्रा शुरू की लेकिन उसमें प्रदेश का कोई भी वरिष्ठ नेता नहीं आया.

राजस्थान में बीजेपी का हाल
लोकसभा चुनाव 2019
बीजेपी-24
आरएलपी-1
कांग्रेस-0

राजस्थान में बीजेपी ने साल 2019 में क्लीन स्वीप किया था. बीजेपी के खाते में सभी 25 सीटें आई थीं. वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने कहा कि इस बार ये करिश्मा दोहरा पाना संभव नहीं है. राजस्थान में कई जातियों और संप्रदायों की महात्वकांक्षाएं बढ़ी हैं और सबके अपने-अपने मुद्दे हैं. ओम सैनी का कहना है कि इस बार यहां हालात 50-50 फीसदी के हैं लेकिन इसमें सचिन पायलट और अशोक गहलोत के साथ चल रही नूराकुश्ती भी बहुत मायने रखती है.

ओम सैनी का मानना है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत साथ हो जाएं तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है. सचिन पायलट के गुर्जरों के नेता हैं. अशोक गहलोत ने भी सभी जातियों को मिलाकर अच्छा सामजस्य बैठा रखा है. बीजेपी के पास यहां अभी हिंदुत्व का ही सहारा है. राजस्थान विधानसभा की 30 सीटों पर गुर्जर और मीणा का संयुक्त रूप वोट प्रभावी है. बीजेपी को कितनी सीटें मिलेंगी ये कांग्रेस के अंदरुनी झगड़े से भी तय होगा. वहीं राजस्थान के ही पत्रकार श्रीपाल शक्तावत का कहना है कि अगर कांग्रेस की यही लीडरशिप रहती है तो बीजेपी की सीटों में कोई बदलाव नहीं होगा. लेकिन अगर पायलट के हाथ में कमान आती है तो 3-4 सीटें कांग्रेस को मिल सकती हैं. उन्होंने कहा कि राजस्थान में जाति की राजनीति बहुत प्रभावी है. और इस समय धर्म और जाति की राजनीति दोनों ही बीजेपी के पक्ष में जाते दिख रहे हैं.

क्या है झारखंड में अभी हालात
लोकसभा चुनाव 2019
बीजेपी-11
आजसू-1
कांग्रेस-1
झारखंड मुक्ति मोर्चा-1

झारखंड साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 14 में से 12 सीटें जीत ली थीं. हालांकि इसके बाद साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका और सत्ता से बाहर हो गई. 81 सदस्यों की विधानसभा में बीजेपी को 25, झारखंड मुक्ति मोर्चा 30 और कांग्रेस को 16 सीटें मिलीं थीं. झारखंड आदिवासी बहुल राज्य हैं. यहां पर इनका वोटबैंक पूरी राज्य को प्रभावित करता है. सीएम हेमंत सोरेन खुद भी आदिवासी समुदाय से आते हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने में आदिवासी समुदाय के वोटों का बड़ा हाथ रहा है. झारखंड में आदिवासियों के 4 समुदाय हैं. संथाल, मुंडा, हो और ओरांव. इसमें बीजेपी की मुंडा समुदाय पर पकड़ रही है. इसकी बड़ी वजह करिया मुंडा और अर्जुन मुंडा जैसे नेता रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास संथाल, कांग्रेस को हो और ओरांव आदिवासियों का समर्थन रहा है. बीजेपी ने एक बार फिर से अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी को आगे करना शुरू कर दिया है.

झारखंड में बीजेपी के सामने चुनौतियां
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क के मुताबिक झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली है. 1932 के खातियान मुद्दे से उन्होंने खुद को आदिवासियों की भावनाओं से जोड़ लिया है. जमीनी हकीकत को देखते हुए लगता है कि बिहार में अभी झारखंड मुक्ति मोर्चा काफी मजबूत स्थिति में है और यहां पर बीजेपी अपनी सीटें गंवाती हुई नजर आ रही है. हालांकि मणिकांत ठाकुर इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि हाल ही की दिनों में हेमंत सोरेन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं. झामुमो का गठबंधन के साथी कांग्रेस के साथ भी इस समय समीकरण अच्छे नहीं दिख रहे हैं. इसके साथ ही बीजेपी राज्य में हिंदुत्व का भी मुद्दा बना रही है. बीजेपी इस राज्य में फायदे की स्थिति में दिख रही है.

हरियाणा, बीजेपी का गढ़
लोकसभा चुनाव 2019
बीजेपी-10
कांग्रेस-0
आईएनएलडी-0

हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटें हैं. इस लिहाज से राज्य छोटा है. साल 2013 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पहली रैली हरियाणा के रेवाड़ी में की थी. इस रैली पूर्व सैनिकों को लेकर की गई थी. इस रैली में आई भीड़ ने ही तय कर दिया था कि देश में 2014 के चुनाव में मोदी लहर आने वाली है. इसके बाद हरियाणा में बीजेपी की भी सरकार बनी और जाटों के गढ़ में गैर जाट बिरादरी से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को बनाया गया है. लेकिन साल 2019 में जाट आरक्षण की आग ने खट्टर को झुलसाया भी. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें घट गईं. 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में साल 2014 में बीजेपी को 47 सीटें मिली थीं और अपने दम पर सरकार बनाई थी. वहीं साल 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 40 सीटें मिलीं थीं और कांग्रेस को 31 सीटें मिलीं. जबकि साल 2014 में कांग्रेस को 15 सीटें ही मिली थीं.

इस बार नहीं है राह आसान
पत्रकार एसपी भाटिया के मुताबिक पिछली बार सभी 10 सीटें वाली बीजेपी को इस बार खासा नुकसान होता दिख रहा है. इसके पीछे राज्य सरकार के कुछ फैसले हैं जिनसे आम जनता में काफी नाराजगी है. उन्होंने एक उदाहरण के तौर पर समझाते हुए कहा कि प्रॉपर्टी आईडी की वजह से काफी लोग परेशान हैं और राज्य सरकार को कोस रहे हैं. दूसरी ओर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का ही असर है कि बीजेपी भी अब घर-घर जाकर संपर्क कर रही है. इसके साथ ही किसानों को एमएसपी का भी मुद्दा यहां पार्टी के पक्ष में नहीं है.

हरियाणा के ही सीनियर जर्नलिस्ट बलवंत तक्षक भी एसपी भाटिया से अलग राय नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि पिछली बार 10 की 10 सीटें बीजेपी ने जीत ली थीं. लेकिन इस बार वैसा उत्साह नजर नहीं आ रहा है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन अभी जो हालात हैं उससे बीजेपी के कुछ नेताओं में ही निराशा नजर आ रही है. उन्होंने कहा कि राव इंद्रजीत अहिरवाल बेल्ट के बड़े नेता हैं वो कांग्रेस से बीजेपी में आए लेकिन उनको कोई ठीक मंत्रालय नहीं मिला. इसी तरह कांग्रेस छोड़कर अरविंद शर्मा भी कुछ खुश नजर नहीं आते हैं. कई सांसदों का परफॉरमेंश भी ठीक नहीं है. इसके साथ ही जाटों आंदोलन के समय बीजेपी के पक्ष में लामबंद जातियों को भी कोई खास फायदा नहीं मिला. बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर भी लोग परेशान हैं. बलवंत तक्षक ने अगर यही स्थितियां लोकसभा चुनाव तक बनी रहीं तो बीजेपी के पास हरियाणा में खोने को बहुत कुछ है