यूपी में कम मतदान सपा के लिये बना मुसीबत! सरकार बदलने घरों से नहीं निकल रहे लोग

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत चुनाव विश्लेषकों के लिये बडी मुसीबत बन गया है। चुनावों के खुद को पंडित बताने वाले और योगी सरकार के खिलाफ अखिलेश यादव की आंधी की घोषणा करने वाले चुनावी बुद्धिजीवी भी अब सातवां चरण आते-आते सुर बदलते दिख रहे है।

भाजपा के जन्मजात विरोधी भी अब इस बात को मानने लगे है कि यूपी के मतदान के दौरान मतदाताओं में सरकार विरोधी कोई लहर दिखाई नहीं दे रही है। मतदान प्रतिशत को लेकर कई सारी चल रही थ्योरी में अब एक नई थ्योरी आई है। इस थ्योरी के अनुसार चुनाव से पहले आये सभी ओपिनयन पोल में से किसी ने भी समाजवादी पार्टी को बहुमत पाते नहीं दिखाया था, वहीं भाजपा को सभी पोल ने बहुमत से ज्यादा सीटें पाने का अनुमान दिया था, लेकिन काफी नुकसान भी जताया था। कुल मिलकर सभी पोल ने योगी सरकार की वापसी बताया था। विश्लेषकों का अनुमान है कि ये बडी वजह है कि लोगों में मैसेज गया कि वो मतदान करें या ना करें यूपी में सरकार बदलने वाली नहीं है। ज्यादा मतदान प्रतिशत सरकार को बदलने के रुप में देखा जाता है, लेकिन यूपी मे ऐसा कोई माहौल सामने नहीं आया है।

वहीं मतदान ने एक ओर थ्योरी को तोड दिया है। यूपी के चुनाव में वेस्ट यूपी से चली हवा को पूरे यूपी में जाने की बात कही जाती है, लेकिन वेस्ट यूपी का मतदान प्रतिशत को बाकी प्रदेश अपनाता नहीं दिख रहा है। माना जा रहा है कि कम मतदान वास्तव में बीजेपी की मदद करेगा क्योंकि यह एक कैडर-बेस्ड पार्टी है।

2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों के परिणामों का विश्लेषण करते हुए, लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि “लगातार तीन चुनावों में, बीजेपी ने कम मतदान वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया.” उनके मुताबिक, औसतन मतदान को लेकर कम उत्साह होने पर भी बीजेपी के कार्यकर्ता वोट जुटाने में सक्षम हैं।

अगर हाल के चुनावों की बात करें तो मतदान संख्या इस बात का संकेत नहीं है कि जनादेश किस दिशा में जा रहा है. आमतौर पर कहा जाता है कि उच्च मतदान से विरोधी पक्ष का फायदा होता है. वोटिंग संख्या में अचानक उछाल एक खास दिशा में लहर का संकेत दे सकता है।