मंदिर-मोदी का करिश्मा फिर भी छोटे दलों पर डोरे क्यों डाल रही बीजेपी, क्या 400+ मुश्किल है?

Mandir-Modi's charisma, why is BJP still targeting small parties, is 400+ difficult?
Mandir-Modi's charisma, why is BJP still targeting small parties, is 400+ difficult?
इस खबर को शेयर करें

PM Narendra Modi News: हम परिवार नियोजन में विश्वास करते हैं लेकिन राजनीति में इसे नहीं अपनाते… गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह बात यूं ही नहीं कही है. इसके बड़े मायने हैं. ऐसे समय में जब राम मंदिर की लहर से भाजपा ने माहौल बना रखा है, आत्मविश्वास चरम पर है, ‘400 पार’ का नारा बुलंद किया जा रहा है, प्रचार तंत्र एक्टिव है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में लोकप्रिय और करिश्माई चेहरा मौजूद है फिर भी भारतीय जनता पार्टी को छोटे दलों की इतनी जरूरत क्यों है? क्या मोदी-शाह के लक्ष्य में कुछ सीटें टेंशन पैदा कर रही हैं या पार्टी हाईकमान आम चुनाव को लेकर पूरी तरह आश्वस्त होने के लिए ऐसा कर रहा है.

JDU, आरएलडी, अकाली…
शाह ने कहा है कि भाजपा हमेशा नए सहयोगियों का स्वागत करती है और शिरोमणि अकाली दल के साथ बातचीत जारी है. इससे पहले यूपी में जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल और बिहार में नीतीश कुमार को अपने खेमे में किया जा चुका है. कर्नाटक में जेडीएस भी इस बार इधर है. टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस से भी लगभग बात बन चुकी है. तभी शाह ने कुछ समय इंतजार करने की बात कही है. पार्टी दावा कर रही है कि चुनावों में 543 में से 400 से ज्यादा सीटें जीतेगी. पीएम खुद संसद में तीसरे कार्यकाल की बात कर चुके हैं.

ऐसा कहा जा रहा है कि शायद पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने चुनावों की घोषणा से पहले ही अगले पांच साल के एजेंडे को सामने रखा है. यह आत्मविश्वास है या अतिआत्मविश्वास या अब तक वोटिंग का मूड न बनाने वाले वोटरों को प्रभावित करने के साथ I.N.D.I.A खेमे को पस्त करने की रणनीति? संसद से ऐसा कहना समान विचारधारा वाले विरोधियों को पीएम का गुपचुप आमंत्रण भी कह सकते हैं.

400 पार कैसे होगा?

अब सवाल उठता है कि 400+ का आंकड़ा क्या संभव है. अगर हां तो कैसे? 1984 में राजीव गांधी के समय कांग्रेस को 404 सीटें मिली थीं. वह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या पर सहानुभूति और गुस्से का रीएक्शन था. उस समय कांग्रेस कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर तक मजबूत थी. हालांकि भाजपा लोकसभा की 543 में से करीब 150 सीटें आज तक नहीं जीती है. अब अगला सवाल यह पैदा होता है कि अगर कोई पार्टी 543 में से 390 में ही मौजूद है तो वह अपने दम पर 370 के आंकड़े तक कैसे पहुंच सकती है?

– BJP को 2014 में 31% वोट के साथ 282 सीटें मिली थीं.
– 2019 में भाजपा का वोट छह फीसदी बढ़ा और सीटें 21 बढ़ीं.
– चुनावी एक्सपर्ट की मानें तो भाजपा का पांच फीसदी वोट बढ़ता है तो वह 343 तक पहुंच सकती है.
– हां, अगर 370 सीटें चाहिए तो उसे 8-10 फीसदी वोट बढ़ाने होंगे. इसके लिए उसे आंध्र प्रदेश की 25 और तमिलनाडु की 39 सीटों से भी गुड न्यूज हासिल करनी होगी. नहीं तो कम से कम खेमे में यहां के दलों को जोड़ना होगा.

भाजपा का प्लस प्वाइंट

अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद हिंदीभाषी क्षेत्र को लेकर भाजपा का आत्मविश्वास शिखर पर दिख रहा है. हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड, यूपी, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अगर उसका प्रदर्शन पहले जैसा रहता है तो वह 303 सीटों तक आसानी से पहुंच जाएगी. यूपी और तेलंगाना में बढ़त ले ले तो 325 तक आंकड़ा पहुंच सकता है.

– अब 370 सीटें चाहिए तो उसे बंगाल और ओडिशा में सीटें बढ़ानी होंगी.

– महाराष्ट्र और बिहार में पिछला प्रदर्शन दोहराना होगा. नीतीश कुमार के आने से बिहार में स्थिति मजबूत हुई है.

– पिछली बार 77 सीटें ऐसी थीं जिन्हें भाजपा एक लाख या उससे कम वोटों के अंतर से जीती थी. इन 77 सीटों पर विपक्ष संयुक्त उम्मीदवार उतारता है तो भाजपा की मुश्किल बढ़ सकती है.

– चुनाव एक्सपर्ट कह रहे हैं कि अगर विपक्ष एकजुट रहता है और उसके वोट प्रतिशत में 5 फीसदी का इजाफा होता है तभी भाजपा 303 से 50-60 सीटें कम पर सिमट सकती है.

– इससे साफ है कि भाजपा की रणनीति अपना कुनबा बढ़ाने के बजाय विपक्षी कुनबे में फूट कराने की होगी. विपक्ष के खेमे में खलबली मचेगी तो वोटर की नजर में विपक्ष कमजोर दिखेगा.

नेहरू से राहुल तक अटैक

हाल में आपने देखा होगा कि नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक भाजपा के निशाने पर हैं. दूसरी तरफ भाजपा के नेता क्षेत्रीय दलों को अपनी तरफ खींच रहे हैं. वे चुनाव जीतने के लिए अपने तरकश के हर सियासी तीर का इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं. राम मंदिर बन गया, राष्ट्रवाद, करोड़ों लाभार्थी, पीएम मोदी की करिश्माई छवि के बावजूद भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है. बंगाल में ममता तो पंजाब में केजरीवाल की अपनी-अपनी लाइन बोल रहे हैं, बिहार में नीतीश का टूटना, यूपी में जयंत चौधरी का मोहभंग… ऐसे घटनाक्रम विपक्ष को कमजोर और एनडीए की पोजीशन को मजबूत करते हैं. शिरोमणि अकाली दल, टीडीपी जैसे दलों से बात चल रही है. भाजपा लोकसभा चुनाव में अपनी जीत 400 के पार पहुंचाने के लिए ही विपक्षी खेमे को कमजोर करने में जुटी है.