मंत्री के हत्यारोपी पुलिसकर्मी को ये है बीमारी, जानें कितनी खतरनाक और क्या हैं लक्षण

Minister's killer policeman has this disease, know how dangerous it is and what are the symptoms
Minister's killer policeman has this disease, know how dangerous it is and what are the symptoms
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नई दिल्ली। ओडिशा के स्वास्थ्य मंत्री नब दास की हत्या का आरोपी एक पुलिस वाला है. ASI गोपाल दास पर आरोप है कि उन्होंने एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे नब दास पर बेहद नजदीक से फायरिंग की जिसके बाद इलाज के दौरान मंत्री की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि गोपाल दास बाइपोलर डिसऑर्डर नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित है. यह कोई दुर्लभ बीमारी नहीं है बल्कि हर 150 में से एक भारतीय इस बीमारी का शिकार है. हालांकि, इस बीमारी को लेकर अब जागरुकता बढ़ रही है लेकिन अब भी इससे पीड़ित 70 प्रतिशत लोगों का इलाज नहीं हो पाता है.

क्या है बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder)?

लीडिंग हेल्थ वेबसाइट हेल्थलाइन के मुताबिक, बाइपोलर डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है जो शरीर में डोपामाइन हार्मोन के असंतुलित हो जाने के कारण होता है. डोपामाइन में असंतुलन व्यक्ति के स्वभाव में बड़ा बदलाव लाता है. व्यक्ति को इस बीमारी की वजह से भयंकर मूड स्विंग्स होते हैं. इस बीमारी में व्यक्ति को दो तरह के डिप्रेशन के दौरे पड़ते हैं. पीड़ित व्यक्ति या तो बेहद फुर्तीला महसूस करेगा या वो बिल्कुल ही शांत हो जाएगा और उसे उदासी के दौरे पड़ेंगे. इन दोनों ही स्थितियों को हाइपरमेनिया और हाइपोमेनिया कहते हैं.

हाइपरमेनिया और उसके लक्षण-

जब व्यक्ति को हाइपरमेनिया के दौरे पड़ते हैं तब उसका मूड बहुत हाई रहता है और उसका मन बेहद बेचैनी में रहता है. वास्तविकता से व्यक्ति का कोई लेना-देना नहीं रह जाता और वह अतार्किक बातें करता है. इस वक्त व्यक्ति असंभव लगने वाली बातें करता है और खूब काम करता है.

वो थकान महसूस नहीं करता और नींद भी नहीं लेता. व्यक्ति बिना सोचे-समझे कोई भी फैसला लेने लगता है और खूब खर्च करता है. व्यक्ति में ये सभी लक्षण कम से कम एक हफ्ते तक रहते हैं. अगर दो हफ्तों तक ये लक्षण बने रहते हैं तो इसका मतलब है कि व्यक्ति को मेनिया यानि तेजी का दौरा पड़ा है.

अन्य लक्षण-
– सेक्स की तरफ अधिक आकर्षण बढ़ना और सेक्सुअल कंटेंट का अधिक इस्तेमाल
-शराब और ड्रग्स का अधिक इस्तेमाल करना
-बिना कारण जॉब छोड़ देना
-रोड ट्रिप पर बिना किसी को बताए निकल जाना और तेज गाड़ी चलाना
-बिना सोचे-समझे अपना पैसा कहीं भी निवेश करना

हाइपोमेनिया और उसके लक्षण-

बीमारी की दूसरी स्थिति में व्यक्ति बेहद उदास हो जाता है और शांत होकर किसी कोने में बैठा रहता है. वो बिना किसी कारण रोते रहता है और किसी काम में उसका मन नहीं लगता. उसमें काम करने इच्छा खत्म हो जाती है और हर वक्त बिस्तर पर पड़े रहता है.

अन्य लक्षण-
-बहुत कम या बहुत ज्यादा नींद आना
-अपनी अहमियत खो देना
-फैसले न ले पाना
-आत्महत्या के विचार आना
-भूख और वजन कम होना

किस उम्र के लोगों को अधिक खतरा

डॉक्टरों का कहना है कि बाइपोलर डिसऑर्डर किसी भी उम्र के इंसान को हो सकता है. लेकिन 20-30 उम्र-वर्ग के लोगों में इसके होने की संभावना ज्यादा होती है.बच्चों में भी यह बीमारी हो सकती है लेकिन उनमें इस बीमारी की सही पहचान करना मुश्किल हो जाता है. कई बच्चे सामान्य तौर पर ज्यादा एक्टिव, अटेंशन सीकर होते हैं और हर वक्त उनका मूड बदलता रहता है. वो किसी एक जगह टिककर नहीं बैठ सकते और बिना डरे कौतूहल में कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे उन्हें ही नुकसान होता है.

बच्चों का मूड बदलता रहता है जो कि सामान्य है लेकिन अगर बच्चे के लक्षण बेहद गंभीर किस्म के हों तो किसी विशेषज्ञ से जरूर सलाह लेनी चाहिए.

बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण (हाइपरमेनिया)-

-बेवकूफी वाली हरकतें लगातार करना और बिना वजह हंसते रहना
-बहुत जल्दी-जल्दी बोलना और लगातार बातचीत का विषय बदलते रहना
-ध्यान न लगा पाना
-खुद को नुकसान पहुंचाने वाले काम करना
-बहुत जल्दी गुस्सा आना और गुस्से में किसी के ऊपर भी हाथ छोड़ देना
-कम सोना लेकिन फिर भी एक्टिव रहना

बच्चों में हाइपोमेनिया के लक्षण-
-उदास रहना और बार-बार रोना
-बहुत अधिक या बहुत कम सोना
-किसी चीज में मन न लगना
-बहुत कम या ज्यादा खाना
-आत्महत्या के ख्याल आना

लेकिन बच्चों में किसी भी तरह के लक्षण देखकर कुछ तय करने से पहले किसी विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह जरूरी है क्योंकि इस उम्र में अक्सर बच्चों के मूड में तेजी से बदलाव होते रहते हैं.

बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज

मानसिक बीमारियों पर काबू पाकर एक सामान्य जीवन जीया जा सकता है लेकिन उन्हें पूरी तरह जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता. बाइपोलर डिसऑर्डर भी अगर एक बार हो जाए तो इससे पूरी तरह छुटकारा नहीं पाया जा सकता. लेकिन दवाओं और थेरेपी से इस पर काबू रखा जा सकता है.

इस बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर हमारे मष्तिष्क की झिल्ली में डोपेमाइन की मात्रा को संतुलित करने के लिए स्टेबिलाइजर का इस्तेमाल करते हैं. इससे बीमारी पर कुछ हद तक नियंत्रण रखा जा सकता है.

परिवार वालों को भी ख्याल रखना चाहिए कि हाई मूड के दौरान लिए गए फैसले पर पीड़ित व्यक्ति को ज्यादा पछतावा न हो. परिवार को किसी भी गिल्ट से उबरने के लिए व्यक्ति की मदद करनी चाहिए जिससे वो आत्महत्या जैसा कोई कदम न उठाए. व्यक्ति को रचनात्मक कामों में लगाना चाहिए.