मध्यप्रदेश की हारी हुई सीटों पर मोदी ने उतार दिए मंत्री, समझिए बीजेपी का गेम

Modi fielded ministers from the lost seats of Madhya Pradesh, understand what is BJP's game
Modi fielded ministers from the lost seats of Madhya Pradesh, understand what is BJP's game
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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस साल होने वाले पांच राज्यों के चुनावों में ‘सामूहिक नेतृत्व’ और ‘मोदी लहर’ के भरोसे रहेगी। दरअसल, बीजेपी ने इस साल मई में कर्नाटक में मिली हार और इस महीने की शुरुआत में हुए उपचुनावों में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के हाथों हुई 3-4 की हार से उबरने के लिए नया प्लान बनाया है। पार्टी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में नई रणनीति के साथ दिख रही है। पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि इन चुनावों में पार्टी किसी भी उम्मीदवार को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करेगी। खासकर मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे हिंदी भाषी राज्यों में। बताया जा रहा है कि पार्टी क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और आपसी द्वंद को नियंत्रण में रखने और ‘पार्टी व्यक्ति से ऊपर’ के सिद्धांत को मजबूत करने का प्रयास होगा।

बड़े कैंडिडेट के ऐलान के पीछे का प्लान समझिए
साफ शब्दों में कहें तो, बीजेपी को उम्मीद है कि बड़े नाम वाले कैंडिडेट उन सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहेंगे जहां वह कमजोर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील से पार्टी चुनाव का एक और दौर जीतेगी, और मुख्यमंत्री पद का खुला रहना क्षेत्रीय नेताओं को कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करने का काम करेगा। बताया जा रहा है कि पार्टी की योजना भाई-भतीजावाद को रोकने और ‘वंशवाद की राजनीति’ से बचने की भी है। खासकर इसलिए कि यह आरोप पीएम कांग्रेस पर लगाते हैं। सूत्रों ने साफ कर दिया कि पार्टी अब प्रति परिवार एक टिकट देगी।

एमपी में बदल ली है रणनीति
एमपी में बीजेपी की रणनीति बिल्कुल बदली सी है। पार्टी ने चार सांसद, तीन केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव में उतार दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम अभी तक चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट की लिस्ट में नहीं है। बीजेपी सूत्रों के अनुसार, चौहान को टिकट देने से इनकार करने की बात सही नहीं है, लेकिन ये जरूर है कि कोई भी बड़ा नेता चुनाव के बाद सीएम बन सकता है। ये संकेत 64 वर्षीय चौहान के भविष्य के लिए अच्छा तो नहीं ही कहा जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारने से सामूहिक नेतृत्व का संदेश मिलता है। सूत्रों ने कहा कि पार्टी को विश्वास है कि अपनी मजबूत और बेहतरीन टीम को मैदान में उतारने से उसे कांग्रेस पर बढ़त मिलेगी। इन राज्यों में से प्रत्येक में, बुजुर्ग नेताओं को पांच साल पहले हारी हुई सीटों को जीतने का काम सौंपा जाएगा। बीजेपी कांग्रेस को राजस्थान और छत्तीसगढ़ से हटाने और तेलंगाना के मामले में भी ऐसी रणनीति पर चलेगी। तेलंगाना में केसी राव की भारत राष्ट्र समिति सत्ता में है।

राजस्थान में वसुंधरा का क्या होगा?
राजस्थान में, संभावित मुख्यमंत्री चेहरों में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल शामिल हैं, और संभावित उम्मीदवारों में राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और लोकसभा सांसद दीया कुमारी, राज्यवर्धन राठौड़ और सुखवीर सिंह जौनपुरिया भी शामिल हैं। राज्य में दो बार सीएम रह चुकीं 70 साल की वसुंधरा राजे के लिए ये चुनाव काफी अहम रहने वाला है। राज्य में पार्टी की सबसे प्रभावशाली नेता के रूप में वसुंधरा की पहचान है। लेकिन इस बार पार्टी ने यहां भी सामूहिक नेतृत्व के रूप में उतरने का फैसला किया है। देखना रोचक होगा कि राजे पार्टी के इस दांव से कैसे निपटती है। ये भी माना जा रहा है कि वह किसी अन्य सीएम के अधीन विधानसभा में तो नहीं जाएंगी। सूत्रों ने बताया कि राजस्थान के लिए बीजेपी की पहली सूची जल्द ही जारी होगी। पार्टी 49 सीटों पर कैंडिडेट की घोषणा कर सकती है।

छत्तीसगढ़ के लिए बीजेपी की अलग रणनीति

छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने एक अलग रणनीति बनाई है। पार्टी ने यहां राज्य सीएम भूपेश बघेल के भतीजे विजय को मैदान में उतार दिया है। पार्टी इस चुनाव को ‘बघेल बनाम बघेल’ करना चाहती है। लोकसभा सांसद विजय बघेल दुर्ग जिले के पाटन से चुनाव लड़ेंगे। यह सीट 2003 से दोनों दलों के बीच आती-जाती रही है। सीएम भूपेश बघेल दो बार यहां से चुनाव जीते हैं। बीजेपी ने अभी तक अपनी सूचियों में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का नाम नहीं दिया है।

दक्षिण में बीजेपी का प्लान
तेलंगाना में बीजेपी किसी तरह से मजबूत होने की कोशिश में जुटी है। पार्टी का ‘मिशन साउथ’ जारी है। पार्टी दक्षिण भारत के इस राज्य में सरकार बनाने की कोशिश में है। दक्षिण भारत एक ऐसा हिस्सा हैं जहां बीजेपी के कट्टर राष्ट्रवाद को खारिज कर दिया जाता है।

पार्टी कर्नाटक में इस साल के शुरुआत तक सत्ता में थी। लेकिन यहां कांग्रेस ने जोरदार जीत दर्ज की है। केरल में भी बीजेपी सीट जीतने को तरस रही है। तमिलनाडु में भी प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी का करिश्मा चल नहीं पाया है। कुछ दिन पहले ही AIADMK पार्टी NDA से बाहर चली गई।

तेलंगाना बना हुआ है सिरदर्द
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश भी बीजेपी के लिए कठिन चुनौती बने हुए हैं। तेलंगाना में नवंबर में चुनाव होना है और केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को पार्टी ने राज्य का पार्टी चीफ बनाया है। चर्चा है कि लोकसभा सांसद बंदी संजय कुमार और अरविंद धर्मपुरी को मैदान में उतारा जा सकता है। इसके अलावा ओबीसी मोर्चा के नेता और राज्यसभा सांसद डॉ के लक्ष्मण को भी मैदान में उतारा जा सकता है। इस साल मिजोरम में भी चुनाव है। यहां बीजेपी को एक अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वो चुनौती है पड़ोसी मणिपुर में जातीय हिंसा का असर।