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मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर के जिला गन्ना अधिकारी डॉ. आरडी द्विवेदी ने फील्ड विजिट कर गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचा रहे रोगों की जानकारी देते हुए किए जा रहे गन्ना सर्वेक्षण की प्रगति का आंकलन किया। उन्होंने किसानों को समझाया कि गन्ने की फसल में आ रहे चोटीभेदक यानी टापबोरेर कीट पर मैकेनिकल तरीके से भी नियंत्रण किया जा सकता है। हांलाकि उस पर काबू पाने के रासायनिक तरीके भी प्रयोग किए जाते हैं।
जिला गन्ना अधिकारी डॉ. आरडी द्विवेदी शुक्रवार को गन्ना विकास परिषद, तितावी के ग्राम संधावली और गन्ना विकास परिषद, मंसूरपुर के ग्राम नावला में चीनी मिल और विभाग की ओर से आगामी पेराई सत्र 2022-23 के लिए किए जा रहे गन्ना सर्वेक्षण कार्य की प्रगति जानने पहुंचे।
इसी के साथ ही गन्ने की फसल पर विभिन्न प्रकार के बेधक कीटों तथा रोगों के आपतन के प्रभाव का अध्ययन गन्ना शोध केंद्र, मुजफ्फरनगर के डॉ अवधेश डांगर, प्लांट पैथोलोजिस्ट और डॉ. नीलम कुरील, कीट वैज्ञानिक, चीनी मिल मंसूरपुर के महाप्रबंधक (गन्ना) और उनकी टीम तथा खंडसारी अधिकारी चंद्रशेखर सिंह के साथ किया गया।
गन्ने को रोग से बचाव को दिए गए टिप्स
फील्ड विजिट के बाद वैज्ञानिक दल ने किसानों को सलाह दी कि गन्ने के चोटीबेधक (टॉपबोरेर) के नियंत्रण के लिए किसान यांत्रिक (मेकैनिकल) नियंत्रण करें। जिसमें लाइट ट्रैप या पीले प्रकाश बल्ब को पानी की टंकी (हौज़) के ऊपर टांग दिया जाए अथवा खेत में एक दो जगह इसको लगाकर नीचे जमीन में किसी बर्तन में पानी भरकर उसमें केरोसिन या डीजल अथवा कोई भी कीटनाशक मिला दिया जाए।
इस कीट की तितलियां यानी मोथ पीले रोशनी में आकर्षित होकर नीचे रखे पानी अथवा हौज में गिरेंगी और उसमें पड़े केरोसिन, डीजल अथवा कीटनाशक के प्रभाव से मर जाएंगी तथा उनकी अगली पीढ़ी जन्म नहीं ले पाएगी। उन्होंने बताया कि मेकैनिकल नियंत्रण के साथ ही साथ रासायनिक नियंत्रण भी आवश्यक है।
गन्ने की फसल में कहीं-कहीं पर स्मट रोग जिसमें काले बाल जैसे निकले रहते हैं। उनको किसी थैले से सावधानी पूर्वक ढ़ककर प्रभावित पौधों को जड़ से खोदकर निकाल लिया जाए। उसे अन्यत्र ले जाकर जला दिया जाए अथवा मिट्टी में दबा दिया जाए। ताकि स्मट के स्पोर हवा के साथ उड़कर पूरी फसल को प्रभावित न कर पाएं।