एशियन गेम में मुजफ्फरनगर की किरण बालियान ने रच दिया इतिहास, जीता पदक

Muzaffarnagar's Kiran Baliyan created history, won medal in Asian Games
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हांगझोऊ। उत्तर प्रदेश की किरण बालियान ने हांगझोऊ एशियाई खेलों में देश को एथलेटिक्स (ट्रैक एंड फील्ड) का पहला पदक दिलाया। उन्होंने शुक्रवार को शॉट पुट में 17.36 मीटर दूर गोला फेंककर अपने करियर का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। यह महिला शॉट पुट में 72 साल बाद देश के लिए पहला पदक है। इससे पहले 1951 के पहले दिल्ली एशियाई खेलों में बारबरा वेबस्टर ने इस स्पर्धा में कांस्य जीता था। 2017 की एशियाई चैंपियन मनप्रीत कौर पांचवें स्थान पर रहीं। मनप्रीत की सर्वश्रेष्ठ थ्रो 16.25 मीटर रही।

मेरठ की रहने वाली और मूलरूप से मुजफ्फरनगर की किरण ने इस वर्ष 10 सितंबर को 17.92 मीटर गोला फेंककर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। वह गुजरात राष्ट्रीय खेलों में 17.14 मीटर के साथ चैंपियन भी बनीं थीं। किरण ने पहला थ्रो 15.42 मीटर फेंका। उसके बाद उन्होंने 16.84 और तीसरी थ्रो 17.36 मीटर का किया। इसके बाद उन्होंने 16.79 और 16.87 का थ्रो किया। चीन की लीजियाओ गांग ने 19.58 मीटर के साथ स्वर्ण और इसी देश की जियायुआन ने 18.92 मीटर के साथ रजत पदक जीता।

बेटी की सुरक्षा के लिये मां बनी ‘कोच’
बेटी के सपनों को पंख लगे। सफलता की राह में असुरक्षा जैसी अड़चनों से उसके कदम न ठिठकें। इसलिये एक मां कोच की भूमिका में आ गई। वह अपनी बेटी किरण के साथ रोजाना पांच घंटे कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम गुजारती थीं। प्रैक्टिस के दौरान उनकी खामियां बताती थीं और आगे बढ़ने के लिये प्रेरित भी करती थीं।

मुजफ्फरनगर निवासी किरण शॉट पुट में राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीत चुकी हैं। उनके पिता सतीश बालियान पीएसी में तैनात हैं। किरण रोजाना सुबह-शाम अपनी मां बॉबी के साथ स्टेडियम में प्रैक्टिस करती हैं। जब किरण के पिता की पोस्टिंग आगरा में थी तो वहां कभी-कभी वह मां के साथ स्टेडियम जाती थीं, लेकिन मेरठ में रोजाना दोनों साथ में स्टेडियम जाते थे। किरण के अनुसार उनके पास कोई महिला ट्रेनर नहीं था, जो उन्हें प्रैक्टिस कराए। वहीं, मां बॉबी के मुताबिक, बेटियों की सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। आज के जमाने में किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसलिए रोजाना स्कूटी पर किरण के साथ स्टेडियम जाती थीं। दोनों सुबह सवा छह से आठ बजे तक स्टेडियम में रहते थे। इसके बाद शाम चार से साढ़े छह बजे तक दोनों फिर अभ्यास के लिए स्टेडियम जाते थे। बाकी समय में मां बॉबी घर का काम, बेटी को खाना देना करती थीं। बॉबी के मुताबिक, उनका बेटा बास्केटबॉल खेलता है, लेकिन वह छोटा है। बॉबी का सपना है कि बेटी जल्दी से ओलंपिक में खेले और देश का नाम रोशन करे, ताकि उनकी तपस्या सफल हो जाए।

मां बॉबी बताती हैं कि महिला ट्रेनर न होने की वजह से किरण को स्ट्रेचिंग करने, प्रैक्टिस करने में दिक्कत आती थी। इसमें लड़कों की मदद नहीं ले सकते थे। इसीलिए यह सब वह खुद ही किरण से करवाती थीं। बॉबी केवल बेटी को व्यायाम नहीं करातीं, बल्कि वीडियो बनाकर उसकी गलतियां भी बताती थीं। बेटी के साथ रोजाना स्टेडियम आकर बॉबी इस खेल की सभी बारीकियों को समझ चुकी थीं। आठवीं पास बॉबी का कभी खेलों से ताल्लुक नहीं रहा, लेकिन बेटी के साथ आते-आते वह मंझे हुए कोच की तरह बन गईं। अब किरण ने एशियाई खेलों में देश को एतिहासिक पदक दिलाकर अपनी मां बॉबी और पूरे परिवार का नाम रोशन किया है।