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नई दिल्ली। भाजपा सांसद वरुण गांधी और पार्टी के के बीच दूरी बढ़ने लगी है। पूर्व में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे वरुण बीते काफी समय से पार्टी में नजरअंदाज किए जा रहे थे। उनको न तो संगठन में ही महत्वपूर्ण जगह मिल पा रही थी, न ही केंद्र सरकार में कोई जगह मिली थी। अब लखीमपुर खीरी की घटना के साथ भाजपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन वरुण की नाराजगी क्या बड़ा कारण बनी है।
नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में वरुण गांधी और मेनका गांधी दोनों को नहीं रखा गया है। इसके पहले दोनों ही नेता इसमें शामिल थे। संगठन में उनकी घटती रुचि भी इसका एक कारण बनी थी। वैसे भी कार्यकारिणी के पुनर्गठन में 25 से 30 फीसद सदस्य बदले जाते हैं और इस बार भी पार्टी में कई प्रमुख नेताओं को बदला है।
चूंकि वरुण और उनकी मां मेनका गांधी, गांधी परिवार से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए उनको हटाया जाना चर्चा का विषय रहा। दरअसल मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी को मंत्री नहीं बनाया था। इसके बाद से ही यह दूरी दिखने लगी थी। वरुण गांधी भी संगठन के कामों में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे थे और हाल में उन्होंने उनका यह बयान भी चर्चा में रहा कि उन्हें नहीं मालूम था कि वह कार्यकारिणी में भी थे या नहीं।
अब जबकि उत्तर प्रदेश के चुनाव सिर पर है। इस समय वरुण गांधी के बयान भाजपा को असहज करने वाले हैं। हालांकि भाजपा नेतृत्व भी वरुण गांधी को के बयानों को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा है। उनके किसी भी बयान पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी जा रही है। इससे इससे साफ संकेत है कि भाजपा वरुण गांधी को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है।