मर्यादा भंग करके मुझे ही पाठ पढ़ाते हो… 12 विपक्षी सदस्यों के निलंबन पर भड़के सभापति नायडू

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नई दिल्ली: राज्यसभा के 12 विपक्षी सांसदों का निलंबन वापस नहीं होगा। सभापति वेंकैया नायडू ने निलंबन वापसी की विपक्ष की मांग पर यह स्पष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि सांसद अपने किए पर पश्चाताप होने की बजाय, उसे न्यायोचित ठहराने पर तुले हैं। ऐसे में उनका निलंबन वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता है। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही राज्यसभा के 12 सदस्यों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हुई है। उन सांसदों ने पिछले सत्र में किसान आंदोलन एवं अन्य मुद्दों के बहाने सदन में जमकर हो-हंगामा किया था और खूब अफरा-तफरी मचाई थी।

खड़गे ने दिया नियमों का हवाला
शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो खड़गे ने नियमों का हवाला देकर कहा कि सांसदों के निलंबन का कोई आधार नहीं है, इसलिए उनके निलंबन का फैसला वापस लिया जाना चाहिए। खड़गे ने सभी 12 विपक्षी सांसदों को सदन की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति सभापति से मांगी। फिर सभापति ने विपक्ष से कहा कि निलंबन की कार्रवाई उनकी नहीं, बल्कि सदन की थी। संसदीय नियम की धारा 256 की उपधारा 2 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि 256(2) कहता है कि सदन में किसी सदस्य या कई सदस्यों के अमर्यादित आचरण पर सभापति ऐसे सदस्य या सदस्यों का नाम लेकर सदन के सामने प्रश्न रखे कि क्या इन सदस्यों पर कार्रवाई का प्रस्ताव लाया जा सकता है,

इस तरह, किसी भी राज्यसभा सदस्य के निलंबन के दो ही मानदंड हैं, पहला- निलंबन से पहले सभापति ऐसे सदस्यों का नाम लें, उसके बाद ही निलंबन प्रस्ताव लाया जा सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रक्रिया उसी तारिख तक प्रासंगिक होगी जिस दिन सदस्यों का अमर्यादित व्यहार सामने आया। लेकिन, कल संसदीय कार्य मंत्री ने जो निलंबन प्रस्ताव लाया था, उसका संदर्भ पिछले सत्र से है। इस मामले में उस दिन सभापति ने किसी भी सदस्य का नाम नहीं लिया था। ऐसे में घटना के महीनों बाद निलंबन प्रस्ताव लाना संसदीय नियम के खिलाफ है।

सभापति का जवाब
सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि राज्यसभा अनवरत चलने वाला सदन है। इसका कार्यकाल कभी खत्म नहीं होता है। उन्होंने कहा, ‘राज्यसभा के सभापति को संसदीय कानून की धाराओं 256, 259, 266 समेत अन्य धाराओं के तहत अधिकार मिला है कि वो कार्रवाई कर सकता है और सदन भी कार्रवाई कर सकती है। कल की कार्रवाी सभापति की नहीं, बल्कि सदन की थी। सदन में इस संबंध में प्रस्ताव लाया गया जिसके आधार पर कार्रवाई हुई है।’ उन्होंने कहा कि कार्रवाई को अलोकतांत्रिक बताना गलत है, बल्कि यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है। सभापति ने कहा कि उन्होंने लीक से हटकर कोई फैसला नहीं लिया है। नियमों और पूर्व के उदाहरणों के आलोक में ही कार्रवाई की गई है।

नायडू बोले- …मुझे ही पाठ पढ़ाते हो
10 अगस्त को इन सदस्यों ने सदन की मर्यादा भंग की। सभापति ने कहा, ‘आपने सदन को गुमराह करने की कोशिश की, आपने अफरा-तफरी मचाई, आपने सदन में हो-हंगामा किया, आसन पर कागज फेंका, कुछ तो टेबल पर चढ़ गए और मुझे ही पाठ पढ़ा रहे हैं। यह सही तरीका नहीं है। प्रस्ताव पास हो गया है, कार्रवाई हो चुकी है और यह अंतिम फैसला है।’ उन्होंने कहा कि सांसद अपने अर्मयादित व्यवहार पर पश्चाताप करने के बजाय वो इसे उचित ठहरा रहे हैं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि विपक्ष की मांग पर विचार किया जाना चाहिए। सभापति ने कहा कि सांसदों का निलंबन वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। सभापति ने कहा कि निलंबित सदस्य बाद में सदन में आएंगे और उम्मीद है कि वो सदन की गरिमा और देशवाशियों की आकांक्षा का ध्यान रखेंगे।

पूरे सत्र से निलंबित हुए ये 12 सांसद
संसद सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा के 12 सदस्य पूरे सत्र से निलंबित कर दिए गए थे। इनमें कांग्रेस के 6, शिवसेना और टीएमसी के 2-2 जबकि सीपीएम और सीपीआई के 1-1 सांसद शामिल हैं- फुलो देवी नेताम, छाया वर्मा, आर बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन और अखिलेश प्रताप सिंह (कांग्रेस), प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई (शिवसेना), शांता छेत्री और डोला सेन (टीएमसी), एलमरम करीम (सीपीएम) और विनय विश्वम (सीपीआई)।