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नई दिल्ली। पंजाब और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी को डर है कि जल्द ही असंतोष पर काबू नहीं किया गया, तो दोनों राज्यों में चुनौती बढ़ सकती है। इसलिए, पार्टी ने स्थानीय नेताओं के साथ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को डैमेज कंट्रोल करने की जिम्मेदारी सौंपी है।
कांग्रेस को सबसे ज्यादा चिंता उत्तराखंड को लेकर है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ती जा रही है। चुनाव के बीच यह अच्छा संकेत नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के टिकट को लेकर भी स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। कई दूसरी सीटों पर भी नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं।
प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि पार्टी ने नाराजगी को फौरन खत्म नहीं किया, तो लड़ाई और मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच करीब 13 फीसदी वोट का अंतर था। जबकि 2012 में दोनों पार्टियां लगभग बराबर थी। ऐसे में एकजुट कांग्रेस के बगैर 13 फीसदी वोट के अंतर को पार कर जीत की दहलीज तक पहुंचना आसान नहीं है।
पंजाब में भी ठीक नहीं है स्थिति
पंजाब में भी स्थिति ठीक नहीं है। टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी बढ़ रही है। एक परिवार एक टिकट का फॉर्मूला अपनाते हुए पार्टी ने मुख्यमंत्री चन्नी के भाई डॉ मनोहर को टिकट नहीं दिया, पर प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के भांजे को अमरगढ़ से प्रत्याशी बनाया है। पार्टी ने वरिष्ठ नेता राजिंदर कौर भट्ठल के साथ उनके दामाद विक्रम बाजवा को साहनेवाल से चुनाव मैदान में उतारा है। पार्टी ने जिन मौजूदा विधायकों के टिकट कांटे है, वह भी बागी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का दम भर रहे हैं। ऐसे में बागियों को समझाने के लिए पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। सुखजिंदर सिंह रंधावा, राजकुमार वेरका और अमरिंदर सिंह राजा वडिग सहित कई नेताओं को यह जिम्मेदारी दी गई है। क्योंकि, जीत के लिए पार्टी को चुनाव में चालीस फीसदी से ज्यादा वोट चाहिए।