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नई दिल्ली: सात औद्योगिक देशों के समूह ने भारत सरकार के गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने के फैसले की निंदा की है। जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिरो ने शनिवार को कहा कि अगर हर देश निर्यात पर रोक लगाने लगेगा और बाजार बंद कर देगा तो इससे आपदा और बढ़ेगी। गौरतलब है गेहूं के बढ़ते दाम और कम पैदावार की आशंका के चलते शनिवार को भारत ने सरकार के अनुमति के बिना गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी है। ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्य संकट झेल रहे कई देशों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है।
दूसरी तरफ सरकार ने दुनिया की परवाह किए बिना देश में महंगाई को काबू करने और खाद्य पदार्थों की कीमत स्थिर रखने के उद्देश्य से गेहूं कि निर्यात पर रोक लगा दी है। पिछले कुछ समय में आंटे की कीमत में जबर्रदस्त तेजी देखने को मिली है। यही वजह है कि सरकार गेहूं के निर्यात पर रोक लगाकर ये सुनिश्चित करना चाहती है कि देश में आंटे की कमी ना हो और कीमतें नियंत्रित रहें।
गौरतलब है कि भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है लेकिन इस साल गेहूं की कम पैदावार और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक कीमतों में जबर्रदस्त उछाल के चलते सरकार ने गेहूं निर्यात ना करने का फैसला किया है। सरकार ने आदेश में कहा है तकि शुक्रवार तक जो भी एक्सपोर्ट डील साइन हुई है उसे पूरा किया जाएगा लेकिन शनिवार से गेहूं का निर्यात करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी।
सरकार ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि सिर्फ उनके आदेश के बाद ही गेहूं का निर्यात किया जा सकेगा। माना जा रहा है कि जरूरत पड़ने पर विकासशील देशों को सरकार गेहूं का निर्यात कर सकती है। हालांकि सरकार के इस फैसले से ये भी साफ है कि सरकार देश में आटे के दाम को और बढ़ने नहीं देना चाहती और पहले ये सुनिश्चित करना चाहती है कि देश में आटा पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो।
बताते चलें कि रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक कृषि बाजार पर गहरा असर पड़ा है। यूक्रेन का ट्रेड रूट खत्म हो चुका है और वो अब जी-7 देशों के पास वैकल्पिक व्यापार रूट बनाने की मांग कर रहा है। यूक्रेन का कहना है कि उनके पास 20 मिलियन टन गेहूं है जिसे तुरंत निर्यात किए जाने की जरूरत है लेकिन युद्धग्रस्त देश में माल ढुलाई का कोई रास्ता नहीं बचा है।