नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक दूजे को बढ़ा रहे हैं या गिरा रहे हैं

Nitish Kumar and Tejashwi Yadav are raising or lowering each other
Nitish Kumar and Tejashwi Yadav are raising or lowering each other
इस खबर को शेयर करें

पटना : राजनीति में कौन किसको बनाता है, बिगाड़ता है कहना मुश्किल है। अगर कोई ये दावा करता है तो अहंकार ज्यादा लगता है। ऐसा ही एक दावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया है जिन पर कई शोधकर्ताओं की नज़र है। राजनीति विज्ञान में यू-टर्न का चैप्टर जोड़ने में लगे नीतीश कुमार ने पटना में कहा कि वो नौजवानों को बढ़ाने में लगे हैं। ऐसा कहते हुए बगल में खड़े तेजस्वी यादव की तरफ इशारा भी किया। यहीं नहीं रुके। उन्होंने राजनीति में परम त्याग की इच्छा भी जताई। फूलपुर से चुनाव लड़ने की चर्चा पर कहते हैं – मेरा कोई पर्सनल च्वॉयस नहीं है, हम तो सबको एक करना चाहते हैं। हमको अपने लिए कुछ नहीं है, देश के लिए च्वॉयस है। नौजवानों को आगे बढ़ाना है। हम तो सबको एक करने में लगे हैं। ये वही नीतीश कुमार हैं जो दिल्ली से पटना तक यही दावा करते रहे कि उनकी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा नहीं है, वो सिर्फ बिहार की सेवा करना चाहते हैं। अब अचानक उन्हें देश की चिंता सताने लगी है। हर मौके पर बोल रहे – देश कहां जा रहा है। पर ये बता नहीं रहे कि कहां जा रहा है। कथित समाजवादियों की फौज उनके लिए डोजियर तैयार नहीं कर पाई है। यूं कहें कि नीतीश ने उनको इतना भी मौका नहीं दिया। अब तक डबल इंजन में आगे लगे हुए थे। अचानक ट्रैक बदल लिया। वो खुद भी रेल मंत्री रह चुके हैं। इसलिए आसानी से एक दूसरे पूर्व रेलमंत्री से सेटिंग कर ली।

अब नीतीश कुमार को लग रहा है कि बिहार में भले एनडीए की रेलगाड़ी में अगला इंजन वही थे लेकिन पिछला इंजन मदद नहीं कर रहा था। उधर भाजपा का कहना है कि पिछले इंजन ने एक लाख 55 हजार करोड़ रुपए का जो पैकेज दिया उसी से अगला इंजन चल रहा था। खैर, अब नीतीश कुमार को लग रहा है कि 2024 में वो नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐसी हवा बना देंगे कि बिहार में सिंगल इंजन की समाजवादी सरकार बन जाएगी। राजनीति में कुछ भी कहना मुश्किल है। देश का नेता कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो वाला नारा तो नौ साल पहले भी गूंजा था। लेकिन तबके नीतीश में कितना तेज बचा है ये जनता देख रही है। अब तर्कों के जरिए जरा मूल्यांकन किया जाए कि कौन किसको आगे बढ़ा रहा है या घनचक्कर बना रहा है। नीतीश कुमार के संन्यासवादी बयान के पांच निहितार्थ हैं-

1. नीतीश बिहार की कुर्सी तेजस्वी यादव को सौंपने की तैयारी कर रहे हैं। 2023 में इसका ऐलान करना होगा क्योंकि उसके अगले साल तो उन्हें देश को बचाने की मुहिम तेज करनी होगी।

2. नीतीश को लग रहा होगा कि वो भी आगे बढ़ रहे हैं और भतीजा भी। पर खेल ये है कि नीतीश कुमार बिहार की पॉलिटिक्स से आउट होने जा रहे हैं। और जिसे वो आगे बढ़ाने का दावा कर रहे हैं, वही ये काम कर रहा है।

3. 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ वाले फॉर्मूले पर 50-50 जैसी सीट शेयरिंग हो सकती है। कमजोर जेडीयू को ये डील देने में तेजस्वी को कोई हिचक नहीं होगी क्योंकि उनकी नज़र 2025 पर है जब विधानसभा चुनाव होंगे।

4.अगर नीतीश कुमार को छांट दें तो आज भी कुनबा ऐसा बनता है- RJD-79 + Congress- 19 + Left-16 + Ham -4 + AIMIM-1 + Indepent-1 =120
बहुमत का आंकड़ा – 122. जिसको सिर्फ दो सीटों की जरूरत हो वो नीतीश कुमार को मोल-भाव करने देगा क्या ?

तेजस्वी यादव तो बहुत पहले ही नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बता चुके हैं। अब उनके डिप्टी हैं, भले न बोलें लेकिन 79 सीटों वाली पार्टी 45 सीटों वाली पार्टी के नेता को आगे बढ़ाने की क्यों सोंचेगी? क्रूर राजनीति इसकी इजाजत ही नहीं देती। दूसरी ओर नीतीश कुमार भी राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। मायावती, जयललिता जैसी व्यक्तिवादी पार्टी के नेता हैं। ऐसे नेता अपनी पार्टी में तो दूसरी पंक्ति तैयार ही नहीं करते, दूसरी पार्टी के नेता को क्या आगे बढ़ाएंगे। जो हाल मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दिकी, स्वामी प्रसाद मौर्य का किया उससे लंबी लकीर तो नीतीश कुमार ने खींची हुई है। बचपन के साथी और कुर्मी चेतना रैली के वास्तुकार सतीश कुमार हों या जेपी मूवमेंट के अगुआ जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, पीके, पवन वर्मा, आरसीपी सिंह। जो आगे बढ़ा उसे नीतीश ने नाप दिया। इसलिए एक-दूजे के लिए दिख रहे नीतीश और तेजस्वी दरअसल अपना-अपना खेल खेल रहे हैं। कोई किसी को आगे नहीं बढ़ा रहा। हां, गिरा जरूर सकता है।
आपके लिए