नीतीश के यार ने ही लूट लिया उनका घर? CM के ‘खास’ RCP के बयान के मायने समझिए

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पटना : आरसीपी यानी रामचंद्र प्रसाद सिंह ( RCP Singh ) जेडीयू छोड़ चुके हैं? इस सवाल का जवाब फिलहाल आरसीपी के अलावा जेडीयू ही दे सकती है, लेकिन आरसीपी की सोशल मीडिया अकाउंट ट्विटर देखने से तो यही लगता है कि अब वे जेडीयू में नहीं हैं! आरसीपी के ट्विटर प्रोफाइल में सब कुछ लिखा हुआ है, सिर्फ पार्टी छोड़कर। ऐसे में सवाल उठता है कि आरसीपी ने प्रोफाइल से पार्टी का नाम क्यों हटा दिया? क्या वे पार्टी छोड़ रहे हैं या छोड़ चुके हैं?

दरअसल, पिछले 15 दिनों से आरसीपी पार्टी से कुछ खफा-खफा नजर आ रहे हैं। ये भी कह सकते हैं पार्टी नेतृत्व उनसे नाराज है। एक-दो दिनों के घटनाक्रम को देखा जाए तो पार्टी और पार्टी के नेताओं ने उनसे दूरी बना ली है। नीतीश ( Bihar CM Nitish Kumar ) भी आजकल उनसे दूर ही हैं। आरा के एक कार्यक्रम में भी ऐसा ही कुछ दिखा था। नीतीश के बगल में रहने वाले आरसीपी अशोक चौधरी के पास बैठे थे। यानी कि दोनों नेताओं के बीच में अशोक चौधरी थे।

ये वही आरसीपी हैं कि जो कभी नीतीश कुमार के आंख और कान बन गए थे। शासन-प्रशासन के कामकाज के साथ-साथ वे जेडीयू में भी अहम होते चले गए। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने पर उन्होंने IAS की नौकरी से वीआरएस ले लिया और नीतीश के साथ राजनीति करने लगे। जेडीयू में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार ने आरसीपी को कई अहम जिम्मेदारी सौंपी। राज्यसभा भेजने के अलावा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बना दिया। अब वही आरसीपी ‘JDU’ के नाम से भी परहेज करने लगे हैं।

तो क्या नीतीश को छोड़ बीजेपी के खास हो गए हैं RCP?
जानकार बताते हैं कि आरसीपी का हालिया बयान पर गौर करेंगे तो आपको भी लगेगा आरसीपी पार्टी लाइन से इतर चल रहे हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम में आरसीपी ने जो बयान दिया था, उससे न तो पार्टी इत्तेफाक रखती है, न ही नीतीश कुमार। दरअसल, 19 मई को एक सेमिनार में ‘परिवारवाद और उसके राजनीतिक परिणाम’ आरसीपी ने जो बयान दिया था, उससी से साफ हो गया था कि अब वे बीजेपी की तरफ से बैटिंग करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

आरसीपी ने परिवारवाद पर बोलते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके परिवार पर जमकर हमला। आरसीपी ने यहां तक कह दिया कि देश की राजनीति में परिवारवाद की नींव नेहरू के काल में ही पड़ गई थी। आरसीपी के इस बयान के बाद ही कयास लगाए जाने लगा था कि अब वे नीतीश और जेडीयू को ‘अलविदा’ कहने वाले हैं, नहीं तो पार्टी ही उन्हें साइड कर देगी। बिहार की पांच राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है। नामांकन करने की आखिरी तारीख 30 मई है। अभी तक जेडीयू ने आरसीपी के नाम पर फैसला नहीं लिया है। खबर ये भी है कि इस बार पार्टी उन्हें राज्यसभा भेजने के मूड में नहीं है।

दरअसल, संख्याबल के हिसाब से देखा जाए तो इन 5 सीटों में आरजेडी और बीजेपी को 2-2 और जेडीयू के हाथ एक सीट आनी है। रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कार्यकर्ताओं से मुलाकात करने के लिए जेडीयू ऑफिस पहुंचे थे। मुलाकात करने के बाद जब बाहर आए तो पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आरसीपी राज्यसभा जाएंगे? सवाल का जवाब देने से पहले नीतीश कुमार मुस्कुराए, फिर बोले कि चिंता मत कीजिए। समय पर फैसला ले लिया जाएगा।

यहां फंसा है पेंच
संख्या बल के हिसाब से देखा जाए तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को राज्यसभा की एक ही सीट मिल सकती है। अगर नीतीश को आरसीपी को राज्यसभा भेजना होता तो वे अपने कोटे से आरसीपी को उम्मीदवार बनाते, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं। नीतीश ने आरसीपी की जगह हेगड़े को उम्मीदवार बनाकर पेंच फंसा दिया। नीतीश के इस दांव के बाद अब गेंद बीजेपी के पास है। अब बीजेपी को तय करना है कि गोल करना है या गेंद को मैदान से बाहर भेजना है। अगर बीजेपी आरसीपी के नाम पर सहमति नहीं देती है तो उनकी राज्यसभा की सदस्यता के साथ-साथ मंत्री पद भी जाना तय है। हालांकि बीजेपी ने अपने पत्ते नहीं खोला है। बीजेपी के पास धर्मसंकट यह है कि अपने सदस्यों को राज्यसभा भेजे या एक सीट का नुकसान झेले।

आरसीपी से नाराज हैं नीतीश?
नीतीश के इस सियासी चाल के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या बिहार के मुख्यमंत्री आरसीपी से नाराज चल रहे हैं या आरसीपी को आगे कर कोई नया सियासी दांव चला है? जेडीयू सूत्रों का कहना है कि सच्चाई यही है कि नीतीश कुमार आरसीपी से नाराज चल रहे हैं। नीतीश आरसीपी की बीजेपी से बढ़ती नजदीकियों से खुश नहीं है। शायद यही कारण है कि बिहार में सियासत करने वाले गाते चल रहे हैं ‘यार ने ही लूट लिया घर यार का’!