हरियाणा में पंचायत चुनाव के नतीजे BJP के लिए खतरे की घंटी, खिसक रहा जनाधार?

Panchayat election results in Haryana alarm bells for BJP, mass base is slipping?
Panchayat election results in Haryana alarm bells for BJP, mass base is slipping?
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नई दिल्ली: Haryana Panchayat Election: हरियाणा के पंचायत चुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है. जिला परिषद और पंचायत समिति के लिए सिंबल पर चुनाव लड़ रहे और बीजेपी समर्थित अधिकतर उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है. 22 जिला परिषद के 411 सीट और 142 पंचायत समितियों को 2964 सदस्यों के आए रविवार को चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए निराश करने वाले रहे तो इनलो और आम आदमी पार्टी को सियासी संजीवनी साबित होंगे. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि हरियाणा के ग्रामीण इलाके में बीजेपी का सियासी जनाधार क्या खिसक रहा है?

पंचायत चुनाव के नतीजे
22 जिला परिषद की 411 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने जबरदस्त तरीके से जीत हासिल की है. बीजेपी-जेजेपी के लिए चुनाव नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं. सात जिलों में 102 सीटों पर पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को सिर्फ 22 सीटें मिली हैं जबकि उसके सहयोगी जेजेपी को दो सीटें मिली है. पंचकूला और सिरसा जिले में बीजेपी खाता भी नहीं खोल सकी है. जिला परिषद की 115 सीटों पर लड़ने वाली आम आदमी पार्टी ने 15 और 98 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी इनेलो को 13 सीटों पर जीत मिली है. निर्दलीय उम्मीदवार 357 सीटों पर जीतने में कामयाब रहे.

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हालांकि, जिला परिषद सदस्य के चुनाव में जीते निर्दलीय कैंडिडेटों पर बीजेपी, कांग्रेस जेजेपी, आप और इनेलो भी दावे कर रहे हैं. 357 जीते निर्दलीय कैंडिडेटों में से 151 पर बीजेपी अपना दावा कर रही है तो 78 पर जेजेपी अपने उम्मीदवार बता रही है. इसके अलावा इनेलो भी 10 निर्दलीय को अपना बता रही है जबकि पांच पर आम आदमी पार्टी दावा कर रही. कांग्रेस निर्दलीय जीते आधे से ज्यादा कैंडिडेट को अपना बता रही.

ग्रामीण क्षेत्रों में खिसकता जनाधार
ग्रामीण मतदाताओं द्वारा निर्दलीय पर दिखाए गए इस भरोसे ने बीजेपी की नींद हराम कर दी है. 2024 में लोकसभा के बाद ही विधानसभा चुनाव होने है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में जिस तरह से बीजेपी को हार मिली है, उससे चिंता बढ़ना तय है. पंचायत चुनाव नतीजे बताते हैं कि ग्रामीण मतदाताओं ने बीजेपी पर भरोसा जताने के बजाय निर्दलीय और जमीनी नेताओं पर भरोसा किया है. किसान आंदोलन से बीजेपी के खिलाफ उपजी नाराजगी अभी भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. 2014 में पार्टी ने जिस तरह से अपना आधार मजबूत किया था, वो लगातार कमजोर पड़ा है.

जाट-किसान आंदोलन के नेता जीते
जाट और किसान अंदोलन का चेहरा रहे किसान नेताओं ने भी इस बार जिला परिषद के चुनावों में जनता से आशीर्वाद मांगा था. जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान फरवरी 2016 में हुए दंगों में बीजेपी के पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की कोठी जला दी गई थी. उस केस में कबूलपुर निवासी राहुल दादू भी नामजद रहे हैं, उनके भाई जयदेव दादू जीत हासिल की है. किसान आंदोलन के दौरान जेजेपी छोड़ने वाले विक्रम सिंह की पत्नी अल्का कुमारी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीती हैं. यमुनानगर से भाकियू चढूनी गुट की उम्मीदवार गुरजीत कौर को जीत हासिल हुई है. किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले कुलदीप खरड़ की बहन सुदेश जीती, संदीप धीरणवास की भाभी सरोज बाला जीती.

बीजेपी के दिग्गजों को मिली मात
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी राज्य में अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सकी और उसके बाद से हुए चार उपचुनाव में एक ही बार ही जीत मिली है, वो भी आदमपुर सीट पर. बीजेपी जिस तरह से पंचकुला और सिरसा जैसे जिले में खाता नहीं खोल सकी है. पंचकूला जिले के चुनाव प्रभारी और सांसद नायब सैनी की पत्नी कुरुक्षेत्र में चुनाव हार गईं. अंबाला जिले में भी बीजेपी 15 में से दो ही सीटें जीत पाई है. गुरुग्राम में जिला परिषद चेयरमैन के लिए प्रबल दावेदार मानी जा रही मधु वाल्मीकि चुनाव हार गई हैं. रेवाड़ी में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत के समर्थक चुनाव हार गए हैं.

2016 में खिला था कमल
साल 2016 के चुनाव की बात करें तो उस समय बीजेपी ने परचम लहराया था और कांग्रेस पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र से साफ हो गई थी. पिछली बार बीजेपी ने बिना सिंबल के चुनाव लड़ा था. पूर्व सीएम हुड्डा के गढ़ में भाजपा ने अपना चेयरमैन बनाया था. इसके अलावा, बीजेपी जिला सिरसा को छोड़कर प्रदेश के सभी 20 जिलों में जिला परिषदों के अध्यक्ष बनाने में सक्षम रही थी, लेकिन इस बार 2016 की तरह जिला परिषद पर अपना दबदबा कायम रखना मुश्किल है.

निर्दलीयों पर नजर
पंचायत चुनाव नतीजे के बाद अब राजनीतिक दलों ने जोड़ तोड़ शुरू कर दी है. सत्ताधारी बीजेपी-जेजेजी के नेता परिणाम जारी होने के तुरंत बाद से ही निर्दलीयों से संपर्क साध रहे हैं. राज्य के मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को इस काम के लिए लगाया गया है, ताकि अधिक से अधिक निर्दलीय सदस्यों को अपने पाले में लाया जा सके. निर्दलीयों की स्थिति को देखते हुए चेयरमैन और वाइस चेयरमैन बनाने के उन्हें ऑफर भी दे रही है. सिरसा में अभय चौटाला के बेटे कर्ण चौटाला को चेयरमैन बनाने के लिए अभय चौटाला कमान संभाले हैं तो रोहतक में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हु्ड्डा, सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने अपने समर्थकों के साथ साथ निर्दलीयों को साधना शुरू कर दिया है.