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नई दिल्ली। अगर आपने अभी तक अपने वाहन का बीमा नहीं करवाया है, तो तुरंत करवा लें। ऐसा न करने पर आपको भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वाहन का बीमा करवाना कानूनी तौर पर अनिवार्य है साथ ही यह आपको दुर्घटना के समय वित्तीय बोझ से भी बचाता है। बीमा आपको दावों से सुरक्षा भी प्रदान करता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दुर्घटना पीड़ित के परिवार को 1700 प्रतिशत अधिक मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और ऋषिकेश रॉय की पीठ ने पीड़ित के परिवार द्वारा प्रस्तुत फॉर्म-16, सैलरी स्लिप और अन्य टैक्स पेपर के आधार पर मुआवजा राशि को 10.4 लाख से बढ़ाकर 1.85 करोड़ रुपये करने के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को सही बताया है।
अब आप सोचिए, अगर आपने बीमा नहीं कराया और आपकी कार के साथ कोई दुर्घटना हो जाए तो इतनी बड़ी मुआवजा राशि का भुगतान आप कहां से करेंगे। इस मामले में अच्छी बात यह है कि दुर्घटना में आरोपी वाहन के मालिक ने वाहन बीमा करवाया था, इसलिए मुआवजे का भुगतान न तो वाहन मालिक को और न ड्राइवर को करना पड़ा, बल्कि वाहन का बीमा करने वाली बीमा कंपनी पर उक्त मुआवजा देने की जिम्मेदारी रही।
मामले की बात करें तो, 14 अक्टूबर 2013 को 35 वर्षीय सुभाष बाबू, जो एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थे, अपनी कार से पेरुमनल्लुर से इरोड जा रहे थे, और एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी और अन्य परिवार के सदस्य इस दुर्घटना में घायल हो गए। उनकी पत्नी, जो एक चश्मदीद गवाह भी थीं, ने तिरुपुर मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल को बताया कि उनकी कार के आगे चल रही एक वैन बिना कोई सिग्नल दिए दाईं तरफ मुड़ गई और उनकी कार उस वैन से टकरा गई और उनके पति की तत्काल मृत्यु हो गई।
ट्रिब्यूनल ने पुलिस एफआईआर के आधार पर पीड़ित की 75 प्रतिशत लापरवाही मानी और बाबू की 20,000 रुपये प्रति माह की मासिक आय के आधार पर 10.4 लाख रुपये का मुआवजा तय किया।
इस आदेश से असंतुष्ट परिवार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। अगस्त 2018 में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन किरुबकरन और जस्टिस कृष्णन रामासामी की पीठ ने ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि इंश्योरेंस कंपनी द्वारा कोई चश्मदीद गवाह पेश न करने की वजह से दुर्घटना के लिए केवल वैन ड्राइवर को ही जिम्मेदार माना जाता है।
पीठ ने पीड़ित के टैक्स रिकॉर्ड और पे स्लिप को ध्यान में रखते हुए मृतक की वार्षिक आय 12.3 लाख रुपये तय की और इंश्योरेंस कंपनी को 1.85 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। हाईकोर्ट के आदेश से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर लाए गए साक्ष्यों के आधार पर, यहां ऐसा कोई कारण नहीं कि एफआईआर की सामग्री को तवज्जो दी जाए।