बिहार में ‘रिसर्च’ राजनीति से PK करेंगे बड़ा खेल! विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और नीतीश की नींद हराम

PK will play a big game with 'research' politics in Bihar! BJP and Nitish have sleepless nights before the assembly elections
PK will play a big game with 'research' politics in Bihar! BJP and Nitish have sleepless nights before the assembly elections
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पटना : बिहार विधानसभा उपचुनाव में महागठबंधन को आशातीत सफलता नहीं मिली। कुढ़नी में हार के बाद नीतीश कुमार ने पार्टी को मंथन करने का आदेश दे दिया। गोपालगंज में हुई हार को आरजेडी ने ओवैसी फैक्टर से जोड़कर देखा। अभी ओवैसी फैक्टर के तनाव से जेडीयू और आरजेडी निकल नहीं पाये हैं। सियासी जानकार मानते हैं कि आरडेडी इस बात से थोड़ी निश्चिंत हो सकती है कि उसके अति-पिछड़ा वोटर कहीं नहीं जा रहे हैं। स्थिति ये है कि आरजेडी का वोट जेडीयू तक में ट्रांसफर नहीं हो रहा है। आरजेडी के लिए असदुद्दीन ओवैसी सियासी तनाव के बड़े कारण हैं। जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार की नींद इसलिए हराम है कि उनके पीठ पीछे कई दुश्मन तैयार हो गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार ओमप्रकाश अश्क बताते हैं कि जेडीयू को पहला तनाव दे रहे हैं आरसीपी सिंह। आरसीपी लगातार अपने समर्थकों के बीच में हैं। आरसीपी अंदर ही अंदर जेडीयू की जड़ काटने में जुटे हुए हैं। जेडीयू से असंतुष्ट और ललन सिंह से नाराज हजारों कार्यकर्ता आरसीपी के समर्थन में हैं। इन कार्यकर्ताओं का सीधा लक्ष्य है। जेडीयू को नुकसान पहुंचाना।

जेडीयू के दुश्मन बने पीके
ओमप्रकाश अश्क कहते हैं कि नीतीश के दूसरे सियासी दुश्मन बन गये हैं उपेंद्र कुशवाहा। उपेंद्र कुशवाहा को केंद्र सरकार ने वाई प्लस सुरक्षा मुहैया करा दी है। वे विरासत बचाओ नमन यात्रा के बहाने जेडीयू कार्यकर्ताओं को अपने पाले में करने का अभियान चला रहे हैं। उत्तर बिहार के हजारों कार्यकर्ता और भोजपुर जिले के सैकड़ों कार्यकर्ता उनके गुट में शामिल हो गये हैं। उपेंद्र सबसे ज्यादा जेडीयू को नुकसान पहुंचाएंगे। उसके बाद महागठबंधन के जो प्रत्यक्ष दुश्मन बनकर उभरे हैं। वो हैं कभी नीतीश के करीबी रहे प्रशांत किशोर। पीके फिलहाल पूरे बिहार की स्थिति को जमीनी स्तर पर नाप रहे हैं। उनकी एक बड़ी टीम पूरे बिहार के इलाकों में फैली हुई है। लोगों को जानकर ये आश्चर्य होगा कि पीके ‘रिसर्च’ बेस्ड राजनीति कर रहे हैं। वे लगातार जेडीयू, आरजेडी और महागठबंधन की सरकार पर हमले कर रहे हैं। पीके ने अपनी सभाओं में बीजेपी की आलोचना की लेकिन हमला नहीं किया। इस तरह पीके सीधे आगामी चुनाव में महागठबंधन और जेडीयू से फाइट करते दिख रहे हैं। पीके के हालिया बयान बताते हैं कि उनका फोकस सिर्फ और सिर्फ महागठबंधन की सरकार पर है।

बिहार में जंगलराज-पीके
पीके ने जन सुराज पदयात्रा के 170 वें दिन सारण के बनियापुर में महागठबंध की सरकार के लिए बड़ी बात कही। पीके ने इस दौरान स्पष्ट कर दिया कि वे बिहार की समस्याओं को लेकर बिना सत्ता में आए ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे हैं। ओमप्रकाश अश्क कहते हैं कि बिहार में आज तक कोई भी ऐसा दल नहीं हुआ जो चुनाव जीतने से पहले लोगों की समस्याओं के लिए इतना आगे बढ़कर कुछ करे। पीके स्थानीय समस्याओं को समझ कर उसका संकलन कर उसके समाधान के लिए ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे हैं। पीके ने सारण में कहा कि यात्रा के दौरान देखने को मिला कि सभी लोग बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि पिछले साल अगस्त में महागठबंधन की सरकार बनी थी और जब अक्टूबर में पदयात्रा शुरू हुई थी, तब लोग कहते थे की राजद के सत्ता में आने के बाद कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। जो डर लोगों के मन में था वह कहीं न कहीं आज सच साबित होता दिख रहा है। राजद जब भी सरकार में होती है, लोगों का जो अनुभव रहा है उससे कानून व्यवस्था खराब होने की आशंका बनी रहती है, यह डर अब जमीन पर दिखना शुरू हो गया है। नीतीश कुमार जैसे पढ़े-लिखे व्यक्ति के मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार की शिक्षा व्यवस्था का ध्वस्त हो जाना उनके कार्यकाल का सबसे बड़ा काला अध्याय है।

‘रिसर्च बेस्ड राजनीति’
ओमप्रकाश अश्क कहते हैं कि पीके की विधानसभा चुनाव और आगामी चुनाव की तैयारी रिसर्च बेस्ड की है। पीके लोगों को समझा रहे हैं कि अपने बच्चों की चिंता कीजिए। वोट देने से पहले सोचिए और समझिए। उसके बाद किसी को वोट दीजिए। पीके ने अपनी सारण यात्रा में कहा है कि बिहार के बच्चों की मूलभूत समस्या शिक्षा और रोजगार है। जब तक आप शिक्षा और रोजगार के नाम पर वोट नहीं करेंगे तब तक कोई भी सरकार या कोई भी व्यवस्था आ जाए, आपकी स्थिति नहीं सुधरेगी। वोट राम मंदिर के नाम पर किया है तो 30 वर्ष के बाद ही सही राम मंदिर बन ही रहा है। जिस दिन आप शिक्षा और रोजगार पर वोट करने लगेंगे तब से आपको सुधार दिखने लगेगा। उन्होंने कहा कि आप जिस नाम पर वोट करते हैं आपको वही मिलता है। सियासी जानकार कहते हैं कि प्रशांत किशोर लोगों की नब्ज को पकड़ रहे हैं। वहीं पीके की संस्थाआईपैक से जुड़े सूत्रों की मानें, तो बिहार में पहली बार एक-एक वोटर से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क साधा जा रहा है। बिहार के गांव में पीके की टीम लगी हुई है। ये बात राजनीतिक दलों को पता नहीं है लेकिन प्रशांत किशोर से जुड़े लोगों का एक भरा-पुरा गुट तैयार हो गया है। पीके ने हर जिले में एक कमेटी का गठन किया है। पीके बिहार की जमीनी समस्याओं को चिह्नित कर उस पर काम कर रहे हैं। इसका सीधा असर इस बार के विधानसभा चुनाव पर दिखेगा।

‘सियासी विश्वसनीयता अभी कम’
वहीं, प्रशांत किशोर और उनकी रिसर्च बेस्ड राजनीति को लेकर सियासी जानकारों की राय थोड़ी अलग भी है। वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि पीके आज से पहले दूसरे के लिए रिसर्च बेस्ड राजनीति को बढ़ावा दे रहे थे। पहली बार वो खुद के लिए कर रहे हैं। इससे पहले उन्होंने एक आंशिक प्रयास किया था। उन्होंने खुद ही उस पर ब्रेक लगा दिया था। पीके गांधी के उस पदचिह्नों पर चल रहे हैं। जिसमें गांधी ने देश को समझने के पदयात्रा की थी। उसी तर्ज पर पीके ने अपनी यात्रा की शुरुआत की। पीके बिहार में राजनीति करने से पहले बिहार को पूरी तरह समझने के दौर से गुजर रहे हैं। ये बहुत बड़ी बात है। इसका परिणाम दूरगामी होगा। हालांकि, धीरेंद्र ये भी मानते हैं कि प्रशांत किशोर की राजनीतिक विश्वसनीयता बिल्कुल नीतीश की तरह है। उस पर लोगों को आज भी कुछ संदेह हो सकता है। एक वक्त इन्होंने बीजेपी के लिए काम किया। उसके बाद इन्होंने नीतीश के लिए काम किया। पीके को जेडीयू में एक सियासी पद मिला। उस पद की महता नीतीश कुमार ने सार्वजनिक मंच से ये कहकर कम कर दी कि ये पद उन्होंने अमित शाह के कहने पर दिया है। जेडीयू छोड़ने के बाद पीके ममता बनर्जी से जाकर मिल गये। इसलिए इनकी राजनीतिक विश्वसनीयता अभी संदेह के घेरे में है। हालांकि ये जरूर है कि पीके ने बीजेपी और जेडीयू की नींद उड़ा दी है। पीके बिहार के गरीब-गुरबा और जनसमस्याओं पर रिसर्च करके अपनी राजनीति करना चाहते हैं।