मंगल ग्रह पर घर बनाने के लिए किया जा सकता है आलू का इस्तेमाल, वैज्ञानिकों ने की खोज

Potatoes can be used to build houses on Mars, scientists have discovered
Potatoes can be used to build houses on Mars, scientists have discovered
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British Scientist: दुनियाभर के वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर खोज कर रहे हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस ग्रह पर जीवन की संभावना को लेकर कुछ अहम सबूत मिल सकते हैं. अब मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अहम खोज की है. उन्होंने एक मटीरियल तैयार किया है, जिसे ‘स्टारक्रीट’ (StarCrete) नाम दिया गया है. ये एक कंक्रीट है, जिसका इस्तेमाल मंगल ग्रह पर घर बनाने के लिए किया जा सकता है. आपको हैरानी होगी जानकर कि इस ईंट को बनाने में आलू में पाया जाने वाला स्टार्च, नमक और मंगल ग्रह की मिट्टी का इस्तेमाल हुआ है. ओपन इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, आलू का स्टार्च, अंतरिक्ष की धूल और नमक कंक्रीट को किसी ऐसी चीज में व्यवस्थित करने की अनुमति दे सकते हैं जो बहुत अधिक नियमित कंक्रीट है.

वैज्ञानिकों की नजर में क्या है समाधान?
रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों का मानना है कि अंतरिक्ष में कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना मुश्किल और महंगा है. भविष्य में अंतरिक्ष निर्माण के मामले में आसान मटीरियल पर भरोसा करना होगा. मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को लगता है कि ‘स्टारक्रीट’ इसका समाधान हो सकता है. इस कंक्रीट को बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह में पाई जाने वाली मिट्टी का नकली वर्जन तैयार किया. फिर उसमें आलू में पाए जाने वाले स्टार्च और चुटकी भर नमक को मिलाया गया.

वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने जो कंक्रीट या ईंट कहें तैयार हुई है, वह आम कंक्रीट से दोगुनी मजबूत है. यह मंगल ग्रह पर निर्माण के लिए बेहतर है. वैज्ञानिकों का आर्टिकल ओपन इंजीनियरिंग में पब्लिश हुआ है. रिसर्च टीम ने बताया है कि आलू में पाया जाने वाला स्टार्च, मंगल ग्रह की नकली धूल के साथ मिलाने पर कंक्रीट को मजबूती देता है. यह सामान्य कंक्रीट से दोगुना और चांद की धूल से बनाई गईं कंक्रीट से कई गुना मजबूत है.

पृथ्वी पर भी हो सकता है इस ईंट का इस्तेमाल?
वैज्ञानिकों ने अपनी कैलकुलेशन में पाया कि 25 किलो डीहाइड्रेटेड आलू में 500 किलो ‘स्टारक्रीट’ बनाने के लिए पर्याप्त स्टार्च होता है. उससे लगभग 213 से ज्यादा ईंट बन सकती हैं. वैज्ञानिकों की टीम अब इस ईंट को हकीकत बनाना चाहती है, वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी ईंट अगर पृथ्वी पर भी इस्तेमाल की जाए, तो कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है.