सीपी जोशी को मेवाड़ का चेहरा बनाने की तैयारी? जानिए- अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे क्या है पूरी कहानी

Preparation to make CP Joshi the face of Mewar? Know- what is the whole story behind being made the president
Preparation to make CP Joshi the face of Mewar? Know- what is the whole story behind being made the president
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Rajasthan New BJP President: चित्तौगढ़ से लगातार दो बार के सांसद चंद्र प्रकाश जोशी ( Chandra Prakash Joshi) को बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. इसके कई कयास लगाये जा रहे हैं. आखिर चुनाव से ठीक 6 महीने पहले अध्यक्ष बदलकर बीजेपी ने क्या संदेश दिया है. सीपी जोशी के लाने के पीछे कहानी क्या है? आइए जानते हैं.

कहा जा रहा है कि सीपी जोशी दो बार के सांसद हैं, भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. उनके पास संगठन का लंबा अनुभव है. इन्हें किसी गुट का नहीं माना जाता है. उदयपुर के दिग्गज नेता गुलाब चंद कटारिया के असम का राज्यपाल बनाये जाने के बाद बीजेपी का मेवाड़ का क्षेत्र खाली हो गया था. उससे एक नई लीडरशीप के तौर पर सीपी जोशी को लाने का यह एक प्रयोग माना जा रहा है. सीपी जोशी को केंद्र का खास माना जाता है.

किसी गुट के नहीं
सीपी जोशी को राजस्थान बीजेपी में किसी भी गुट का नहीं माना जाता है. पिछले दिनों बीजेपी में गुटबाजी की खबरें आमने आई थीं. इसे लेकर कई बार केंद्र तक मामला पहुंचा है. इसलिए बीजेपी एक नए चहेरे की तलाश में थी. सूत्रों का कहना है कि सीपी जोशी अभी 50 साल से कम उम्र के हैं. इन्हें बीजेपी ने प्रदेश में मजबूत पकड़ के लिए इन्हे आगे बढ़ाया है. राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा का कहना है कि सीपी जोशी को अध्यक्ष बनाकर एक नई लीडरशीप के लिए बीजेपी ने फैसला लिया हो. क्योंकि सतीश पूनियां का कार्यकाल तीन साल का पूरा हो चुका था. इस तौर पर यह बदलाव देखा जा रहा है.

चित्तौड़गढ़ में बढ़ता गया मार्जिन
सीपी जोशी दो बार लोकसभा चुनाव लड़े दोनों बार इनकी जीत हुई और जीत का मार्जिन भी बढ़ता गया. 2014 के चुनावों में 3 लाख 16 हजार 857 वोटों से जीत कर चित्तौड़गढ़ में एक रिकार्ड बनाया था. उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में चित्तौड़गढ़ सीट से सीपी जोशी ने कांग्रेस के गोपालसिंह शेखावत को 5 लाख 76 हजार 247 वोट से हराया था. सीपी जोशी ने इन चुनावों में अपने ही नाम दर्ज पिछला रिकॉर्ड तोड़ा था. अंतर के लिहाज से चित्तौड़गढ़ संसदीय इतिहास की यह सबसे बड़ी जीत थी और इसके बाद से ही सीपी जोशी की लोकप्रियता बढ़ती चली गई.