सुनिए सरकार, पंजाब की पुकार; प्रदूषण के लिए अधिकारियों को भी हो जुर्माना व सजा

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चंडीगढ़। पंजाब में बढ़ता प्रदूषण सबसे बड़ी चुनौती है। भूजल से लेकर नदी जल प्रदूषित होता जा रहा है। पर्यावरणविद सरकार से यह अपेक्षा करते हैं कि अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय की जाए। चूंकि प्रदूषण फैलने के लिए सीधे तौर पर अधिकारियों की लापरवाही सामने आती है, इसलिए पर्यावरण का जो नुकसान होता है उसके लिए जुर्माना भी उनसे ही वसूल किया जाए। सजा उन्हें भी मिले। यदि अधिकारी जिम्मेदार हैं तो प्रदेश के खजाने से जुर्माना भरकर जनता पर बोझ क्यों डाला जाए?

पर्यावरण का संरक्षण कैसे किया जाए, सरकार से लोगों की किस तरह की अपेक्षाएं हैं, इसे लेकर दैनिक जागरण ने अपने अभियान ‘सुनिए सरकार, पंजाब की पुकार’ के तहत वेबिनार करवाया। इसमें पर्यावरण की रक्षा में वर्षो से जुटे पद्मश्री संत बलबीर सिंह सीचेवाल, लोगों को रासायनिक खेती से निकालकर जैविक खेती की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे उमेंद्र दत्त और चुनाव में पर्यावरण को मुख्य मुद्दा बनाकर मुहिम चलाने वाले गुरप्रीत सिंह चंदबाजा सहित तमाम पर्यावरणविदों ने हिस्सा लिया।

सींचेवाल सहित कई पर्यावरणविदों की नई सरकार से अपेक्षा है कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाए जाने के साथ ही जिला स्तर पर बनाई गई प्लानिंग कमेटियों को सशक्त किया जाए। वहीं उमेंद्र दत्त के इस सुझाव पर भी सभी सहमत थे कि पराली की समस्या खत्म करने के लिए धान की शार्ट टर्म वेरायटी लाई जानी चाहिए।

गुरप्रीत चंदबाजा ने कहा कि पंजाब बीमारों की धरती बन गई है। पशुओं में भी कैंसर की शिकायत मिलने लगी है। राजनीतिक पार्टियां लोगों को कैंसर बांट रही हैं और हम वोट। पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार के साथ ही लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। पर्यावरण प्रेमी व साहित्य रत्न अवार्ड से सम्मानित ओम प्रकाश गासो ने सरकार से उम्मीद व्यक्त की कि वह वृक्षों का महत्व समझेगी और इनको बचाने के लिए प्रयास करेगी।

सेवानिवृत्त इंजीनियर सुरिंदर पाल का मानना था कि पर्यावरण को बचाने के लिए जिला स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। जो भी सरकार बने वह जल संरक्षण और कीटनाशकों के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए काम करे। गो ग्रीन के संस्थापक अश्वनी कुमार जोशी ने पेड़ों को काटने के बजाय उनको रीट्रांसप्लांट करने की जरूरत पर बल दिया। इसके लिए भले ही कितना भी पैसा क्यों न लग जाए।

सरकारों को वृक्षों के रीप्लांटेशन के लिए मशीनें खरीदनी चाहिए और इसके लिए बाकायदा नीति बननी चाहिए। रेवेन्यू विभाग के पूर्व अधिकारी परमिंदर सिंह का कहना है कि पराली जलाने के कारण वायु प्रदूषण होता है, लेकिन जब ऐसा करने वालों के खिलाफ अधिकारी कार्रवाई करने के लिए जाते हैं तो किसी राजनेता का फोन आ जाता है। यह हस्तक्षेप बंद होना चाहिए।मुक्तसर की डा. सीमा गोयल ने पंजाब में बढ़ते कैंसर के लिए रासायनिक खादों को जिम्मेवार ठहराते हुए उम्मीद व्यक्त की कि सरकार इस बात को समङोगी। उन्होंने कहा कि उनकी रिसर्च में सामने आया है कि पंजाब में आयोडीन की कमी के कारण थायराइड नहीं हो रहा है बल्कि सीलिनियम की कमी के कारण हो रहा है। अगर इस पर सही ढंग से काम हो तो 70 से 80 प्रतिशत तक कैंसर के केसों में कमी आ सकती है।

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चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश की तरह पालीथिन पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए
जल संरक्षण के लिए घरों में रेन वाटर हार्वे¨स्टग सिस्टम लगाने के नियम बनाए जाएं
पेड़ों को काटने के बजाय उनका रीट्रांसप्लांट किया जाना चाहिए, इसके लिए सरकार मशीनें खरीदे
सीवरेज व उद्योगों के रासायनिक पानी को पीने के पानी में शामिल होने से बचाने के लिए उठाने होंगे सख्त कदम
पराली की समस्या खत्म करने को धान की शार्ट टर्म वेरायटी लाई जाए, पराली से खाद बनाने पर जोर देने की जरूरत है

पर्यावरण.., एक ऐसा मुद्दा जो आज तक पंजाब की राजनीति के एजेंडे से दूर रहा है। राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक के लिए कई लुभावनी घोषणाएं वषों से करती आ रही हैं लेकिन पर्यावरण कभी इनकी प्राथमिकता में नहीं रहा, न ही कभी इस मुद्दे को घोषणा पत्र में जगह दी गई। यह सबसे चिंतनीय पहलू है कि लगातार खराब हो रही पर्यावरण की सेहत को लेकर राजनीतिक पार्टियां कभी गंभीर नहीं रहीं। पिछले 20 से 25 वषों की बात करें तो पंजाब के हालात ऐसे हो गए हैं कि फसलों की अत्याधिक पैदावार की होड़ में जुटे किसान धरती को जहरीली बना रहे हैं।