राजस्थान के भीलवाड़ा में निकाली गई जिंदा व्यक्ति की शव यात्रा, देखने उमड़ी भीड़

Dead body of a living person taken out in Bhilwara, Rajasthan, crowd gathered to see
Dead body of a living person taken out in Bhilwara, Rajasthan, crowd gathered to see
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जयपुर। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में जिंदा व्यक्ति की अनोखी शव यात्रा निकाली गई। शीतला अष्टमी पर हर बार की तरह अबीर- गुलाल और ढोल नगाड़े के साथ जिंदा व्यक्ति की अनोखी शव यात्रा में बड़ी संख्या में लोग नाचते गाते निकले। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में शीलता अष्टमी के मौके पर दशकों से जिंदा व्यक्ति की शव यात्रा निकालने की अनूठी परंपरा है। शवयात्रा में सैकड़ों की संख्या में शहरवासी शामिल हुए और हंसी के गुब्बारे छोड़ते हुए शहर के मुख्य मार्गों से गुजरे। खास बात यह है कि इस कार्यक्रम को लेकर जिला कलेक्टर की ओर से अवकाश भी घोषित किया गया था। पूरे शहर में सुरक्षा के माकूल इंतजाम भी किए गए ताकि यह कार्यक्रम में किसी प्रकार की विघ्न न पड़े।

प्रक्रिया पूरी होने पर व्यक्ति भाग जाता है

स्थानीय लोगों का कहना है कि जिंदा व्यक्ति की शव यात्रा का उद्देश्य मनोवैज्ञानिक संदेश देना है कि हम सुख-दुख में मजबूत रहे। कैसा भी दुख और परेशानी हो हम खुशी से जीवन जिएं। इसलिए शहर के प्रमुख लोगों की मौजूदगी में रंग गुलाल उड़ाते और हंसी मजाक करते हुए इस मुर्दे की सवारी निकाली गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस अनूठी शव यात्रा में एक जीवित व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर चार कंधों पर ले जाया जाता है। जिंदा व्यक्ति की शव यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए गाजे-बाजे और गीतों के साथ प्राचीन बड़े मंदिर के पास पहुंचती है। मंदिर के पीछे अंतिम संस्कार की प्रक्रिया की जाती है। इस दौरान शव पर लेटा व्यक्ति अर्थी से उठकर भाग जाता है। इसके बाद कार्यक्रम संपन्न हो जाता है।

बुराइयों का अंतिम संस्कार कर देने का संदेश

कलाकार जानकीलाल ने बताया कि भीलवाड़ा में दशकों से इलाजी की डोल निकाली जाती है। शहर में रहने वाली गेंदार नाम की एक वैश्या ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। गेंदार की मौत के बाद स्थानीय लोग अपने स्तर पर मनोरंजन के लिए यह यात्रा निकालने लगे। संदेश था कि अपने अंदर की बुराइयों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार कर देना। होली के आस-पास होने के कारण यह संदेश देने वाली यात्रा हंसी-ठिठोली के बीच निकाली जाती है। शव यात्रा चित्तौड़ वालों की हवेली से शुरू होती है और पुराने शहर के बाजारों से होती हुई बहाले में जाकर पूरी होती है। जानकीलाल ने बताया कि इस यात्रा से एक दिन पहले भैरूंजी और इलाजी की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की जाती है।