अभी अभीः शेयर मार्किट में मचा हाहाकार, यहां जानिये गिरने की पूरी वजह

Right now: There was an outcry in the stock market, know the full reason for the fall here
Right now: There was an outcry in the stock market, know the full reason for the fall here
इस खबर को शेयर करें

नई दिल्ली. पिछले हफ्ते बाजार में तेजी की जगमगाहट थी, हर कोई इसकी रोशनी में नहाना चाहता था. लेकिन बस 4 दिनों में फिजा बदल गई. अब हर कोई इससे दूर भागता नजर आ रहा है. आखिर इस बाजार को हुआ क्या है जिसकी गिरावट अब थमने का नाम नहीं ले रही है. गिरावट का आलम ये है कि 8 ट्रेडिंग सत्रों में सेंसेक्स 3500 अंक और निफ्टी 1100 अंक टूट चुका है. जिस निफ्टी बैंक ने 8 ट्रेडिंग सत्रों पर रिकॉर्ड हाई बनाया उसकी पिटाई जोरदार है और वो वहां से करीब 3400 अंक गिर चुका है.

मिडकैप, स्मॉलकैप शेयरों की हालत तो और खराब है. वहां मार ज्यादा है. लेकिन 2 हफ्तों में ऐसा क्या बदला जिसने निवेशकों के सेंटिमेंट को हिला कर रख दिया. पिछले 5 ट्रेडिंग सत्रों में भारतीय निवेशकों ने बड़े शेयरों में 50,000 करोड़ रुपये की बिकवाली की है.

1. ग्लोबल बाजारों में कोहराम
अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व के एक कदम से सारी कहानी बिगड़ी. दरअसल पिछले गुरुवार को फेडरल रिजर्व ने अनुमान के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75% का इजाफा कर दिया. यहां तक तो ठीक था लेकिन दिक्कत शुरू हुई कमेंट्री से. फेडरल रिजर्व चेयरमैन ने कहा कि वो दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी रखेंगे और इन कदमों से महंगाई काबू में आएगी या नहीं अभी कुछ नहीं कर सकते.

बता दें कि अमेरिका में अभी महंगाई 40 साल की ऊंचाई पर है और वो कुछ भी करके काबू में नहीं आ रही. फेडरल रिजर्व का इतना कहना था कि दुनिया के बाजारों ने गिरना शुरू कर दिया. अमेरिकी बाजार साल के नए निचले स्तरों पर हैं. यूरोपीय और एशियाई बाजार भी टूट रहे हैं. बिकवाली का आलम ये है कि अमेरिका में 73% शेयर 200 डीएमए के अहम स्तर के नीचे फिसल गए हैं. निवेशक जो भाव मिल रहा है शेयर बेचकर भाग रहे हैं.

2. दुनिया में फैलेगी मंदी
जो बाइडेन सरकार और फेडरल रिजर्व कुछ भी करके अमेरिका में मंदी लाना चाहते हैं. उसके लिए ग्रोथ कुर्बान करने को तैयार हैं. दोनों का यही इरादा दुनिया पर भारी पड़ रहा है. अमेरिका तो मंदी झेल सकता है लेकिन दुनिया इसके लिए तैयार नहीं है. अगर अमेरिका की इकोनॉमी पर ब्रेक लगा तो दुनिया की ग्रोथ का चक्का तो थम ही जाएगा. दुनिया की इकोनॉमी अमेरिका के इर्द-गिर्द घूमती है, ऐसे में बाकी देशों में मंदी समय से पहले गहराएगी.

यही डर बाजारों को सता रहा है. कच्चे तेल से इसका पहला संकेत मिल रहा है जो कच्चा तेल 140 डॉलर प्रति बैरल का शिखर छूकर आया था वो आज 85 डॉलर के नीचे आ गया है. कारण सिर्फ एक है- समय से पहले मंदी. दूसरा अमेरिका हो या यूरोप सभी से अब इकोनॉमी का पहिया थमने के साफ संकेत मिल रहे हैं. महंगाई को छोड़कर तमाम इकोनॉमिक आंकड़े कमजोर आ रहे हैं. तीसरा संकेत कंपनियों से मिल रहा है. फेड एक्स हो या फिर गूगल, एप्पल जैसी दिग्गज ग्लोबल कंपनियां, सभी आगे की ग्रोथ को लेकर चेतावनी दे चुके हैं. कह चुके हैं कि आगे खराब दिनों के लिए तैयार रहें.

3. ब्याज दरों में उछाल
दरअसल, दुनिया के तमाम बड़े देशों के सेंट्रल बैंकों की नजर फेडरल रिजर्व के एक्शन पर होती है. पिछले गुरुवार को फेडरल रिजर्व ने दरें क्या बढ़ाई, सभी ने कर्ज महंगा करना शुरू कर दिया. 15 सालों में दरों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी की गई. इस कदम ने आग में घी का काम किया. करीब 90 सेंट्रल बैंक कर्ज महंगा कर चुके हैं. इसमें से आधे ने तो 0.75% की बढ़ोतरी की है. भारत का रिजर्व बैंक भी दरों पर शुक्रवार को फैसला लेने वाला है. अनुमान जताया जा रहा है कि रिजर्व बैंक 0.50% दरों में बढ़ोतरी कर सकता है. ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने से कर्ज महंगा तो होता ही है, साथ ही सिस्टम से नकदी भी कम हो जाती है. इसकी एक मार इकोनॉमी और दूसरी बाजारों पर पड़ती है .

4. करेंसी का बड़ा संकट
फेडरल रिजर्व के दरें बढ़ाने से करेंसी बाजार में बड़ा भूचाल आया. दरों में बढ़त के साथ ही डॉलर इंडेक्स 20 साल की ऊंचाई पर पहुंच गया है. बता दें कि दुनिया की 6 बड़ी करेंसी के बास्केट के सामने डॉलर की चाल को आंका जाता है. इसका बढ़ना पूरी दुनिया की अन्य करेंसी पर दबाव डालता है. रूस-यूक्रेन लड़ाई की शुरुआत से डॉलर इंडेक्स दौड़ रहा है। इस दौरान इसमें 15 परसेंट का उछाल आया है. इसका असर ये हुआ कि यूरो, पाउंड, येन सब रिकॉर्ड निचले स्तरों पर पहुंच गए. हालांकि इन सब बड़ी-बड़ी करेंसी के मुकाबले भारतीय रुपये में कमजोरी कम है और इस साल सिर्फ 8 परसेंट गिरा है. फेडरल रिजर्व के फैसले का असर बॉन्ड बाजार पर भी पड़ा है और ये भी फिसलता जा रहा है.

5. जियोपॉलिटिकल संकट
दुनिया के बाजारों में गिरावट का बड़ा कारण देशों के बीच में आपसी तनाव भी है. ये तनाव अब बढ़ता ही जा रहा है. फिर चाहे रूस-यूक्रेन हो या फिर ताइवान को लेकर चीन-अमेरिका में तनाव, सभी में तेजी आई है. रूस ने यूक्रेन और दुनिया को परमाणु युद्ध की साफ धमकी दे दी है. पुतिन ने दो टूक कहा है कि इसे कोरी धमकी नहीं समझें. खबरें तो यहां तक आईं कि यूक्रेन के पड़ोसी पोलैंड ने तो अपनी जनता में आयोडीन की दवाएं बांटनी शुरू कर दी है. दोनों देशों ने बॉर्डर पर रहने वाले नागरिकों को निकालना भी शुरू कर दिया. इससे दुनिया में डर काफी फैला.

रूस दुनिया को तेल-गैस देता है, वहीं यूक्रेन खाद्यान का बड़ा भंडार है. लड़ाई बढ़ी तो पूरी सप्लाई चेन प्रभावित होगी. उधर चीन को लेकर भी अच्छी खबरें नहीं आ रहीं. हालांकि आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा लेकिन खबर है कि सर्वोच्च पद के चुनाव से पहले असमंजस का माहौल है और अनिश्चितता बाजार को बिलकुल पसंद नहीं आतीय. यही कारण है कि दुनिया के बाजारों में डर है और भारत भी इससे अछुता नहीं है.