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नई दिल्ली. हम सभी ने बायोलॉजी की क्लास में पढ़ा होगा कि जब पुरुष का स्पर्म (शुक्राणु) और महिला का एग (अंडा) मिलते हैं तो उससे भ्रूण बनता है और एक नई जिंदगी इस दुनिया में आती है लेकिन ये प्रक्रिया सुनने में जितनी आसान लगती है, उतनी है नहीं. वास्तव में किसी जिंदगी के अंदर नए जीवन का पनपना एक बेहद जटिल प्रक्रिया है जिस पर जितनी रिसर्च होती हैं, उतनी ही रहस्य की परतें हमारे सामने खुलती हैं. अब तक हमारे सामने जितनी भी रिसर्च की गईं, उनमें बताया कि सबसे तेज और सबसे ताकतवर शुक्राणु करोड़ों शुक्राणुओं को पीछे छोड़ अंडे के साथ मिलकर भ्रूण बनाता है. लेकिन एक नई रिसर्च ने दावा किया है कि सभी स्तनधारी जीवों में शुक्राणु अक्सर एग तक पहुंचने के लिए टीम बनाकर दौड़ते हैं.
नई रिसर्च करती है ये दावा
अमेरिका की नॉर्थ कैरोलीना और कॉन्रेल यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम ने अपनी रिसर्च में ये दावा किया है. टीम के एक सदस्य ने बताया कि फर्टिलाइजेशन के लगभग सभी सिद्धांतों में शुक्राणु को अक्सर एक अंडे को फर्टिलाइज करने के लिए एक दूसरे के खिलाफ दौड़ने वाले व्यक्तियों के रूप में दर्शाते हैं. लेकिन हमारी रिसर्च जो माइक्रोस्कोप स्लाइड और कुछ लैबोरेटरी इक्विमेंट पर हुई है, उनके रिजल्ट कुछ और कहानी बताते हैं.
रिसर्च टीम के एक सदस्य चियांग कुआन टुंग ने बताया, ”हमने इस पूरी प्रक्रिया को जानने के लिए लैबोरेटरी में बैल के स्पर्म पर रिसर्च की है जो काफी हद तक पुरुष के स्पर्म से मेल खाते हैं. बैल के स्पर्म में भी पुरुष के स्पर्म की तरह हेड और टेल होती है.”
चियांग इस प्रक्रिया को समझाते हुए कहते हैं, ”जब पुरुष और महिला के बीच संबंध बनते हैं तो उस समय पुरुष में करोड़ों शुक्राणु निकलकर तुरंत अंडाशय तक पहुंचने के लिए अपना सफर शुरू कर देते हैं. इस रिसर्च के दौरान हमने पाया कि कई शुक्राणु दो-तीन या चार के समूह में अंडाशय तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे.”
वो कहते हैं कि असल में शुक्राणुओं का स्त्री के अंडाणु के साथ मिलन का सफर इतना आसान नहीं होता. इनके रास्ते में कई रुकावटें आती हैं जिनमें ज्यादातर शुक्राणु फीमेल रिप्रोडक्टिव पार्ट्स में मौजूद फ्ल्यूड्स (तरल पदार्थ) की वजह से रास्ते में ही खत्म हो जाते हैं.
टीम ने रिसर्च के लिए बैल के स्पर्म का उपयोग किया
इस रहस्य को सुलझाने के लिए शोधकर्ताओं ने बैल के 10 करोड़ शुक्राणुओं को एक सिलिकॉन ट्यूब में इंजेक्ट किया जिसमें उन्होंने बिलकुल वैसा ही फ्ल्यूड्स भरा था जो गायों के गर्भाशय में होता है. इसके बाद उन्होंने शुक्राणुओं के प्रवाह के लिए एक सिरिंज पंप (बेहद कम मात्रा में दवा देने के लिए उपयोग होने वाली मशीन) का उपयोग किया.
उन्होंने कहा कि इसके बाद हमने देखा जब फ्ल्यूड्स का प्रवाह नहीं था तो जो शुक्राणु समूह में थे, वो अलग-अलग शुक्राणुओं की तुलना में एक सीधी रेखा में तैर रहे थे. जब प्रवाह शुरू हुआ तो शुक्राणुओं का समूह ऊपर की ओर तैरने लगा जबकि सिंगल स्पर्म ऐसा नहीं कर पाए. जब प्रवाह तेज हुआ तो शुक्राणुओं के समूह सिंगल स्पर्म की तुलना में बेहतर तरीके से फ्ल्यूड्स को पार करते दिखे. वहीं, इस दौरान सिंगल स्पर्म अपने सामने आ रहे फ्ल्यूड्स के प्रवाह में बह गए.
रिसर्च की टीम ने दी है ये थ्योरी
इन सभी स्थितियों में एक भी ऐसा सिंगल स्पर्म नहीं था जो पूरे रास्ते अकेले आगे बढ़ता जा रहा हो जबकि शुक्राणुओं के समूह बहुत तेज बह रहे थे. सिंगल स्पर्म बीच-बीच में समूह का हिस्सा बनते थे और फिर अलग हो जाते थे. ये प्रक्रिया ठीक वैसे ही दिखाई दे रही थी जैसे किसी साइकिल रेस में सारे साइकिलिस्ट एक फील्ड में एक-दूसरे से पास-पास दौड़ते हैं ताकि सामने से आ रही हवाएं उनके सामने कम से कम मुश्किल पैदा करें.
चियांग ने कहा, ”हम इस पूरे प्रॉसेस को इस समझ सकते हैं कि शायद स्पर्म ये मैकेनिज्म इसलिए अपनाते हों ताकि उनमें कम से कम कुछ शुक्राणु तो फीमेल एग तक पहुंच सके. क्योंकि इसके बिना शायद उनमें कोई भी स्पर्म गर्भाशय के फ्ल्यूड्स के सामने नहीं टिक सकता है.”
शुक्राणुओं के समूह योनि और गर्भाशय के गाढ़े और तेज बहने वाले फ्ल्यूड्स को पार करने में अहम किरदार अदा करते हैं. वो इन फ्ल्यूड्स को अलग-अलग दिशाओं में मोड़ते और पतला बना देते हैं ताकि बाकी शुक्राणुओं के लिए रास्ता बन सके.
चियांग कहते हैं हमारी रिसर्च इनफर्टिलिटी के उन मामलों का इलाज तलाशने में मदद करेगी जिनकी वजह पता नहीं चल पाती हैं. इसके साथ ही इससे भविष्य में विट्रो फर्टिलाइजेशन और फर्टिलाइजेशन के अन्य इलाज में शुक्राणुओं के बेहतर चयन में भी मदद करेगी.